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एक अजन्मी कन्या भ्रूण का अपनी दादी के नाम पत्र

vatsalya
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प्रिय दादी.
बहुत सारा प्यार
अपनी माँ के गर्भ में रहते हुए मुझे आज पूरे पाँच माह हो गए हैं/मुझे याद आते हैं वे दिन जब मैंने उनके गर्भ में आकार लेना प्रारम्भ किया था/दो बहनों के जन्म के बाद तीसरी बार मेरी माँ के गर्भवती होने पर हमारे घर का आँगन खुशियों से महक उठा था/मेरे स्वागत की कितनी भावभीनी तैयारियां घर में चल रही थी,माँ के उस घुप्प अँधेरेगर्भ में,मै अनुभव करती थी/मेरी माँ के आराम का पूरा ध्यान रखा जाता/कोई वजन नहीं उठाना,सम्हल-सम्हल कर चलना,यह खाना,वह नहीं खाना…………और ना जाने कितने निर्देश तुमने मेरी माँ को दिए थे/मल-मूत्र से भरे उस गर्भ में ही मैंने ईश्वर की इस सुन्दरतम सृष्टि को अनुभव कर लिया था/दादी,कल्पना में ही मैं तुम्हारे प्यारे स्वरुप का दर्शन किया करती थी/तुम्हें छूने की,तुम्हारे गले में लिपट जाने की लालसा इस सुन्दर सृष्टि का दर्शन करने की तुलना में हजारों गुना अधिक थी/तुम मेरी माँ से इतना प्यार करती हो…….मुझसे कितना स्नेह करोगी,यह विचार ही मुझे रोमांचित करता था /मेरी माँ अपना पेट छू छूकर मुझे अनुभव करने की कोशिश करती/कभी गुनगुनाती ,कभी धीरे-धीरे अपने पेट पर थपकी देती मानों लोरियां गाकर मुझे सुलाने का प्रयास कर रही हो/मैं उस अंधकार भरे गर्भ से बाहर आने का सुनहरा स्वप्न देख देखकर समय व्यतीत कर रही थी/
परन्तु…………मेरा यह सुनहरा सपना उस दिन टूट गया जब तुम मेरी माँ की जाँच कराने डाँक्टर के पास ले गई/न जाने किस मशीन पर माँ का परिक्षण किया गया …..कोई शब्द मेरी माँ के कानों से होता हुआ मुझे उस घने अँधेरे में सुनाई पड़ा………’लड़की हैं’/जाने क्या हुआ…………एक नीरव सन्नाटा [प्रथम भाग]

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