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मुस्कुराती ‘बेबसी’

बावरा मन
बावरा मन
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 (फोटो गूगल से साभार)
(फोटो गूगल से साभार)

चिथरों में लिपटी
दिखती है हर रोज ‘वो’
कि भीगोती है सर्द हवाएँ
हर रात उसे

नयन कोर पर
‘बेबसी’ मुस्कुराती है
चेहरे की मुस्कराहट
बेबसी छुपा जाती है

छिड़ी है ‘जद्दोजहद’
खुद से लड़ने की
समेटे खुद को खुद में
मुक्त आसमां के नीचे
धरा पर बिखरने की

बादल झूमे
सावन के उर में
पर सूखी हर तृष्णा
दिल के अंदर
‘अकाल’ पोषित हो रहा
प्यासा है वो ‘भीत’ समंदर

‘वो’ चीखती, चिल्लाती है
हर रोज कई बार
पर सुनता कौन है
देख लो ‘तमाशा’ यह
यहाँ हर कोई ‘मौन’ है

http://kumarshivnath.blogspot.in/

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