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बालकृष्ण माखन चोर ………..

vatsalya
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kanu

बालकृष्ण एक समय यहाँ सहचर ग्वालबालों के साथ खेल रहे थें अकस्मात बाल-टोली ताली बजाती और हँसती हुई कृष्ण को चिढ़ाने लगी। पहले तो कन्हैया कुछ समझ नहीं सके, किन्तु क्षण भर में उन्हें समझमें आ गया। दाम, श्रीदाम, मधुमंगल आदि ग्वालबाल कह रहे थे कि नन्दबाबा गोरे, यशोदा मैया गोरी किन्तु तुम काले क्यों? सचमुच में तुम यशोदा मैया की गर्भजात सन्तान नहीं हो। किसी ने तुम्हें जन्म के बाद पालन-पोषण करने में असमर्थ

होकर जन्मते ही किसी वट वृक्ष के कोटरे में रख दिया था। परम दयालु नन्दबाबा ने वहाँ पर असहाय रोदन करते हुए देखकर तुम्हें उठा लिया और यशोदा जी की गोद में डाल दिया। किन्तु यथार्थत: तुम नन्द-यशोदा के पुत्र नहीं हो। कन्हैया खेलना छोड़कर घर लौट गया और आँगन में क्रन्दन करता हुआ लोटपोट करने लगा। माँ यशोदा ने उसे गोद में लेकर बड़े प्यार से रोने का कारण पूछना चाहा, किन्तु आज कन्हैया गोद में नहीं आया। तब मैया जबरदस्ती अपने अंक में धारण कर अंगों की धूल झाड़ते हुए रोने का कारण पूछने लगी। कुछ शान्त होने पर कन्हैया ने कहा-दाम, श्रीदाम आदि गोपबालक कह रहे हैं कि तू अपनी मैया की गर्भजात सन्तान नहीं है। ‘बाबा गोरे, मैया गोरी और तू कहाँ से काला निकल आया। यह सुनकर मैया हँसने लगी और बोली-‘अरे लाला! ऐसा कौन कहता हैं?’ कन्हैया ने कहा-‘दाम, श्रीदाम, आदि के साथ दाऊ भैया भी ऐसा कहते हैं।’ मैया गृहदेवता श्रीनारायण की शपथ लेते हुए कृष्ण के मस्तक पर हाथ रखकर बोली- ‘मैं श्री नारायण की शपथ खाकर कहती हूँ कि तुम मेरे ही गर्भजात पुत्र हो।’ अभी मैं बालकों को फटकारती हूँ। इस प्रकार कहकर कृष्ण को स्तनपान कराने लगी। इस लीला को संजोए हुए यह स्थली आज भी विराजमान है। यथार्थत: नन्दबाबा जी गौर वर्ण के थे। किन्तु यशोदा मैया कुछ हल्की सी साँवले रंग की बड़ी ही सुन्दरी गोपी थीं। नहीं तो यशोदा के गर्भ से पैदा हुए कृष्ण इतने सुन्दर क्यों होते? किन्तु कन्हैया यशोदा जी से कुछ अधिक साँवले रगं के थे। बच्चे तो केवल चिढ़ाने के लिए वैसा कह रहे थे।

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