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“गंगा की विनती”

vatsalya
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मैं गंगा हूँ। आपकी अपनी गंगा मैया। आप मुझे अनेकों नाम से पुकारते है।
भगवन शिव की जटावों से निकलकर भारत की इस पावन भूमि पर गोमुख से गंगासागर तक में आपके बीच चारों पुरषार्थो को पाने में सदा आपके सहाय रही।
आपने मुझे अन्नपूर्णा मानते हुए माँ का संबोधन दिया। जो मुझे अपने नामों में सबसे अधिक प्रिय है। एक माता की तरह मैंने भी अपने सभी बच्चो का अन्न-जल से पालन पोषण किया है। मेरे तटों पर आपने नगर बसाये।
सभ्यता और संस्कृति को समृद्ध करते हुए आपने सभ्यता की नीव रखी। यह सब मुझे बहुत अच्छा लगा और आपकी हर उन्नति पर मेरे ह्रदय में उठती स्नेह की लहरों की नई उचाइयां मिली।

आज मैं, गंगा, आपके सामने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रार्थना लेकर खड़ी हूँ। यदि समय रहते आप नही चेते तो मैं सरस्वती की तरह लुप्त होने के लिए मजबूर हो जाउंगी। तब आप अन्न-जल कैसे पायेंगे ? धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों को कैसे निभा सकेंगे ? यह सोच कर ही मैं सिहर जाती हूँ।
इसलिए मेरी अपने सभी बच्चो से गुजारिश है की इसे प्रदूषित ना करे। ब्रह्माण्ड पूरण में भी यह लिखा है की, गंगा में शौच, कुल्ला,साबुन के साथ स्नान, फूल मालाओं का विसर्जन, बर्तनों व कपड़ो की धुलाई, वस्त्र त्याग आदि ना करे।

आप सभी आज यह संकल्प ले की आप मुझे गंगा और मेरी सहायक नदियों को प्रदूषित नही करेंगे क्युकी उनका भी जल मुझमे में आता है। आप से अनुरोध है की–
-प्लास्टिक की थैली और पॉलीथिन का उपयोग ना करे। उसकी जगह कपडे/जुट के बने थैले उपयोग करे।
-पॉलीथिन की थैलिय इधर-उधर ना फेंके क्योकि यह नालो से होकर मुझमे ही आता है।

-उपयोग की गयी माला फूल, पूजन सामग्री,हवन, मूर्तियाँ मुझमे विसर्जित ना करे।

-अधजली लाशें ,जली हुई लकड़ियाँ अन्य अवशेष ,मृत पशु इत्यादि मुझमे ना डालें।

-मेरी यह विनती अपने परिवार तक अवश्य पहुचाएं।

आइये हम सब मिलकर संकल्प ले की हम गंगा मैया को बिलकुल प्रदूषित नही करेंगे।

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