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छेड。खानी करो ना

समय की पुकार
समय की पुकार
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आज कल सुबह सुबह जब भी अखबार के पन्नों को पलटिये तो ʺछेडखानीʺ की खबरों की भरमार होती है। लगता है कि पूरे देश मे एक मात्र यही कार्यक्रम रह गया है जिसपर ज्यदा जोर दिया जा रहा है। इसमें क्या बूढे क्या जवान क्या मजदूर क्या किसान चौकी दार से लेकर दीवान और दारोगा तथा आम आदमी से लेकर उंची उंची कुर्सियों पर बैठे लोग एक ही कार्यक्रम को अमल में लाने में अपना धर्म समझ रहे हैं। लगता है देश में चारों तरफ दुःशान चीर हरण कर रहा है। इन सभी में कितनी सच्चाई है यह तो करने वाला जाने या फिर करवाने वाला या आरोप लगाने वाला। लेकिन इन सबके पीछे संबंधित पक्षों की जो भी मंशा हो मेरे मन में भी एक सवाल बार बार उठता है कि वास्तव में जितने समाचार छप रहे हैं क्या वे सभी सत्य हैं। इसका मतलब मैं उनकी सत्यता पर उंगली नहीं उठा रहा। लेकिन जब कुछ इस तरह का मामला हो जिस पर लोग हंसने और चटखारे लेकर मजे ले रहे हों तो भला इस प्रकार की कहानियों पर से पर्दा आखिर उठाये तो कौन उठाये। एक मामला हम आपके सामने रखते हैं आपको फैसला करना है कि आखिर इस मामले में यह ʺछेडखानीʺ कहां तक ʺछेडखानीʺ है और कहां लेन देन दानी।
मामला वाराणसी जिले के फूलपुर थाना से संबंधित है। इस थाना क्षेत्र के मंगारी बाजार में एक व्यकित रहता है जिसका साग सब्जी और फलों की सगडी लगाने का धंधा है। मियां बीबी बच्चों को मिला कर लगभग आधा दर्जन लोगों का परिवार है। मियां साहब का काम दिन भर गांजा दारू और हिरोइन पीकर अपने आप में मस्त रहना। बीबी ही अक्सर कभी दुकान पर कभी फलों की सगडी पर अपनी ड्यूटी देती है। कभी कभार बच्चे भी इनके कामों में सहयोग कर देते हैं। यह परिवार जिस जगह रहता है उसके बगल में दूसरा परिवार भी रहता है। बगल में स्थित जमीन को लेकर पुश्तैनी विवाद चला आ रहा है और इसमें कई किश्तों में मुकदमें बाजी के बाद लगभग आठ नौ बरस से मुकदमा फैसला होने के बाद समाप्त हो गया है। यह बता दूं कि मुकदमें का फैसला इस नशेडी परिवार के खिलाफ गया है। इसके दो और भाई भी हैं जो इस नशेडी परिवार से अलग रहते हैं। इस नशेडी की बीबी के चर्चें पूरे क्षेत्र में है। इसके फल और सब्जी के धंधे से इतनी आय नहीं होती कि यह पूरे परिवार का पेट पाल सके। लेकिन घर की शानओ शौकल इस तरह के हैं कि अच्छे अच्छों को भी जलन हो सकती है। घर में रंगीन टीवी केबल और अन्य तमाम तरह की सुविधाये यहां मौजूद है। इसके ठेले के आस पास ʺभौंरेʺ अक्सर मंडराते रहते हैं। इन भौरेां में कई पुलिस वाले भी है। ये अपने ʺधंधेʺ में कभी कभी इनका भी इस्तेमाल करती है। इस औरत का पति मंगारी बाजार में बिकने वाले हीरोइन गांजा के विक्रेता का सहयोगी है अौर अक्सर उसके आस पास ही मंडराता रहता है। इस भौंरो में एक विशेष भौंरा स्थानीय ग्राम गंगापुर का एक भौरा है जो अपने पिता के कारण डाक विभाग में नौकरी कर रहा है। इसके आदतों से खफा इसके परिवार वालों ने इससे दूरी बना ली है। अब इसका आसारा यही इसी कली के साथ है। जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां। पूरी की पूरी तनखाह की यह नई मालकिन आज अपने पूर रौ में है। हों भी क्याें न ॽ सैंया भये कोतवाल तेा डर काहे काॽ
इस मालकिन का काम अब यही रह गया है कि पति के करतूतों में शामिल हो आये दिन मारपीट की घटनाओं को ʺछेडखानी ʺ का रूप देना। जब भी पति किसी के साथ नशे की हालत में मारपीट करता है तो पत्नी के साथ सीधे थाने जाकर ʺछेडखानीʺ का मुकदमा लिखाने की कोििशिश की जाती है। कभी मुकदमा दर्ज हो जाता है कभी नहीं भी दर्ज होता। एक बार इस औरत ने अपने एक साहूकार के खिलाफ एक बार मारपीट और छेडखानी का मुकदमा दर्ज करायी। गनीमत रही कि उस समय का पुलिस स्टाफ इसके बहकावे में नहीं आया और मामला मारपीट तक ही सीमित रह गया। हांलांकि कुछ लोग इसे लेन देन का मामला भी बताते हैं।
