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माननीय प्रधान मंत्री जी ǃ क्या आप बता सकते हैं कि आपके संसदीय क्षेत्र बनारस में ताजमहल और लालकिला कहां हैॽ नहीं नॽ आप कह सकते हैं कि गत दिनेां वाराणसी दौरे पर जब आप आये थे तो आपने ताज होटल में डिनर की थी। जी नहीं मैं ताज होटल की बात नहीं कह रहा हूँ। मैं उस ताजमहल और लालकिले की बात कह रहा हूं जिसको बनारस की एक सडक मिलाती है और यह आपके संसदीय क्षेत्र आराजी लाइन ब्लाक के कोरौत गांव सभा में है और इस सडक का निर्माण कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षी कार्यक्रम मनरेगा के तहत जिले के उक्त गांव सभा से लेकर जिले के तमाम उच्चाधिकारियेां द्वारा बनाई गई है। इस सडक को बनाने में करोडों रूपये खर्च हुये हैं। यह बात और है कि यह सडक आप ʺढुुंढते रह जायेगेंʺ की तर्ज पर बनायी गई और यह कागजो पर ही हे। इस सडक की खोज वाराणसी के दैनिक जागरण नामक समाचार पत्र ने की थी। उस समय लोग दंग रह गये थे। लेकिन बनाने वाले दंग नहीं हुये थे। इस प्रकार की एक से बढ कर एक सड。क बनारस ही नहीं कई जगहों पर बनायी गयी और इस कागजी सडक पर गाडियां फर्राटे मार रही है।इसी प्रकार की एक सड。क वाराणसी के पिण्डरा ब्लाक के अंतर्ग गांव नयनपुर पश्चिमपुर अहरक नाम से भी सन् 2010 में बनायी गयी है और इस पर लगभग 20 लाख रूपये खर्च किये गये है। हमने जब इस सडक की सवारी करनी चाही तो पता चला कि इस का कहीं कोई नामोनिशान नहीं है। संबंधित गांव के प्रधानों से भी पूछताछ की तो पता चला कि हमारी जानकारी मे कोई सडक नहीं है।
यह तो रही सडक की बात । अब आपको मनरेगा के तहत कराये गये एक और कारनामें का जिक्र करना उचित जान पडता है। वाराणसी के ही पिण्डरा ब्लाक में ही एक नहर है बाबतपुर रजवाहा नहर यह शारदा सहाय की नहर है जो पिण्डरा ब्लाक के समीप से गुजरती है। इस नहर में सिल्ट सफाई के नाम पर लाखों का घोटाला किया गया है। ʺकैथोली माइनरʺ के नाम से इस नहर के सिल्ट सफाई करने वालों में इस क्षेत्र के ऐसे ऐसे लोगों ने काम किया है कि आप सुनेगें तो दंग रह जायेगें। जी हां इसमे अंधे भी काम किये हैं जिन्हे उनके घर के लोग भी हांथ पकड कर एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाते है। जिसे आप अपनी भाषा मे ʺअंधेʺ इतना ही नहीं इस माइनर की सिल्ट सफाई मे संबंधित गांवों के ग्राम प्रधान स्वयं और उनके परिवार के पुत्रों पत्नियोंं लगायत मित्रों और शुभचिंतको की भारी फौज है। इसमें ऐसे लोग भी काम किये बताये गये हैं जो ʺभूंतोेʺ की तरह से आसानी से एक जगह से दूसरे जगर पर एक ही साथ दिखायी देते हैं। कहने का मतलब यह कि जो व्यक्ति दूसरे जगहर पर नौकरी करता है वह उसी समय इस नहर की सफाई का काम भी करता बताया गया है। क्या मजेदार बात है। जब योजना लागू की गयी थी तो बताया गया था कि इस कार्यक्रम के लागू होने से गांव के कमजोर वर्ग के लोगों को गांव में ही काम मिलेगा। लेकिन इस नहर ने सिद्ध कर दिया कि गावं मे सबसे कमजोर व्यक्ति गांव का प्रधान और उसका परिवार ही होता है। दूसरा व्यक्ति वह कमजोर होता है ग्राम प्रधान को चुनाव में जिताने की भूमिका या खास मित्र मंडली का होता है। इस माइनर की खुदाई या सिल्ट सफाई मे ब्लाक के नेवादा परसादपुर और गजेन्द्रा तीन गांवों के सैकडों मजदूरों को कथित भुगतान किया गया है।
