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“योग के विरोध का रोग”

आप की आवाज
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जब हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका के दोरें पर गये थे तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह दौरा ऐतहासिक दौरा बन जाएगा | इस दौरें को ऐतहासिक बनाने के बहुत से कारण हो सकते हैं लेकिन उन सभी कारणों में से सबसे अहम् कारण यह रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वरा सयुक्त राष्ट्र के संबोधन भाषण के दौरान अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को पूरे विश्व में मानाने की मांग करना | उसके बाद समूचे विश्वभर में तरह – तरह की बातों का बाज़ार गर्म होना शुरू हो गया था | इसी के कारण अखबारों में , टीवी , व रेडिओ पर जगह- जगह पर नरेन्द्र मोदी की तुलना स्वामी विवेकानंद से होने लगी थी क्योकि स्वामी विवेकानंद ने भी अमेरिका की धरती से समूचे विश्व को योग से परिचित कराया था | आख़िरकार कुछ महीनों बाद, लगभग 145 देशों के द्वरा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानाने का समर्थन करना इस बात का परिचायक हैं कि आज की इस भागम – भाग जिंदगी में योग कितना महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं | और इसीलिए 145 देशों के समर्थन के बाद सयुक्त राष्ट्र ने 21- जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानाने का फैसला लिया |

दुर्भाग्यवश जिस देश के प्रधानमंत्री ने समूचे विश्व को योग से जुड़ने का आह्वान किया हो उन्ही के देश में सबसे पहले ‘योग विरोध’ के स्वर उभर कर आये | लेकिन ऐसा सिर्फहिंदुस्तान में ही हो सकता हैं जहाँ एक ओर अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस को धूम-धाम से मानाने का प्रयास किया जा रहा हैं, वहीँ दूसरी तरफ इसका बेजा विरोध करने के तरह -तरह के बहाने खोजे जा रहे हैं | बहाने भी इस तरह के खोजे जाते हैं जिसकी आज के दौर में उनकी कोई प्रासंगिकता नही हैं | कई पार्टियों के नेताओ ने तो इसे सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की और इसी कोशिश के तहत योग को सांप्रदायिक और इस्लाम के खिलाफ तक बता डाला | जब बात इस तरह के आरोप लगाकर भी नही बनी तो इससे भी आगे निकल कर विरोधियों ने मोदी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी अथवा योग को जबरन थोपने वाली सरकार का आरोप लगा डाला | लेकिन विरोधी यह भूल रहे हैं कि जिन 145 देशों ने समर्थन किया हैं उनमें से लगभग 45 इस्लामिक देशों का समर्थन प्राप्त हैं | सभी देश अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मानाने के लिए अलग- अलग तरह की तैयारी कर रहे हैं | साथ – ही – साथ वह अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानाने के लिए बहुत उत्सुक भी नजर आ रहे हैं | भारत की धरती पर योग अनादि काल से चला आ रहा हैं और भगवान शंकर को योग का आदि गुरु माना जाता हैं | योग का अर्थ होता हैं ‘जोड़ना’ तो फिर सबसे बड़ा सवाल उन लोगों के लिए जो योग को सांप्रदायिक अथवा इस्लाम विरोधी क्रिया मानते हैं तो फिर क्यों 45 से ज्यादा इस्लामिक देशों ने योग को बड़ी ही सहजता के साथ स्वीकार क्यों किया और सयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानने का समर्थन क्यों किया हैं ? यह वही लोग हैं जो भारत विरोधी गतिविधि को तो बड़ी ही सहजता के साथ स्वीकार करते हैं साथी ही साथ धर्म एवम् संप्रदाय की आड़ में अपनी अपनी वोटों के दुकान को चलते रहते हैं | जब कश्मीर में देश विरोधी झंडे फेराए जाते हैं तब ये लो कहाँ चले जाते हैं ? जब इनकी देशभक्ति कहाँ चली जाती हैं ? उस समय इनकी तरफ से कोई भी विरोध का स्वर निकल कर नहीं आता हैं |

आज जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समूचे विश्व में घूम घूम कर देश का मान व् सम्मान बड़ा रहे हैं साथ ही साथ समूचे विश्व को योग के जरिये जोड़ने का जो काम किया हैं | वह न केवल नरेन्द्र मोदी की उपलब्धि हैं वल्कि यह 125 करोड़ देशवासियों का सम्मान हैं | उसका ये लोग बेजा विरोध कर रहे हैं | लोगों को अपने अपने धर्म मानने की धर्मिक स्वतंत्रता हैं और कोई भी सरकार की दूसरें धर्म के लोगों पर कोई भी कार्य जो गैरधर्मिक हो उसको सरकार किसी भी कीमत पर किसी दूसरें समुदाय पर थोप नही सकती हैं | जिस समय समूचे देश को एकजुट होकर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का अगुआ बनकर समूचे विश्व को योग दर्शन कराना हैं उसी समय देश की बड़ी बड़ी पार्टियों के राजनेता एक दूसरें पर आरोप प्रत्यारोप लगा कर इस योग दिवस को फेल करने की योजना बना रहे हैं | कोई कहता हैं कि हमें योग से नही सूर्य नमस्कार से ऐतराज हैं तो कोई कहता हैं कि हमें योग किसी भी रूप में स्वीकार्य ही नही हैं | आख़िरकार सबसे बड़ा सवाल जो बार – बार उठता हैं कि योग के विरोध का रोग जो हमारें राजनेताओं को लगा हैं उसका इलाज किया इस योग द्वरा ही निकलेगा ? या फिर यह रोग केवल दिखने के लिए लगा हैं जिसके कारण अपनी वोट बैंक का योग बना सके ? इसी बीच सयुक्त राष्ट्र के प्रमुख बान की मून का बयान आता हैं कि योग शरीर और आत्मा को जोड़ने की कला हैं जो एकाग्रता , शांति व स्थिरता प्रदान करती हैं | न ही यह किसी भी तरह से धार्मिक निजता का हनन करती हैं और इसको कोई भी कर सकता हैं | तो सबसे बड़ा सवाल यह की नेताओं को योग के विरोध का रोग क्यों लगा ? क्या इसके पीछे वोट बैंक के योग का अहम् कारण हैं ? अगर हाँ तो इस तरह की राजनीती देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं | नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि का भी ध्यान रखना चाहियें और देशहित आकर सभी को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को सफल बनाना चाहिए |

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