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सर्व शिक्षा या सर्व भिक्षा अभियान

समय की पुकार
समय की पुकार
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सर्व शिक्षा अभियान के तहत देश भर में तरह तरह के कार्य क्रम चलाये जा रहे है। इनमें मिड डे मील से लेकर यूनिफार्म वितरण और पुस्तकों के वितरण सहित अन्य कार्यक्रम भी है। इन कार्यक्रमों का कितना लाभ बच्चों को मिल रहा है इसका वास्तविक आंकलन पता नहीं सरकारों द्वारा किया जा रहा है भी या नहीं। कार्यक्रम के हकदार अपने लाभ को भले ही न पा रहे हों लेकिन इस व्यवस्था को लागू करने वाली एजेंसियों के जरूर पौ बारह है। इस समय विद्‍यालयों में यूनिफार्म के वितरण को लेकर भारी सरगर्मी है।इनमें छात्र जहां अपने लिए दो युनिफामे पाने की आस लगाये हुये हैं वहीं एजेंसिंयांं अपनी जेंबें गर्म करने को लेकर लालायित हैं।
विद्‍यालयेां में जब से यूनिफार्म वितरण का काम शुरू किया गया है तब से लेकर इसे सरकारें अपने ʺमकसदʺ को लेकर ज्यादा सतर्क हैं और अपने ʺवोट बैंकʺ को लेकर तो और भी ज्यादा। बसपा की सरकार आयी ताे युनिफार्म का रंग अपने चुनावी झंडे के रंग अर्थात नीला कर दिया तो सपा सरकार आयी तो इसे बदल कर खाकी कर दिया।
युनिफार्म वितरण में गत साल भी भारी धांधली और लूट खसोट का मामला प्रकाश में आया था और इस साल भी इसमें कोई कमी होगी यह नहीं कहा जा सकता। हां यह जरूर हुआ कि जांच के नाम पर कुछ और लोगों ने अपनी जेबें गरम कीं। वैसे तो इसके वितरण मे सरकार द्वारा गाइड लाइन जारी होते है। लेकिन इसका कितना पालन होता है इसके विषय मे लोगों के अपने अपने विचार और खयालात हैं। सरकार और इसे जारी करने वाली एजेंसियां जहां यह कहती है सब कुछ सही तरीके से किया गया है वहीं आम जन मानस यह कहता है कि घटियां किस्म के कपडो की बेतरतीब सिलाई और कपडों की क्वालिटी इस कदर है कि बस पूछ्यिे मत।
सरकारी नियमानुसार प्रत्येंक छात्र को दो सीट कपडे देने के लिए चार सौ रूपसे दिये जाते हैं। लेकिन इन चार सौ रूपये का कपडा वास्तव में छात्र पाते भी हैं या नहीं इस विषय मे कोई जांच अभी तक की गई हो एसा तो सुनने में आया नहीं है। इस समय रेडिमेड के दुकान दारों की भागदौड देखते ही बनती है। जहां भी कोई शिक्षक दिखायी दिया कि ʺमास्टर साहब प्रणामʺ साहब नमस्कार और इस कदर मिन्नते करते हैं कि जैसे उनके सबसे प्रिय ये मास्टर साहब प्रधान जी या फिर ग्राम शिक्षक समिति के सदस्यगण हों।हांलांकि इन्हीें शिक्षकों ये दुकान दार अपने पक्ष में सौदा तय न होने पर गाली भी देते है।
अभी हाल में जारी गाइड लाइन के मुताबिक प्रत्येंक एक लाख की खरीद पर टेंडर और बीस हजार की खरीद पर कोटेशन लेने का प्रावधान किया गया है। इसकी मियाद भी अक्टूबर 2014 तक है और अभी तक एक भी स्कूल का टेंडर किसी जगह निकाला गया हो एसा देखने में नहीं आया है। हां कुछ दुकान दार सुबह होते ही विद्‍यालयों पर लाल नील पर्ची और कम्यूटराइज्ड फोटो स्टेट कोटेशन को  लेकर पहुंच रहे हैं और चरण स्पर्श के साथ निमंत्रण के रूप में मास्टर जी को दे रहे हैं। मास्टर जी प्रधान जी सदस्य महोदय इन दुकानदारों के द्वारा दिये गये इन पर्चियों को चेकों की भांति सहेज कर रख ले रहे हैं और बाद में दुकान पर आकर सौंदा तय कर लेने की बात कह रहे हैं। इन पर्चियों और कोटेशनेां पर अपने हिसाब से रेट भी भर या भरवाये जा रहे हैं।