तीसरा उदाहरण पिण्डरा ब्लाक के ही मंगारी गांव सभा की है। यहां मंगारी बाजार के पीछे एक गढ्ढे की सफाई के नाम पर ऐसे लोगो ने काम किया कि मजबूर हाेकर इस काम के प्रति शिकायत मिलने पर काम को इस लिए रोक देना पडा कि यहां कि निगरानी में कैमरों की आंखे लगी हुयी थीं । यहां का ग्राम विकास अधिकारी कहता है कि काम कोई भी कर सकता है भुगतान उसके परिवार के किसी भी व्यकित् के खाते में किया जा सकता है भले ही उसने काम न किया हो। मैने इसकी शिकायत भी की थी। लेकिन शिकायत को झूठा करार दिया गया। जब कि फोटोग्राफी और सरकारी दस्तावेज सहित कई सबूत साथ में थे। जांच कार्यवाही उसी को दी गयी जिसके खिलाफ शिकायत थी। और इसी ग्राम विकास अधिकारी की रिपोर्ट को नीचे से लेकर उपर तक पहुंचाया जाता रहा और शिकायत कर्ता काे झूठा करार दिया जाता रहा।
इसी प्रकार से तमाम गांवों और कस्बों में वृक्ष लगायेे गये उनकी सुरक्षा के लिए कथित ब्रिक गार्ड भी बनाये गये लेकिन अधिकांश का कहीं भी अता पता नहीं। मनरेगा के प्राविधानों के तहत किसी भी कार्य के शुरू करने फिर कार्य करते हुये और अंत में कार्य समाप्ति के पश्चात फोटो लेना अनिवार्य होता है लेकिन किसी भी गांव के कार्य में इन मापदंडों का पालन नहीं किया गया। अगर किसी गांव में पूर्व में कुछ फोटो अपलोड किये गये थे तो उसे वर्तमान समय में हटा लिया गया है। एसा खास तौर से इस भय से किया गया है कि सीबीआई ने जांच प्रारंभ कर दी है।
जहां तक गांवों मे जांब कार्ड का प्रश्न है तो कार्ड जितनी संख्या में बने हैं उसके अनुसार काम की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं कि गयी है।यहां यह भी कहा जा सकता है कि लोगों ने काम किया ही नहीं या काम दिया ही नहीं गया। एसा भी देखने में आया है कि लोगों ने जांब कार्ड इस आशा में बनवा लिये कि उन्हे भविष्य मे बिना काम किये ही बेरोजगारी भत्ता मिलने लगेगा। जैसा कि वर्तमान सरकार के पदारूढ होते ही बेरोजगारी भत्ते के लिए लोगों ने लंबी लबी लाइने लगानी और पंजीकरण सेवायोजन कार्यालय मे फार्म भरने होड मच गयी थी। लेकिन मनरेगा में बिना काम किये बेरोजगारी भत्ता पाने का तब तक प्राविधान नहीं है जब तक कि काम मांगा न गया हो। इस प्रकार की सूचनायें नहीं है जिसमे बेरोजगारी भत्ता दिया गया हो।
मनरेगा को लेकर वर्तमान सरकार का जो रवैया है उसमे अभीतक बिना किसी बडे परिवर्तन के यह पाया गया है कि इसमे व्याप्त धांधली को देखते हुये अब इस योजना को पिछडे इलाको तक सीमित किया गया है। इसके साथ ही अब कच्चे और पक्के कामों का औसत पैमाना भी बदल दिया गया है। अभी तक देखा गया है कि जहां भी कच्चे काम हुये है वहां वहां ज्यादा घपलेबाजी हुयी है। प्रायः देखा गया है कि सडको को बुलडोजर से बनवाया गया नालियां जेसीबी से खुदवायी और काम मजदूरों द्वारा किया गया दिखा कर सारा का सारा पैसा ग्राम प्रधान से लेकर जिले के अधिकारियों की जेब में चला गया। कभी कभार गांव के कुद जागरूक निवासियों ने कहीं शिकायत की तो उल्टे ही दोषी करार दिया गया। गावों मे एक ही तालाब या सडक को बार बार खोदा या बनाया गया बता कर पैसा निकाला गया। इस विषय पर गत पखवारे बीबीसी ने एक परिचर्चा आयोजित की थी जिसमें अर्थशास्त्री रीति खेडा आमंत्रित की गयीं थीं। उन्होने पूरे देश और बाहर के लोगाें के भष्टाचार