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ये तो प्रेम की बात है उद्धव,बंदगी तेरे वश की नहीं है………

vatsalya
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एक दिन जब उद्धवजी ने भगवान को दुखी देखा तो उनसे पूँछा कि -हे श्रीकृष्ण आप इतने दुखी क्यों हो तब भगवान ने कहा -उद्धव मुझे व्रज बिसरता नहीं है,मुझे मैया-बाबा,गोपियों सब की बहुत याद आती है.तुम व्रज में जाओ.वहाँ सबको आनंदित करो और गोपियाँ मेरे विरह की व्याधि से बहुत ही दुखी हो रही है उन्हें मेरे सन्देश सुनाकर उस वेदना से मुक्त करो.गोपियों का मन नित्य-निरंतर मुझमे ही लगा रहता है मेरी प्रियसियाँ इस समय

बड़े ही कष्ट और यत्न से अपने प्राणों को किसी प्रकार रख रही है मैंने उनसे कहा था कि ‘मै आऊँगा’वही उनके जीवन का आधार है. उद्धव और तो क्या कहूँ मै ही उनकी आत्मा हूँ, वे नित्य मुझमे ही तन्मय रहती है.
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भगवान ने कहा – उद्धो मेरी मैया से जाकर कहना. जब मै सोकर उठता था तो आप सबसे पहले अपने हाथ से मेरा मुहँ धुलाया करती थी और माखन रोटी खाने देती थी यहाँ कोई मुझे माखन रोटी नहीं खिलाता, जल से मेरा मुहँ नहीं धुलाता. यहाँ तो मै माखन मिश्री का नाम तक नहीं जानता, कोई मुझे गोपाल कहता है, कोई कृष्ण, कोई गिरिधारी, पर ‘कनुआ’ कहकर मुझे कोई नहीं बुलाता.बाबा मुझे उगली पकडकर चलना सिखाते थे और जब मै चलते-चलते थक जाता था तो वे मुझे गोद में उठाकर ह्रदय से लगा लेते थे. गोपियाँ आती थी उलाहने देती थी पर मैया किसी की भी बात को चित पर नहीं लाती थी और कहती थी ‘एक मेरो लाला ही सच्चो है सारी दुनिया झूठी है.’ और जब कभी नहाते समय मेरे सर का एक बाल भी टूटकर गिर जाता था तो मेरी मैया बार-बार कुलदेवी को मनाती थी कि आज मेरे लाला को एक बाल टूट गया – हे माता ! मेरे लल्ला की रक्षा करना.
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जब भगवान श्रीकृष्ण ने यह बात कही तब उद्धवजी बड़े आदर से अपने स्वामी का सन्देश लेकर रथ पर सवार हुए और नंदगाँव के लिए चल पड़े. वे शाम ढलते-ढलते व्रज पहुँच गए. व्रज की दशा बड़ी दयनीय है ‘श्याम बिन बैरन भई कुंजे’ कोई सखी जल भरने यमुना तट पर नहीं जाती. गौए आँखों से आँसू बहाती, जहाँ-जहाँ कृष्ण ने उन्हें दुहा था वहाँ जाकर सूँघती थी.रमा कर गौशाला में ही घुस जाती थी. जब वे नंदबाबा के घर गए तो क्या देखते है बाबा घर की चौखट पर ओदे मुहँ पड़े है कृष्ण-कृष्ण उनके मुहँ से निकल रहा है. उद्धवजी ने कहा- ‘बाबा! उनकी आवाज सुनकर नंद बाबा ने सोचा की कृष्ण आ गए. उन्होंने उठकर देखा और पूँछा तुम कौन हो? तब उद्धवजी ने बताया मै कृष्ण का सखा हूँ जब कृष्ण-कृष्ण की आवाज अंदर से यशोदा जी ने सुनी तो झट से बाहर आ गयी और कहने लगी कृष्ण ने क्या सन्देश भेजा है

उद्धवजी ने कहा-उन्होंने आप दोनों के चरणों में प्रणाम भेजा है

यशोदा जी कहने लगी- क्या मथुरा में बैठा प्रणाम ही करता रहेगा,एक बार भी व्रज नहीं आएगा . उससे जाकर कह दो, यदि रोते-रोते मेरी आँखे चली गयी. और फिर वो आया तो मै तो उसे देख भी नहीं सकती. यशोदा जी उद्धवजी का हाथ पकड़कर अंदर ले गयी और ऊखल दिखाती हुई बोली- उद्धव एक दिन मेरे कान्हा ने एक माखन की मटकी फोड़ दी. मै भी कैसी पागल थी एक माखन की मटकी पर मैंने उसे इस ऊखल से बांध दिया,तो क्या इससे रूठकर वह मथुरा में जाकर बैठ गया है उससे जाकर कह देना अब उसकी मैया ऐसा कभी न करेगी बस एक बार व्रज आ जा .पालने की ओर इशारा करके बोली उद्धव धीरे बोलो मेरे कान्हा की अभी-अभी नीद लगी है फिर थोड़ी देर बाद बोली अरे कान्हा तो मथुरा में है. एक–एक लीला यशोदा जी और नन्द बाबा सुनाने लगे.उनकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे उनमे मानो प्रेम की बाढ़ ही आ गयी हो. सारी रात नन्द बाबा और यशोदाजी कृष्ण की चर्चा करते रहे. कब सुबह हो गयी पता ही नहीं चला. उद्धवजी नंदबाबा और यशोदा जी के ह्रदय में श्रीकृष्ण के प्रति कैसा अगाध प्रेम और अनुराग है यह देखकर आनंदमग्न हो गए/uddhv

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