ईश्वर ने जब ये दुनिया बनाई तब सब कुछ बहुत ही सोच समझ के बनाया। पेड़ ,पंछी,फूल और भी बहुत कुछ, जिनमें सबसे सुंदर बनाया इंसान को और उनके जीवन की हर परिस्थिति से जुड़े कुछ रंग। हर रंग हमारी जिंदगी की किसी ना किसी भावना से जुड़ा है। हर रंग की अपनी एक अलग पहचान है और एक रंग वो भी है जिसे हर भावना के साथ जोड़ा जा सकता है। ऐसे ही वो रंग मेरी जिंदगी से भी जुड़ा है।
इस लेखन का शीर्षक ही बता देता है के वो रंग कौन सा है। वैसे तो ये रंग सभी को बहुत पसंद होता है – जैसे काले रंग के कपड़े पहनना लड़कियों को बहुत पसंद होता है लेकिन ये रंग जिंदगी में कुछ इस तरह आजाता है कि कोई और रंग अपनी जगह बना ही नही पाता। कोई रंग अगर आने की कोशिश भी करे तो ब्लैक में मिलकर वो भी ब्लैक बन जाता है।
यह स्टोरी बस मेरी नहीं है , यह स्टोरी हर भारतीय लड़की की है। इनकी जिंदगी भी इसी रंग के इर्द – गिर्द घूमती है। कहने को तो जिंदगी में सारे रंग है लेकिन ये ब्लैक रंग उन सभी रंगो को ढक लेता है। ईश्वर ने इनकी किस्मत काले रंग की स्याही वाले काले परमानेंट मार्कर से लिख दी जिसे चाह के भी मिटाया नहीं जा सकता और अगर कोई मिटाना चाहे भी तो या तो वो पन्ना ही फट जाता है या फिर वो कभी मिटेगा ही नहीं। एक लड़की की जिंदगी शुरू भी इसी रंग से होती है और खत्म भी इसी रंग पे आके हो जाती है।
घर में एक बेटा पैदा होता है तो बोला जाता है के मुबारक हो बेटा हुआ है। ढोल बजवाए जाते है, मिठाईयां बांटी जाती है, नाचना – गाना होता है और इन्हीं दिखावटी लोगो की दुनिया में अगर एक बेटी पैदा हो जाती है तो बोला जाता है के कोई बात नहीं अब हो ही गई है तो कोई बात नहीं, अगली बार भगवान बेटा ही देगा। ये वही दिखावटी लोग है जो नव दुर्गा पूजन में नौ दिन मां दुर्गा की पूजा करते है, दीपावली पे माता लक्ष्मी की पूजा करते है और वसंत पंचमी पे माता सरस्वती की पूजा करते है। ये वही लोग है जिन्हें एक मां ने जन्म दिया, इतना दर्द सहकर इस दुनिया में लाई , पाल पोस कर इतना बड़ा किया।
किसी ने मुझे कहा था , ” जिंदगी एक बार मिलती है, इसे खुल के जीना चाहिए” लेकिन ये बात मुझे समझने में काफी वक्त लगा के ये ” जिंदगी एक बार मिलती है , इसे खुल के जीना चाहिए” वाला रूल हम लड़कियों के लिए एप्लीकेबल नहीं है। लड़कियों की लाइफ बिना पहियो की गाड़ी की तरह समझी जाती है , जिसे किसी ना किसी के सहारे की जरूरत होती हो। पहले पिता के हाथो में, फिर भाई के हाथो में और फिर शादी के बाद पति के हाथो में रह जाती है जैसे उसका खुदका कोई अस्तित्व नहीं , उसकी खुदकी कोई इच्छाएं नहीं, जैसे उसके खुदके कोई सपने नहीं है।
कभी – कभी तो लगता है जैसे पाप है एक लड़की होना। “women empowerment” जैसे शब्द अखबारों में और किताबो के कुछ पन्नों तक ही रह जाते है। असल जिंदगी में इनका कोई मतलब ही नहीं समझ पाता। इन कुछ शब्दों से मै एक औरत की मनोस्थिति को पूरी तरह से तो नहीं दर्शा सकती पर ये शब्द एक कोशिश है उनकी स्थिति को लोगो तक पोहचने की। आशा करती हूं के आने वाली पीढ़ी एक औरत को समझने की कोशिश करेगी।
-शिवांगी त्यागी ( विद्यार्थी )
डिक्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी तरह के आंकड़े या दावे का समर्थन नहीं करता है।
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