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मुंहनोचवा स्टूडियों में

समय की पुकार
समय की पुकार
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वर्षों पूर्व उत्तर भारत में एक कहावत या यूं कहें कि अफवाह बडी तेजी से फैली थी जिसके तहत कहा जा रहा था कि रात के अंधेरे में या वैसे भी सुनसान जगहों पर आदमी को पाकर एक अजीव तरह का आदमी या जानवर आता है जो लोगों के मुंह को ʺनोच ʺ लेता था और उसे जख्मी कर देता था। महीनेां तक चले इस डरावनी कहानी का धीरे धीरे अंत हो गया और वैज्ञानिकाें सहित किसी ने भी इस रहस्यमयी घटना से पर्दा उठाने मे सफलता नहीं पायी थी। लोग इस रहस्यमयी किरदार का नाम ʺमुंहनोचवाʺ रख छोडा था। चुंकि इस किरदार का कोई प्रत्यक्ष् दर्शक नहीं था इसलिए इसकी शक्ल सूरत के बारे में किसी को कोई वास्तविक जानकारी नहीं हो पाई थी। मैं इस कहानी के विस्तार में न जाकर इस कहानी के मुख्य पात्र ʺ मुंहनोचवाʺ की चर्चा करना प्रासंगिक समझता हूं। इस देहाती कहावत का किरदार मेरे सामने या यूं कहे कि मेरे जेहन में कल दिनांक 6 सितंबर को सायंकाल 7-30 बजे एक बार पुनः चरितार्थ होता हुआ नजर आया। बात कर रहा हेू बी बी सी हिंदी सेवा की । इस रेडियों प्रसारण का सायंकालीन कार्यक्रम ʺ दिन भरʺ काफी लोकप्रिय कार्यक्रम है और इसमें प्रति शनिवार को होने वाला विशेष कार्यक्रम ʺबीबीसी इंडिया बोलʺ काफी लोकप्रिय है। इस कार्यक्रम में कल के कार्यक्रम का विषय था ʺ मोदी सरकार के 100 दिन क्या खोया क्या पायाʺ। इसमें श्रोताओं के साथ ही दो प्रमुख पार्टियों सत्तारूढ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के दो प्रतिनिधि उपस्थित थे जिन्हें श्राेताओं सहित कार्यक्रम में भाग लेने वाले अन्य लोगेां के साथ अपने विचारों को आदान प्रदान करना होता हे।

दोनों दलों के प्रतििनिधयों में कांग्रेस की ओर से शकील अहमद जी थे और भाजपा की तरफ से मीनाक्षी लेखी थीं। कार्यक्रम के दौरान संचालन करने वाले बी बी सी प्रतिनिधि के रूप में मोहनलाल शर्मा जी थे। पूरे कार्यक्रम के दौरान देखा गया कि शकील अहमद जी इस प्रकार की टिप्पडी कर रहे थे जैसे कि चुनावी प्रचार कर रहे हों और वे दूसरी की टिप्पडी सुनने को तैयार ही नहीं थे। मोहन लाल शर्मा की बार बार के अनुरोध के बावजूद कि यह रेडियों का कार्यक्रम है और अगर आप इसमें इस प्रकार की दूसरे की टिप्पडी के दौरान टोकाटाकी करेगें तो यह समझ में ही नही आयेगा कि आप या सामने वाला क्या कह रहा है। फिर न तो आपके कहने का मतलब होगा न सामने वाले का। अक्सर यह देखा गया कि जब मीनाक्षी लेखी कुछ कहना प्रारंभ करती थीं तो शकील जी तुरंत टोकने लगते थे। लगता था कि उन्होने यह तय करके बोलने की तैयारी की थी मुझे किसी को सुनना नहीं है सिर्फ बोलना और बोलना है। एक बार तो यह भी सुनने में आया जब कि विवश होकर मीनाक्षी जी को यह कहने पर मजबूर होना पडा कि अगर शकील जी इस तरह से तमीज के साथ विचार नहीं रखेगें तो फिर मै कोई बात नहीं कर सकती। लेकिन इसके बावजूद शकील जी अपने आदत से बाज नहीं आ पाते थे। मेरा यहां उस कार्यक्रम के विषय पर कुछ भी टिप्पडी करने का विचार नही है। कयों कि इस कार्यक्रम को अभीभी बीबीसी की वेवसाइट पर सुना जा सकता है। कोई भी समझदार व्यक्ति शकील जी की टिप्पडियों और उनके तरीकों को पसंद नहीं कर सकता ।

चुनाव में करारी हार के बावजूद कांग्रेसी अभी भी सुधरने को तैयार नहीं हैं। शायद यही कारण रहा कि शकील जी अभी भी चुनावी रौ में बहते नजर आ रहे हैं। या फिर उन्हें अपने आका को यह सुनाना रहा हो कि हम किसी से कम नहीं और हम मीनाक्षी जी को बहस मे पराजित कर दिये। वास्तव में मीनाक्षी जी जहां एक महिला के रूप में अपने सौम्य भाषा का इस्तेमाल कर रही थीं तो शकील जी अपनी पार्टी की भाषा का। उन्होने गत 5 सितबर को मोदी जी द्वारा पूरे देश मे जो बच्चों के लिए संबोधन किया वह भी उन्हें पसंद नहीं आया खास तौर से वह टिप्प्डी की हम टीचर्स का एक्सपेार्ट कर सकते हैं । उनका कहना था कि टीचर क्या कोइ्र कमोडिटी है। अरे महाशय टीचर को मोदी ने कमोडिटी तो कहा नहीं कि उन्हें बाकायदे सील मोहन दुरूस्त कर बोरियों में भर कर भेज दिया जायेगा। जरा इस पर भी दिमाग लगाया होता कि भाषणों लेखों और कहानियों में कुछ भावनाओं संकेतों का भी स्थान होता है। और मोदी जी अपनी भावनाये ही तो व्यक्त कर रहे थे। लेकिन अापको तो केवल विरोध के नाम पर विरोध करना था और किया भी । लेकिन यही विरोध सभ्य तरीके के साथ किया होता न किसी ʺ सामने वाले का मुंह नोचवा ʺ की तरह मुंह नेाच कर । वास्तव में अगर रेडियों का स्टूडियेां नहीें होता तो कोर्इ भी सभ्य व्यक्तित्व वाला कार्यक्रम छोड कर बाहर आ जाता।

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