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श्री दीनदयाल गोयनका जी के पावन प्रयास से गोरखपुर की धरा पर पूज्य दीदी माँ जी के मुखारविंद से श्रीमद भागवत की अमृतवर्षा हुयी इस परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत हैं श्री दीनदयाल गोयनका जी के विचार–
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परम पूज्य पिताजी स्व. केसरदेव जी गोयनका के स्नेह और भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार के पावन सानिध्य में बीता बचपन अभी भी याद है | गोरखपुर में गीताप्रेस स्थापित हो चूका था और कल्याण का सम्पादकीय दायित्व भाई जी संभाल रहे थे | मेरे पिताजी को कल्याण के व्यवस्थापक का दायित्व सौंपा गया था | दैनिक आराध्य सेठ जी जय दयाल गोयनका जी के आशीर्वाद स्वरूप मुझे नाम की प्राप्ति हुयी थी | ऐसा पिताजी बताते थे | श्री गीता जी और कल्याण जैसे शब्द तरुवर की सम्रद्ध छाया में संस्कारों के उत्कर्ष के बीच अभावों के चरम में ही बचपन जवानी की ओर बढ़ चला था | होश सभालने से लेकर जीवन के पचास वसंत तो परिवार का बोझ ढोते,कर्ज चुकाते और खुद की स्वार्थ सिद्धि में बीत गए |
एक दिन अचानक आस्था चैनल पर कार्यक्रम देखने का अवसर मिला | टीवी ऑन करते ही स्क्रीन पर जो चेहरा था उसे देखते ही लगा जैसे जन्मों का कोई रिश्ता रहा हो | उस चेहरे से न तो नजर हटती थी और न ही उस व्यक्तित्व से वाणी स्वरूप प्रसारित शब्दों से मन हटाने की इच्छा होती थी | संजय जी के शब्दों में कहें तो स्क्रीन पर मैं जिन्हें देख रहा था वह साक्षात् युग दुर्गा थीं जिन्हें यह जगत परम पूज्य दीदी माँ की संज्ञा से विभूषित करता है | कार्यक्रम देखते-देखते ही मन में एक संकल्प सा बैठ गया | पूज्य दीदी माँ की वह अहमदाबाद की कथा चल रही थी | तत्काल वात्सल्य ग्राम से जुड़ने का मन बन गया | वैसे तो मेरे परिवार से व्यासपीठ का बहुत पुराना रिश्ता रहा है | पूज्य पिताजी के समय से ही युग तुलसी परम पूज्य रामकिंकर जी के साथ तीन बार समय व्यतीत करने और कथा सुनने का सौभाग्य मिल चुका है | वृन्दावन के आचार्य पंडित श्रीनाथ जी शास्त्री के श्रीमुख से श्रीमदभागवत कथा श्रवण करने का अवसर हमारे परिवार को प्राप्त हो चुका है | इसी क्रम में एक घटना याद आती है कि एक बार मैं परम पूज्य रामकिंकर जी को लेकर गीता वाटिका गया | उस समय भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार ब्रह्मलीन हो चुके थे | राम किंकर जी ने प्रसंग वश बताया कि पूज्य भाई जी भगवान के स्वभाव के बारे में ही मुझसे सुना करते थे | इस लिए मैं भगवान के स्व भाव पर ही बोलूँगा |
जहाँ तक पूज्य दीदी माँ जी से जुड़ने का प्रश्न है तो स्पष्ट कर दूँ तो यह कौंधने वाली जिज्ञासा उसी दिन टीवी स्क्रीन के जरिये मेरे मानस में इस कद्र बैठ चुकी थी कि गोरखपुर में पूज्य दीदी माँ जी के श्रीमुख से श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण का संकल्प ले चुका था | इसी जिज्ञासा और संकल्प के तहत मैंने जब परम पूज्य राम किंकर जी का सन्दर्भ देते हुए उनसे गोरखपुर के कार्यक्रम के लिए निवेदन किया तो उन्होंने जिस सहजता से मेरी प्रार्थना स्वीकार की वह अदभुत है| पूज्य दीदी माँ जी की प्रत्येक उदघोषणा में यह कहना कि ” संकल्प का कोई विकल्प नही होता ” मुझ जैसे नासमझ के लिए समझना बहुत मुश्किल था | यह तब समझ में आया जब कथा की तिथि करीब आ गयी |
स्वास्थ्य ख़राब होने के कारन पूज्य दीदी माँ जी को प्रस्तावित तिथि से ८ दिन पूर्व अस्पताल में भरती होना पड़ा | बाबजूद इसके उनके संकल्प में कोई ढीलापन नही आया | गोरखपुर कथा की तिथि के दिन ही डाक्टरों के लाख मना करने के बाबजूद वह अस्पताल से दिल्ली एयरपोर्ट आयीं | वहां से गोरखपुर एयरपोर्ट पर उतर कर मेरे आवास से होते हुए सीधे पंडाल में पहुंची और व्यासपीठ पर बैठते ही उनकी ओजस्वी वाणी की अनवरत वर्षा शुरू हो गयी | गोरखपुर से घनिष्ठ रिश्ता जोड़ते हुए विशाल जनसमूह को आह्लादित करती हुयी श्रीमद्भागवत ज्ञान गंगा कथा की जो अविरल धारा बहनी शुरू हुयी वह निश्चित ईश्वरीय शक्ति से सराबोर यात्रा का परिणाम ही थी व्यासपीठ पर जैसे साक्षात् माँ भारती वीणापाणी के रूप में युग दुर्गा ऋतंभरा की वाणी में भगवत कथा की अविरल धारा बही तो सचमुच जैसे जीवन धन्य हो गया | पूज्य दीदी माँ जी की वाणी में यह एक सामान्य कथा भर नही थी बल्कि जीवन को शाश्वता से जोड़ते हुए सफल बनाने की वह धारा थी जिसमें गोरखपुर का मानस बदल दिए | परम पूज्य दीदी माँ जी को इस रूप में देखते-सुनते यह सिद्ध हुआ कि शाश्त्रोक्त सज्य्ता के सानिध्य में जीवन जीने की कला आ जाये तो कोई लक्ष्य कठिन नही है |
यह इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि वर्षों तक भटकने के बाद यदि मुझ जैसे को जीवन की राह मिल गयी तो निश्चित ही समाज के मेरे जैसे भटके हुए लोगों को पूज्य दीदी माँ जी की वाणी जीवन अमृत के रूप में काम करती दिख रही है | हम जो कर रहे हैं , अपनों के लिए कर रहे हैं | इस अपनापन में समाज भी समाहित हो जाये तो निश्चय ही यह परमात्मा के प्रति समर्पण होगा | यहाँ यदि मैं परम पूज्य ब्रह्मचारिणी दीदी शिरोमणि जी और ओम प्रकाश जी गोयनका जी को उद्धित नही करूंगा तो बहुत बड़ा अन्याय होगा क्योंकि इन दोनों शक्तिओं के बिना तो यहाँ कुछ भी संभव नही था | आदरणीय शिरोमणि जी और ओम प्रकाश गोयनका जी ने जिस प्रकार स्वयं गोरखपुर की यात्रा कर हमारा साहस बढ़ाया इसके लिए मैं आजीवन उनका ऋणी और आभारी रहूँगा |
*********** दीनदयाल गोयनका
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