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ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु विश्रामावस्था अर्थात अपने शयनकक्ष में चले जाते हैं। इसी दिन से शादी-ब्याह, ब्रतबंध, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। देवउठनी एकादशी की तिथि से भगवान के जागने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी और समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाएगी।
श्रीमद्भगवत पुराण के अनुसार वर्णित कथा के अनुसार तुलसी क
पति जालंधर की मृत्यु से पीड़ित तुलसी पति के वियोग में तड़पती हुई सती हो गई। इसके भस्म से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ।
तुलसी की पतिव्रता एवं त्याग से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी के रूप में अंगीकार किया और वरदान भी दिया जो भी तुम्हारा विवाह मेरे साथ करवाएगा वह परमधाम को प्राप्त करेगा।
इसलिए देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए तुलसी विवाह का प्रचलन है।
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