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आत्मसम्मान

मेरी आवाज
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शिवेष सिंह राना
सभी का सम्मान उनके आचरण पर निर्भर करता है। इसलिए सभी को अपना सम्मान पाने और बनाए रखने के लिए इस ओर ध्यान देना चाहिए। यदि आत्मसम्मान नहीं है तो समझिए कुछ भी नहीं।
आत्म सम्मान के लिए आवश्यक है कि हम खुद अपनी गरिमा और सीमा को समझें व उसी के अनुरूप अपना कार्य व्यवहार करें।
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उचित कार्य व व्यवहार तभी संभव है, जब हम अपने दिन भर के कार्य का अवलोकन स्वयं करें। हमें देखना चाहिए कि हमने कौन से ऐसे कार्य किए जिन्हें हमें नहीं करना चाहिए था, और किए गये अच्छे कार्यों को और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है।
हमें सदैव दूसरों के प्रति अच्छी भावना रखनी चाहिए। ‘‘हमें अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए अपने आत्मसम्मान का सौदा कदापि नहीं करना चाहिए।’’
हमारे व्यक्तित्व में सबसे महत्वपूर्ण चीज कुछ है तो वह है हमारा आत्मसम्मान अतः किसी भी प्रकार से इसकी सुरक्षा करना हमारा दायित्व है।
कभी-कभी फायदे के लिए हम अपना ज़मीर दांव पर लगाने से नहीं चूकते। यह आत्मसम्मान के लिए खतरा है क्योंकि ‘‘लालची व्यक्ति का आत्मसम्मान कभी बरकरार नहीं रह सकता। इसलिए लालच से खुद को दूर रखने के लिए आत्मसंयम बरतना चाहिए।
जब आपकी समझ पर काफी कुछ निर्भर करता है। यदि हमें यह मालूम हो जाए कि क्या सही है और क्या गलत? तो गलत काम करने से पहले एक बारगी कदम जरूर रुकते हैं। लेकिन फिर भी हम गलत काम दोबारा दोहराते हैं तो स्वयं ही आत्मसम्मान नष्ट कर लेते हैं।
आत्मसम्मान पाने में हमें जितनी मेहनत करनी पड़ती है और इसे खोने में जो क्षणिक मूर्खता करनी पड़ता है, उसमें धरा और आकाश सा अन्तर है।
इसे पाने के लिए ऐसे उच्च कार्य करने पड़ते हैं, जिनका कोई मोल नहीं है। कुछ ऐसे कार्य हमें आत्मसम्मान खोने पर मजबूर कर देते हैं । अतः हमें उन गलत कार्योे को त्यागकर अच्छे कार्यों पर जोर देनरा चाहिए।
हां एक बात और कह दें आत्मसम्मान को झझकोर कर रख देने में हमारी जुबान(वाणी) की अत्यन्त तीखी एवं तीव्र भागीदारी रहती है। जुबान चाहे तो हमें आत्मसम्मान दिला सकती है ओर चाहे तो हमें गालियां दिला सकती है।
अतः सदैव बात-चीत के ढ़ंग को शालीनता से सुदृढ़ता पूर्वक लहजे से प्रस्तुत करना चाहिए।

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