Menu
blogid : 5111 postid : 787182

एकला चलो रे

समय की पुकार
समय की पुकार
  • 43 Posts
  • 22 Comments

आगामी महीने सम्पन्न होने जा रहे महाराष्ट के विधान सभा चुनाव में गत बीस सालों से गठबंधन के तौर पर चलने वाले शिवसेना और भाजपा की जोडी इस समय खतरे में है। दोनों दल बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लडने की मांग पर अडे हुये हैं। ताजा समाचारों तक शिवसेना जहां भाजपा को मात्र 119 सीटें देने के लिए तैयार है वहीं भाजपा का कहना है कि वह कम से कम 135 सीटों पर चुनाव लडने की इच्छुक है। दोनों अपने अपने को वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में सीटों के बंटवारे की बात कर रहे हैं लेकिन यह वर्तमान  ʺपरिप्रेक्ष्‍य ʺ क्या है यही स्पष्ट नहीं है।
वैसे तो हर पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटो पर चुनाव लडना चाहती है। लेकिन महाराष्ट में शिवसेना ने जो अकड दिखायी है उसके पीछे हाल ही में संपन्न हुये उपचुनावों के नतीजो को विशेष महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चुनावों के परणिाम आने के पहले शिवसेना उतना आक्रामक नहीं थी जितनी की परिणाम आने के बाद हुयी। इसके पहले भी कुछ प्रतिक्रियाये शिवसेना की ओर से आयी थीं कि ʺअब भाजपा की लहर समाप्त हो गयी हैʺ या फिर नरेन्द्र मोदी की हवा कमजोर पड गयी है। हालांकि विपक्षी दल इसे ʺमोदी का गुब्बारा फूटनेʺ की बात कहते है। इस पर भाजपा ने कडी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। भाजपा को अपने प्रधान मंत्री या फिर पार्टी की इतनी सख्त आलोचना पची नहीं और उसने भी कडा रूख अपना लिया। मुंबई दौरे के समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का शिवसेना प्रमुख से मुलाकात भी काफी विवादास्पद रहा । पहले तो उन्होने मिलने का कोई कार्यक्रम नहीं बनाया लेकिन शिवसेना के अंत में बुलाये पर मिलने का कार्यक्रम बनाया। फिर चुनाव परिणाम आ गया तो शिवसेना को कहने का मौका मिल गया और उसने काफी कडा रवैया अपना लिया।

अब  स्थिति यह है कि गठबंधन अब टूटा कि तब टूटा की बेला मे आ गयी है। दोनो दल एक दूसरे को इस तरह से अल्टिमेटम दे रहे हैं जैसे दो दुश्मन देशों की सेनाये सीमा पर एक दूसरे को  चेतावनी देती है। यहां  भाजपा के छोटे स्तर के नेताओं कम से कम पार्टी अघ्यक्षों के हैसियत से नीचे के नेता बयानबाजी कर रहे हैं। शायद दोनेा  पार्टियों को यह लग रहा है कि हो सकता है कि इसी बयान बाजी से कोई रास्ता निकल आये। लेकिन जानकारों का मानना है कि पानी इस कदर सिर से उपर जा पहुंचा है कि पाट्री के प्रमुख नेताओं के हस्तक्षेप के बिना कुछ अच्छा हल निकलने की उम्मीद कम है। कुछ नेताओं का यह कहना है कि भाजपा को इस मामले में वहीं नीति अपनानी चाहिए जो नीति प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधान मंत्री के रूप में घोषित करने के वकत पार्टी ने लिया था। उस समय भी पार्टी के अंदर और बाहर विरोध करने  वाले काफी थे। लेकिन जो निर्णय हुआ वह आगे चलकर भाजपा के लिए फायदे का सौदा हुआ। भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि गठबंधन में रहते हुये जब कुछ दल अपने को कई मौकों पर गठबंधन से इतर जाकर निर्णय लेते है और उस समय गठबंधन की भावनाओं का ख्याल नहीें करते तो फिर अकेले भाजपा पर ही गठबंधन धर्म निभाने का दबाव क्यों बनाया जाता है। उदाहरण देते हुये कहते हैं शिव सेना पूर्व राष्ट पति प्रतिभा पाटिल के चुनाव के समय शिवसेना के गठबंधन के निर्णय को नजर अंदाज करते हुये महाराष्टीयन होने के नाते समर्थन देने की बात कही थी और उन्हे अपना वोट भी  दिया था।

एक तरफ ये लोग गठबंधन की बात कहते हैं और दूसरी तरफ गठबंधन के निर्णयों के खिलाफ जाते हैं।  तो फिर भाजपा भी कब तक गठबंधन के नाम पर अपना अहित करती रहेगी ॽ शिवसेना को अगर यह लगता है कि उपचुनाव के परिणामो के बाद भाजपा की वह स्थिति नहीं रह गयी है तो भाजपा इसके कई कारण गिना सकती है लेकिन शिवसेना को यह भी याद रखना होगा गठबंधन से अलग रह कर उसका भी कोई लाभ नही  होगा। इसका फायदा शरद पवार की पार्टी और कांग्रेस को हो सकता है। यहां एक बात और कहा जा सकता है कि भाजपा के इस कथन भारी दम है कि भाजपा उन सीटों का बंटवारा करने की ज्यादा इच्छुक है जहां से शिवसेना कभी भी जीत नहीं पायी है। आखिर शिवसेना को इन हारी हुयी सीटों का इतना मोह क्यों हैॽ कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh