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वात्सल्यामुर्ती दीदी माँ जी के सानिध्य में युवा बेटियों के व्यक्तित्व-विकास के लिये सुअवसर

vatsalya
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वात्सल्य ग्राम की अधिष्ठात्री वात्सल्य मूर्ति पूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतंभरा जी के पावन सानिध्य में वात्सल्य ग्राम वृन्दावन के आँगन,परम शक्तिपीठ के तत्वाधान में देश की बेटियों के समग्र विकास हेतु पन्द्रह दिवसीय “वात्सल्य व्यक्तित्व-विकास बालिका आवासीय शिविर” का आयोजन एक जून से पन्द्रह जून (पन्द्रह दिवसीय)किया गया है/ इस शिविर में देश के अनेक राज्यों की युवा बेटियां सम्मलित होकर अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाने की कलायं सीख सकती हैं/
देश के युवा व्यक्तिव को आज आवश्कता है सर्वोतम मार्गदर्शन की और यह हम भारतियों का परम सौभाग्य है कि केवल एक विभूति ही नहीं,विचारक नहीं वरन सम्पूर्ण एक विचारधारा के स्वरुप में माँ भगवती की अवतार वात्सल्य और ममता का साकार रूप परम पूज्या दीदी माँ जी का स्नेह आशीष और पाथेय प्राप्त होता है/ व्यक्तिगत,पारिवारिक,सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व में स्वाभिमान व् स्वावलंबन के साथ आत्मविश्वास में प्रखरता के निर्माण की दृष्टि से शिविर की योजना संपादित की गई है/
पूज्या दीदी माँ जी कहा करती हैं कि शिविर के इन पंद्रह दिनों में जो भी सर्वाधिक अर्जित कर सकती हैं उसके लिए स्वयं के मानस को तैयार कर सकें/ अपने आपको उसका सुपात्र सिध्द कर सकें और जितना भी समय मिलें उस समय का आप सदुपयोग कर सकें/ पूज्या दीदी माँ जी कहती हैं कि हम एक अनगढ़ पत्थर जैसे होते हैं/ अनगढ़ पत्थर जब किसी मूर्तिकार के हाथ में आता है तो वह उसमें से एक ऐसी मूर्ति तराश देता है जो कभी किसी मंदिर में प्रतिष्ठित हो जाती है और पूजनकीअधिकारी बन जाती है/ वह पत्थर जो ठोकरें खता है तथा जो कभी मार्ग कि बाधा बन जाता है वह पत्थर मात्र पत्थर होता है/लेकिन वही पत्थर परमात्मा कैसे हो जाता है?कैसे उस पत्थर में परमात्मा का स्पंदन अनुभव होने लगता है?यह पत्थर का कमाल नहीं है यह तो उन हाथों का कमाल है जो अपने कौशल से पत्थर में परमात्मा का दर्शन करवा देता है/पाषण प्रतिमा को परमात्मा के होने का संबोधन भाव जगा देता है/लेकिन इसके लिए जब तक पत्थर स्वयं को मूर्तिकार के हाथों में अर्पित नहीं करेगा तब तक वह प्रतिमा का स्वरुप धारण नहीं कर सकता/
एक ऐसा सुअवसर देश की बेटिओं के लिए आया है जब कि पूज्या दीदी माँ जी के आँचल और वात्सल्य के आँगन में न केवल ग्रीष्म अवकाश का आनंद ले सकेगीं वरन सचमुच में इंसान होने की इंसानियत से केवल वाकिफ ही नहीं होगीं बल्की इंसानियत को जीते हुयें मानवता की सेवा करते हुयें जीवन की धन्यता को महसूस भी करेगीं/

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