vatsalya
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क्षण मात्र को लगा सब है सीख लिया , सब कुछ जान लिया तुम खड़े रहे
और तुम्हें किसी ने न पहचाना , जाना था सब कुछ पर फिर भी रह गया
सब अनजाना राह बहुत लम्बी है जिंदगी तो छोटी है
पाल लगी नौका भी नहीं ठीक बहती है
मैंने पाल खोल दिये प्रयत्न नियंत्रण के
अब तो सब छोड़ दिये जहाँ चाहो ले जाओ
उबारो या डुबो दो भंवर में फंसा दो
चाहे भंवर से निकालो दिशा को दिखाओं
या दिशा भटका दो किनारे की चाह
अब तो है छुट चुकी दूर क्षितिज से
आती जो स्वर लहरी मेरा मन लूट चुकी
मंत्रमुग्ध बहती हूँ लहरों में रहती हूँ
बस आपको पाने को आकुल हो बहती हूँ
ह्रदय के दुआर मैंने है खोल दिये
आओ न आओ तुम मैंने सब सपने
तुमको बिन मोल दिये
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