बाजारेां में अगर थोक में युनिफार्म की खरीद की जाय तो जिस प्रकार के कपडों और सिलाई आदि के युनिफार्म वितरित किये गये है उस प्रकार के युनिफार्म की कीमत दो सेट की 250 रूपये 275 रूपये से ज्यादा नहीं होगी। लेकिन सरकार द्वारा चूंकि 400 रूपये निर्धारित है अतः चार रूपये से 10 या 5 रूपये से कम के कोटेशन और बिल बनाये जाते हैं।इसके अतिरिक्त दुकानदार इसके बाद स्कूल तक पहुंचनाने का खर्च  भी इसी पर जोडते हैं और इसके बाद शेष राशि का बंदरबांट शुरू होता है।
सरकार को यह देखने का मौंका नहीं है कि इन युनिफार्म पर करोडों रूपये जाे वह देती है उसपर टैक्स आदि के रूप में भी ये दुकान दार देते हैं या नहीं। अधिकांश दुकानदार किसी रजिस्टर्ड फर्म या दुकानदार की टैक्स नंबर पिन और टिन नंबरो का दुरूपयोंग कर अपने कोटेशनों आदिपर लिखवाते हैं और बाद में जांच होने पर अपने दायित्वों से मुकर जांते है। ये दुकान दार न तो बिक्री कर देते हैं और न ही आय कर देते है। इनका ʺ करʺ भुगतान सिर्फ कागजों और प्रधानों प्रधानाचार्यो या फिर ग्राम शिक्षा समितियेां के सदस्यों या फिर कभी कभी बीआरसी के प्रभारी अधिकारी के जेंब में जाती है। सरकार ने कभी यह सोचने का काम ही नहीं किया कि अगर यही काम वह किसी एसी एजेंसी या सरकारी महकमें से कराती तो उसे टैक्स के रूप में लाखों रूपये मिलते । इस कार्य में कितने घपले और घोटाले हो रहे है और इनमें किन किन लोगों का सहयोग और साथ है इस विषय में अगर कोई पूछने की हिम्म्त करता है तो उसे ठीक से जबाब भी नहीं दिया जाता । इस संबंध में मैंने भी सन् 2011से लेकर पिछले साल तक वाराणसी के पिंडरा बीआरसी प्रभारी और बेसिक शिक्षा अधिकारी से बार बार जन सूचना के तहत सूचना मांगने का काम किया लेकिन ब्लाक स्तर के खंडअधिकारी से लेकर जिले स्तर के बेसिक शिक्षा अधिकारी तक किसी ने भी सूचना देने की जहमत नहीं उठाई। इसका परिणाम यह हो रहा है कि जहां बच्चों को सही युनिफार्म नहीं मिल रहा है वहीं सरकार के खजाने को प्रदेश भर मे करोडों रूपये के राजस्व की हानि हो रही है। मजे दार बात हे कि जब कभी भारी दबाव के चलते कोई तथाकथित जांच की जाती है तो ये ही दुकान दार जो वितरण के पहले बडी बडी बाते करते है जांच के समय इस कार्य को किये जाने से ही अपने को विरत बताते हैं। एसा इसलिए कि इनका न तो कोई किसी विभाग में पंजीयन होता है और न ही ये किसी प्रकार का टैक्स देते हैं। जब कि इनके द्रारा चेको से भी भुगतान प्राप्त किया गया होता है। वैसे इनकी कोशिश होती है कि इन्हें भुगतान नगद ही मिले।
देखने में आया है कि वे दुकान दार जो वितरण के पहले खुद प्रधानाचार्यो और ग्राम प्रधानों के यहां दरबार लगाते थे वहीं वितरण के पश्चात और भुगतान पा जाने पर ये ही अध्यापक ग्राम प्रधान दुकान दारों के यहां कमीशन के लिए सुबह साम दौड भाग करते हैं। क्या इस तरह का प्रावधान नहीे किया जा सकता कि इन युनिफार्मों की खरीद पर मिलने वाली आय पर या बिक्री होने वाली आय पर टैक्स आदि लगाया जा सके।

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