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पूर्वांचल की धरा गोरखपुर में हजारों-हजारों जनों की वर्षो की साध पूरी करने पधारी वत्सल्यामुर्ती दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा जी ने श्रीमदभागवतकथा व्यासपीठ से सुधीजनों को पाथेय देते हुए कहा कि कथा भगती के साथ-साथ साहस भी जगाती हैं/पूज्या दीमाँ ने कहा कि आज देश में सज्जन संगठित नहीं है और दुर्जन सकिर्य है/ भय दुर्जन की सकिर्यता का नहीं वरन सज्जनों की निष्क्रियता का है/ राष्ट्रभगती से मन पावन होता है/ राम राष्ट्र के प्रतिक है और आस्था के केंद्र भी है मेरे राम एसे में राम मेरे राष्ट्र है और राष्ट्र मेरे राम/गुरु गोरक्षनाथ की तपोभूमि को पूज्या दीदी माँ जीने श्रीमदभागवत ज्ञानगंगा का अमृत प्रवाह कर अभिसिंचित किया/ श्रीमद्भागवत कथा करने चंपा देवी पार्क पहुची दीदी माँ व्यास पीठ पर पहुंचते ही अभिभूत हो गई उनोनेह कहा कि जब श्रद्धा और द्रष्टि मिल जाये तो पाषाण भी बोलने लगते हैं/ कथा का प्रारभं अति मन भावन भजन “कई जन्मों से बुला रहे हो, कोई तो रिश्ता जरुर होगा/नज़रों से नजरें मिला न पाएं,मेरी नजर का कसूर होगा/तुम्हीं तो मेरे माता-पिता हो, तुम्हीं तो मेरे बंधू सखा हो/कितने नाते तुम संग जोड़े,कोई तो नाता जरुर होगा”से किया/भजन सुन लोग भावविभोर हो भजन कि धुन पर ही नाचने झुमनें लगे/
पूज्या दीदी माँ जी ने भारत की सनातनी परम्पराओं और देश की वर्तमान परिस्थितिओं की चर्चा कथा के माध्यम से करते हुए नागरिक कर्तव्य बोध भी कराया/ अपने पाथेय में प्रेम,प्यार,स्नेह,ममता, करुना की बात करते हुए बताया कि प्रेम के वशीभूत होकर परमात्मा को भी नारी कि कोख का सहारा लेना पड़ता है अपने वात्सल्यमयी भावविभोर कर देने वाली करुणामयी वाणी में माँ के आँचल की भांति तेर रही उनकी ममता श्रधालुओं को उस परम रस का अवगाहन करा रही थी जिसका स्वाद मिल जाने के बाद जन्मों-जन्मों की प्यास मिट जाती है और जिसे जान लेने के बाद जानने को और कुछ शेष नहीं रह जाता/
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