संबंधी शिकायतों पर कहा था कि लोग बार बार गढढों को खुदवाने की बात करते हैं लेकिन कोई उदाहरण नहीं देता। इस पर अगर किसी ने कुछ गांवों मजरों का नाम लिया तो उनका कहना होता था कि हो सकता है कि कोई एक गांव या मजरा एसा हो लेकिन अधिकंश जगह काम सही हुआ है। पता नहीं उन्हे हर जगह काम सही होने का ही तर्क किस आधार पर देना अच्छा लगा जब कि फर्जी काम और फर्जी भुगतान का अवसर नब्बे और दस प्रतिशत का मिलेगा। यह फर्जी भुगतान सन् 2010 के आसपास ज्यादा मिलेगा। एसा इसलिए भी तब भुगतान मजदूरों को बैंक एकाउन्ट के माध्यम से न होकर नकद रूप में अधिकारियेां द्वारा सीधे किया जाता था । एसी स्थिति मे अपना हिस्सा काटकर भुगतान करने की परंपरा ज्यादा थी। मै कह सकता हूं कि वाराणसी जिले के पिण्डरा ब्लाक में ब्लाक मुूख्यालय से सटे गांव नेवादा में एक तालाब की खुदाई गांव में जितने प्रधान हुये सभी ने कराये लेकिन इसका फायदा किसी को नहीं मिल रहा है। और इसमें गंदे नाले बहाये जा रहे है। इसी प्रकार से एक नहीं प्रायः हर गांव मे देखने को मिलेगा। अगर रीति खेडा जी गांवों का दौरा करेंगी तब उन्हे वास्तविकता से दो चार होना पडेगा। उनका यह कहना कि इस प्रकार की शिकायते कुद सोची समझी चाल है यह उनकी मानसिकता का परिचायक हो सकता है। लेकिन वास्तविकता के बारे मे उन्हे कवि ʺधूमिलʺ की उस कविता के तहत समझना होगा जिसमें उन्होने कहा था कि ʺलोहे का स्वाद उस लोहार से मत पूछो जिसने उसे लगाम बनायी बल्कि उस घोडे से पूछों जिसके मुह मे यह हमेशा लगा रहता है।ʺ वैसे भी मनरेगा के भ्रष्टाचार की कहानी हर गांव की हे और हर जिले की । अब जब सीबीआई ने यह जांच शुरू की है ताे वास्तविकता सामने आ ही जायेगी। यहां आपको बता दूं कि मनरेगा के घपलो और घोटालों के विषय मे मैंने कई शिकायत आनलाइन ʺसंवेदनʺ पोर्टल पर की लेकिन कोई संतोषजनक कार्यवाही करने की अपेक्षा सभी ने लीपापोती ही की।
आप को बता दूं कि कैथोली माइनर जिसका जिक्र मैने उपर किया है उसके बारे मे प्रथम बार शिकायत करने पर जो तथाकथित जांच कार्यवाही प्रशासन द्वरा अमल लाइ गई उसको देखने से यह लगा कि जिसने चोरी की उसे हीजांच का काम सौंप दिया गया। और जब जांच वही करेगा तो किस प्रकार की जांच वह करेगा इसका अंदाजा आप भी आसानी से लगा सकते हैं। यहां आपकों यह भी बता दे कि अभी पिछले हफ्ते ही अपने को नहर विभाग का एक जूनियर इंजिनियर बताने वाला आया था और बात बात मे कहा कि काम तो बहुत अच्छा हुआ फिर आप शिकायत बार बार क्यो करते हैंॽ मैने कहा कही अंधे भी काम करते हुये पायेगें। तो उसका जबाब था कि क्येां नहीं अगर उसका जांब कार्ड बना है तो वह काम क्यों नहीं करेगा। उसके अनुसार जांब कार्ड बनना ही सारे शिकायतो के निस्तारण के लिए काफी है।उसका यह भीकहना था कि आप चाहे जितनी शिकायत करों मैं वहीं रिपोर्ट दुंगा जो मुझे देनी है। आप जितनी भी शिकायत करेां कुछ नहीं होगा। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस विभाग के इंजिनियर के खिलाफ शिकायत की गयी वहीं जांच करने आया और कहता है मैं जो रिपोर्ट दूंगा वहीं सच है। अब देखना हे कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर जो जांच प्रारंभ की गयी है उसमें इस इंजिनियर की बातों में कितना दम दिखता हे।
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