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कुत्ते की दुम

समय की पुकार
समय की पुकार
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एक कहावत कही गयी है कि कुत्ते की दुम को कितनी ही सीधी करने की कोशिश करो कितना ही प्यार दुलार पुचकार मारों तेल मालिश करों लेकिन वह टेढी की टेढी ही रहेगी। ठीक यही कहावत उग्रवादी नेता पाकिस्तान की सरकार का दुलारा हाफिज सईद के बारे में भी कही जा सकती है। अभी अभी उसका बयान पढने को मिला है जिसमें पाकिस्तान में सरकारी छत्रछाया में बैठ कर वह मजे से बयानबाजी कर रहा है । ताजा बयान में उसने कहा है कि अभी जो पाकिसतान के पेशावर मे आतंकवादियों ने एक स्कूल में सैकडों छात्रों केा मौत के घाट उतारा है उसके लिए प्रधान मंत्री मोदी जिम्मेदार हैं। उसने इसके बाद सीधे सीधे भारत से बदला लेने की धमकी भी दे दी है।

इस दर्दनाक घटना पर जहां पूरा विश्व शोक मना रहा है वहीं इस आतंकवादी ने एसा न करके जहर उगलना शुरू कर दिया है। वास्तव में यही वह बात है जिसके चलते पूरे विश्व मे आतंंकवाद को बढावा मिलता है। अभी तक पाकिस्तानी प्रधान मंत्री नवाज शरीफ की ओर से शईद के इस बयान पर कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आयी है लेकिन उनका प्रतिक्रिया आना कोई मायने नहीं रखता। इस बयान के बाद तो शरीफ को चाहिए था कि सईद को गिरफ्तार कर तुरंत भारत को सौंप देते। आज दुनिया जिस प्रकार से बच्चों की मौत का मातम मना रहा है उस तरह से शायद मुबई हमले के समय नहीं मनाया था। एसा क्यों मात्र इसलिए कि उसमें बच्चों की मौत नहीं हुयी थी। लेकिन मुंबई की घटना में जो लोग मारे गये थे वे भी किसी के बच्चें तो किसी के पति तो किसी के भाई और बहन थे।

पेशावर की घटना के बाद दुख व्यक्त करने के अलावा जहां तक प्रतिक्रियाओं का संबंध है तो कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति यह कहने से अपने को नहीं राके सकता कि ʺ बोया पेड बबूल का तो आम कहां से होयʺ। आखिर यह आतंकवाद जिसे पाकिस्तान अपने अपने तर्क से दोतरफा प्रयोग करता था आज उसके ही गले की हड्डी बन गयी। अभी तो शायद देश की आवाम की प्रतिक्रिया के डर से शरीफ ने कहा है कि आतकवाद के खात्मे तक वे चैन से नहीं बैठेगें। लेकिन उन्हे अब चैन से जनता ही नहीं बैठने देगी। ये बच्चे किसी घूर के ढेर पर कबाड बीनते लोगेां के बच्चे नहीं थे। ये ब्च्चे उन सैनिकों के थे या उनके जैसे लोगों के थे जिन्होने अब तक शरीफ को संरक्षण दिया था या यूं कहें कि शरीफ ने उन्हें संरक्षण दिया था जिन्हाेने अन्य आतंकवादी घटनाओं को कभी अपने उपर महसूस नहीं किया था। इन सैनिकों के सिपहसलाहकारेां या मुख्यिों भारत सहित अन्य देशों में होने वाली आतंकवादी घटनाओं को अपने अपने तरह से परिभाषित किया और अपने को निर्दोष बताया था। अभी सईद कह रहा है कि इसमे मोदी का हांथ था। पता नहीं उसकी खुपिया एंजेंसियां कितनी मजबूत हैं। हो सकता है कि यह भाषा उसने जो अपने सरकारी आकाओं से सीखे हो उसकी उपयोग किया हो।

विश्व मे जब जब आतंकवादी घटनाये घटी हैं तो अक्सर विश्व समुदाय ने इसे अपने अपने नजरियें से देखा और उसके अनुसार अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी है। इसमें कही न कहीं उनका अपना अपना स्वार्थ सिद्ध हाेता रहा है। लेकिन जब उनके अपने उपर पडी है तो उनका नजरिया दूसरा ही रहा है। चाहे अमेरिका हो या पाकिस्तान। अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबानों बढावा रूस के खिलाफ दिया। लेकिन जब उसकी आलिीशान इमारत ध्वस्त हुयी तो उसको लगा कि यह तो बुरा हुआ। यहीं हाल पाकिस्तान का भी है। आये दिन भारत में खून खराबा मचवाना उसके विदेश निीति का हिस्सा रहा। उसे शायद यह नहीं मालूम था कि उसकी यह नीति उसके उपर जब भस्मासुर की तरह पडेगी तो क्या होगा। हुआ भी एसा ही। आगे इसके बाद भी वह चेतेगा इसकी संभावना कम ही हे। अगर उसके प्रण में केाईदम है और वह अब भी आंतक वाद में भेद नहीं रखता तो उसे दुनिया को दिखानी चाहिए कि वास्तव में उसके कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। इसके लिए उसे भारत में आंतक वादी घटनाओं के जिम्मेदार सईद को तथा दाउद इब्रहिम को भारत को सौंप देना चाहिए और मुबई हमलों के लिए उसके अपने देश में जो मुकदमा चल रहा है उसकी जितनी जल्दी हो सके सुनवाई पूरी कर दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाना चाहिए। तभी सिद्ध होगा कि वह आतकवाद के खिलाफ कुछ करना चाहता है वरना हांथी के दांत खाने के और दिखाने के और ही रहेगें। यह काम सईद के रैलियों के लिए स्पेशल गाडी चला कर पूरी नहीं की जा सकती । यह काम अपने यहां कश्मीर की वादियों में चल रहे आतंकवादी अडडों को ध्वस्त करके ही पूरी की जा सकती है।

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