आज कल एक नया मामला चर्चा में हैं। कुछ महीनों पहले इसके नशेडी पति ने शराब के ठीेके पर अपने कुछ दोस्तों के साथ दारू पी जब शुरूर चढा तो नौबत मारपीट तक पहुंच गयी। नौबत सिर फुटौवल तक तो नहीं पहुंची हां नोच खरोंच तक अवश्य पहुंची । मनबढ और साथियेां की मदद से पत्नी पहुंच गयी थाने और दे दी दरखास्त बस फिर क्या था अंधे को चाहिए देा आंख। पुलिस वाले इस कदर फास्ट हो गये जैसे मानों पाकिस्तानी सेना ने भारत पर आक्रमण कर दिया हो। रात में घटी घटना पर विचार विमर्श के पश्चात रजामंदी से भारतीय दंड संहिता की धारा 151 में चालान कट गया। बात आयी गयी हो गयीं । अब शेर के मुंह में खून लगा तो उसे मांस चाहिए। यहां तो मामला उल्टा हो गया। मालकिन के हांथ कुछ लगा नहीं और पुलिस खा गयी केस। बडे कप्तान तक मामला पहुंचा लेकिन वही ढाक के तीन पात। चूंकि मामला गंभीर था नहीं और पुलिस भी जानती थी कि मामला झूठा है इसलिए कोइ्र आगे की कार्य वाही नहीं हुयी। मालकिन को कुछ दोस्तों ʺयारोंʺ और मनचलों ने राय दी कि क्यों न इस मामले का कुछ और विस्तार किया जाय और कुछ ऐसे लोगों को भी फंसाया जाय जिनसे मोटी रकम मिल सकती हो। बस फिर क्या था। पूर्व में जिस परिवार वालों से मुकदमा चला था उसके घर के लागेां को भी इसमें शामिल करते हुये कप्तान साहब के यहां फरियाद पहुंचायी गयी । मामला फिर पहुंचा थाने। पुलिस अब फिर फास्ट हुयी उसे भी लग रहा था कि इस बार मालकिन ने कुछ खास मुर्गा दिया है। वह तफसीस करने लगी। और पूर्व मुकदमें वाजी वाले परिवार को एसा डोज दिया कि बेचारे का हार्ट फेल हो गया और वह असमय ही स्वर्ग सिधार गया। पुलिस कुद ठंडी हो गयी कि मामला उल्टा न हो जाये। बेचारे दिवंगत आत्मा को शांति देने के लिए उसके परिवार वालों और बच्चों ने इस मालकिन व उसके पति को निमंत्रण दे दिया। पति ने छककर पूडियां खाई और फिर मौके का इंतजार करने लगा। एक तो स्वर्ग सिधार गया था लेकिन एक व्यक्ति और था जो अपनी नौकरी की अंतिम दहलीज पाकर यह सोच कर घर आया था कि कुछदिनों तक आराम करेगें। लेकिन यह क्या । आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास। उसे क्या मालूम कि मालकिन ने इसका नाम भी अपने साथ छेडखानी में शामिल कर लिया है।
इस समय मालकिन ने कोर्ट से इसी मामले में जांच कर दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया है। मामला पुनः उसी थाने पर आ पहुंचा जहां कई बार पुलिस ने अपनी रिपोर्ट दे चुकी है और मामले को झूठा करार दे चुकी है। लेकिन फर्क इतना है कि अब दूसरे जांच अधिकारी आ गये हैं और उनके हांथ मे शिकायती प्रार्थना पत्र के साथ तमाम अखबारेां की कटिंग भीहोती है जिसमें देश के तमाम अधिकारियेां और मंत्रियों तथा न्यायालयीय आदेशों निर्देंशों की कटिग होती है जिसमें ʺछेडखानीʺ करने वालों के खिलाफ कडी से कडी कार्य वाही करने का आदेश और निर्देश छपा होता है। आखिर मामला ʺछेडखानीʺ का जो है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से जमानत न होने की धैंस साथ साथ होती है। मामले में कुत्ते के सामने मजबूत हड्डी जेा दिखायी दे रही है। क्ष्‍ोत्र के संभ्रान्त लोग लाख बता रहे हैं कि मालकिन की शिकायत झूठी है लेकिन पुलिस को समझये तो कौन ॽउसे तो बिल्ली के भाग से छींका टूटा नजर आ रहा है। यह बात और है कि मालकिन की कुडली बांचने का पुलिस के पास न तो समय हैै न ही इच्छा। नहीं तो थाने में मौजूद रजिस्ट नंबर आठ ही इसका और इसके पति का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देते । अब बेचारा शरीफ आदमी मारा मारा फिर रहा है। मालकिन पूरे बाजार और क्षेत्र में कुंलांचे मार रही है। दावतो का दौर जारी है और दलालों की भागदौड का क्या कहना।
अब आप अपना विचार दिजिए कि आप इस ʺछेडखानीʺ को कितना नंबर देगें। क्या इसी तरह से देश मेें छेडखानियां होती रहीं तो आप क्या करेगेंॽ अापके विचारों का हम बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

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