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समय की धंुध में खोया मोची

मेरी आवाज
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शिवेष सिंह राना
लोगों को एक स्थान से दूसरी जगह ले जाते हैं पैर। यदि थोड़ी देर चलने पर ही आपके पैर दर्द भरी चुभन से जवाब दे जाएं तो आप क्या करेंगे? आपकी कोमल त्वचा के बेशकीमती पैरों पर आपका शरीर टिका हुआ है, और इस महत्वपूर्ण भाग को महफूज रखने की जिम्मेदारी है फुटवियर की। फुटवियर का काम करने वाले मोची पूरी शिद्दत के साथ आपके मासूम पैरों को सुरक्षित रखने की पुरजोर कोशिश करता है।
मोची अमूमन चमड़ा कारोबार से जुड़े वह मेहनतकश लोग हैं जो हमारे पैरों की सुन्दरता बनाए रखने के लिए चमड़े की काट-छांट करते हैं। आपके चप्पल-जूतों को जोड़ते हैं और उसकी खूबसूरती को बनाए रखनेे के लिए उसे ऐसा पाॅलिश करते हैं कि आपकी नूरानी शक्ल भी उसमें लाजवाब दिखाई देती है।
समय बदला, लोग बदले, उनकी मानसिकता बदली लेकिन नहीं बदला तो वह है मोची का काम। भले ही लोग सस्ते के लालच और कम पैसों में सौख पूरा करने के मंसूबे से चमड़े की जगह रेक्सीन, रबड़ आदि के फुटवियर पहनने लगे हों मगर जब उन्हेें फुटवियर की रिपेयरिंग करानी होती है तब वह पहँचते हैं मोची की दुकान, क्योंकि यही है वह स्थान, जहाँ हो सकता है फुटवियर संबंधी सभी कष्टों का निदान।

mochi ki shop
mochi ki shop

तीन पीढि़यों से मोची का काम करने वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाले 20 वर्षीय दुकानदार संदीप बताते हैं कि ‘‘बाबू जी सबका अपना-अपना काम है, हमें लोगों के पैरों की देखभाल करना अच्छा लगता है। लोग महंगे-सस्ते फुटवियर की चंद रुपये देकर रिपेयरिंग करवा लेते हैं, नही ंतो उनकी जी तोड़ और दिन-रात मेहनत की कमाई यूं ही बर्बाद न हो जाए? बाबू लोगन की कृपा से दाल-रोटी चल जाती है बस।
अठ्ठारह वर्षों से एक ही स्थान पर फट्टे पर सामान बिछाकर बर्रा बाईपास में मोचीगिरी का काम करने वाले दयाराम दर्दभरी आवाज में कहते हैं कि ‘‘साहब पूरी उमर लोगन के जूता चमकावन मा निकल गई। अब हमसे अउर कौनव काम कीन्हें नाईं होई।’’
जाड़ा-गर्मी-बरसात हमेशा रोड किनारे दुकान सजाने के सवाल पर वह बताते हैं कि ‘‘का करें, जब पैसा होई तबहिने तो दुकान कर पावेंगेे न? पुराने साहब लोगन के घर ते निकरे कपड़न ते जाड़ा पार हुई जावत है। पास के हैण्डपम्प ते पानी लाके गर्मी काटि डारत हन। अउर रही बात बरसात की तौ दुकान का सामान पल्ली ले ढक यादव मार्केट चैकी के छज्जा तरे बारिश रुकैं का इन्तजार करित हन। होइनैं दारोगा-सिपहियन के जूता मुफत मा चमका देइत हनैं।’’
उन्होंने बताया सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक लगातार काम करने से रात में जोर को कमर दर्द उठता है, लेकिन पत्नी सहित चार बच्चों के परिवार का भरण-पोषण उन्हीं की आमदनी पर टिका है।
हमारे पैरों की देखभाल करने वाले इन मोचियों की बेहाली से भले ही लोग कोई वास्ता न रखते हों, लेकिन असलियत यही है कि लोगों के पैरों देखभाल को अपना कर्म मानने वाले और बेमौसम लगातार काम करने के बाद भी मोची कैसे अपने परिवार का पेट पाल रहे हैैं ये किसी से छुपा नहीं है।
…….तो ऐसे आई मोची परम्परा
बुजुर्ग बताते हैं कि किसी राज्य में विचरण करते हुए एक राजा के पैरों मेें मिट्टी लग गई, तो उसने अपने दरबारियों से इस समस्या से निजात पाने के उपाय पूंछे। दरबानों के कई सुझावों के बाद एक आम नागरिक ने बादशाह के पैरों में पाॅलीथीन पहना दी। जिससे राजा के पैरों का गंदा होना खत्म हो गया। धीरे-धीरे यह क्रिया विकसित होती चली गई और तरह-तरह के जूते-चप्पल आदि से पैरों को सुरक्षित रखा जाने लगा।

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