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vatsalya ganga

vatsalya
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गोमुख से निकली गंगा सारे भारत की भूमि को अपनी शीतलता से तृप्त करतीसदियों से उसके ममतामयी आचल के किनारों पर बसे सेकड़ो नगर और हजारो गाँव सम्रधि की और अग्रसर होते रहे हैं गोमुख पर खड़े होकर बहुत आश्चर्य होता हैं बहुत छोटी छोटी बूंदे उस छोटे छोटे स्थन से निकलती हैं और धीरे धीरे आगे बढते हुए एक विशाल जलराशि के रूप में पर्वतो और वनों को लाघते हुए जब भारत के मैदानों पर गिरती हैं तो चारो ओर सम्रधि का सागर लहराता हैं यह केवल एक नदी की कहानी भर नहीं हैं मानवता के कल्याणार्थ घनघोर तपस्या कर गंगा मैया को स्वर्ग से उतरकर धरती पर आने के लिए विवश कर देने वाले भागीरथ मुनि के तपस और तेजस की कहानी हैं गंगा / यह सन्देश हैं नन्ही बूंदों का आपस में मिलकर एक विराट जलराशि में परिवर्तित हो सीमित से असीमित हो जाने का इसी पावनगोमुख पर खर्डे होकर और इसके मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य को देखकर मैने एक स्वप्न देखा था /किसी एक छोटे से सेवा प्रकल्प रूपी गोमुख से संस्कारो की एक पावन गंगा निकले और भारत के प्रत्येक गावं ;प्रत्येक नगर को अपनी दिव्यता से ओत प्रोत कर दे …….हम फिर से उस स्वर्युग में प्रवेश कर जाये जिसकी हम कहानिया पड़ते हैं मेरी इन्ह्नी नन्ही सी कल्पनारूपी बूंदों ने योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की लीलाभूमि वृन्दावन में वात्सल्य ग्राम की एस्थापना के साथ अपनी यात्रा आरंभ की थी बहुत प्यारी प्यारी नन्ही सी किलकारियों ने मेरी इस वात्सल्य गंगा में जुड़कर उसके प्रवाह को आगे बढाया देश विदेश के अनेक उदारमना बंधुओ ने इसमे अपने उदार सहयोग समर्पित कर इसके प्रवाह को विराट किया वात्सल्य ग्राम ,वृन्दावन ने सारे विश्व को एक विचार दिया हैं समाज में एक वात्सल्यमयी पारिवारिक वातावरण में नन्हे बच्चे अपना स्वर्णिम भविष्य गर रहे हैं इसके लिए अपना योगदान दे रही बहनों मातायो तथा आपके प्रेमपूर्ण सहयोग अविस्मर्णीय हैं
इतनी सुन्दर सामाजिक व्यवस्था केवल वात्सल्य ग्राम ,वृन्दावन तक ही सीमित न रहे वह सरे देश के गोवं गोवं और नगर नगर तक इस्थापित होकर हमारी वर्तमान सामाजिक व्यवस्थायो में आमूल चुल परिवर्तन कर दे मै हमेशा यह विचार करती रही लेकिन किसी भी सामाजिक सुधार छोटे से प्रयास को केवल कुछ थोड़े से लोग सरे देश मै व्याप्त नहीं कर सकते वह हजारो लाखों सेवाभावी कार्यकरताओ के कंधों पर चढ़कर ही घर घर की देहलीज तक पहुच पता हैं यु तो हमारे देश के प्रत्येक स्वर्णिम युग के निर्माण में देश के हर नागरिक ने अपना अपना इतिहास रचा हैं लेकिन बहुत गहराई से अध्यन करने पर निष्कर्ष सामने आता हैं कि हमारी देश कि मातृशक्ति ने सकारात्मक सामाजिक सृजन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं वह ममता ,वात्सल्य ,स्नेह ,प्रेम ,त्याग ,तपस्या ,शोर्य,और बलिदान का समग्र रूप है भारत के हर युग में समाज,अध्यात्म और विघ्याँ के हरेक चेत्र में इस्त्री कि महती भूमिका नज़र आती हैं
हमने भी विचार कर निण्रय लिया कि हम हमारे एस सुन्दर वात्सल्य गंगा अभियान के किरियार्न्वन कि बागडोर भी भारत कि इस्त्री शक्ति के मजबूत हाथों में ही सोपेगें यह स्वपन सजोया गया हैं कि परम्शाक्तिपीठ कि एक हजार सेवाव्रती और ब्रम्चारनी बहने सारे देश के दूरस्थ इलाको तक जाकर साध्वी माँ के रूप में समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति के उथान के लिए काम करेगी

दीदी माँ ऋतंभरा

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