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ख्वाहिशें!

मन-दर्पण
मन-दर्पण
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जिंदगी ख्वाहिशों के सफ़र में गुजर जाती है

एक ख्वाहिश अपनी मंजिल नहीं पाती

कि! दूजी हमसफ़र बन जाती है

कभी फूलों सी महकती ये ख्वाहिशें

कभी शोलों सी दहकती ये ख्वाहिशें

पल-पल मौसम सी रंग बदलती ये ख्वाहिशें

कभी परिंदों की मानिंद आसमां छूती ये ख्वाहिशें

कभी सूखे  पत्तों सी टूटकर बिखरती ये ख्वाहिशें

है ना कोई पता ना ठिकाना इनका

अरमानो के पंख लगा जाने कहाँ से आती ये ख्वाहिशें

इंसा को क्या से क्या बनाती ये ख्वाहिशें

है फितरत भी अजीब कितनी इन ख्वाहिशों की

गर जो कोई ख्वाहिश रह जाये अधूरी

वो दिल की उलझन का सबब बन जाती है

और जो हो जाती हैं मुकम्मल

फिर वो ख्वाहिश-ख्वाहिश कहाँ रह जाती है

फिर वो ख्वाहिश-ख्वाहिश कहाँ रह जाती है…

शिल्पा भारतीय “अभिव्यक्ति” अंतर्मन की


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