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यूँ तो पूज्या दी माँ जी के बहुत सारे चमत्कार मैंने जीवन में अनुभूत किये है सच तो यह है कि यह शरीर सदैव ही उनका ऋणी है लिखने बैठू तो एक मानस की रचना हो सकती है पर अनुभूति का महाप्रसाद जो मुझे मिला है उसमें डूबकर परमानन्द जो मुझे मिलता है उसको अभिव्यक्त करने का मुझमें सामर्थ्य नहीं हो पाता / उतराखंड की जल त्रासदी से जो हाहाकार मचा उसकी वेदना मैंने वात्सल्य मूर्ति माँ भगवती की अवतार परम पूज्या दी माँ जी में देखी वो वेदना जो मैंने उतराखंड के उन परिवारों में भी नहीं महसूस कर पाई ऐसा लगता था मानों उनका अपना कोई बहुत ही अजीज उनसे दूर चला गया / पहाड़ों के उबड़-खाबड़ दुर्गम पथरीले ऊचे -नीचे रास्तों की परवाह किये बिना उन तक पहुचने की त्वरा पूज्या दी माँ जी के दर्द की कहानी स्वत: ही कह रही थी /
परमशक्ति पीठ उन सबके लिए क्या कर दे ,उनका दर्द , उनका कष्ट कैसे दूर किया जाये केवल और केवल यही चिंता और चिंतन रहा पूज्या दी माँ जी का / बार-बार कहती रहीं पहाड़ों का यह जीवन स्वत: में बहुत कठिन और संघर्ष भरा है /जिन बच्चों के सर से अपनों का साया चला गया ,जो बहनें अकेली और असहाय हो गई पल-पल उनकी चिंता और उनका जीवन उनके अपने बच्चों के साथ सुगम और निश्चिंतता के साथ व्यतीत हो पाये इसी में प्रयासरत पूज्या दी माँ जी ,10-12दिन पहाड़ों में ही, लापता और मृतको के परिजनों में अपनी वत्सल्यामई ,ममतामई ,करुनामई स्नेह की गंगधार की रिमझिम बौछार से उनके दुःख-दर्द को सहलाती हुई उन्हें ढाढस देते हुये हौसला देती रही /
उन दिनों दिन और रात का हमें पता ही नहीं चला जैसे पूज्या दी माँ जी कोई उर्जा की खान हो उनके दर्शन से सारी थकान छूमंतर हो जाया करती थी /मार्ग की बाधाएँ कष्टकारी नहीं लगी और जब मुझे और पूज्य स्वामी ध्यानानंद जी को मार्ग में जब-जब बाधा आती उसी समय पूज्या दी माँ जी का फोन आ जाता और हम बाधा से मुक्त हो जाते इतना ही नहीं गुरु पूजन के दिन जब हम उखीमठ से प्रात: चले तो हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि उसी दिन हम हरिद्वार पहुच जायेगें मार्ग में कोई भी बाधा नहीं आई / एकबार तो मौत को केवल चार इंच दूर से भी अनुभूत करने का अवसर आया पर पूज्या दी माँ जी की सदकृपा का साक्षात्कार मुझे हुआ और पुन:स्मरण हो आया कि यह शरीर उन्हीं का दिया है और उन्ही के आदेश के पालन के लिए ही है/
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