Menu
blogid : 25873 postid : 1377879

“तो फिर लिखो….अगर तुम लिखते हो !”

ख़ुराफ़ाती बालक
ख़ुराफ़ाती बालक
  • 11 Posts
  • 1 Comment

“तो फिर लिखो….अगर तुम लिखते हो !”

अगर तुम लिखते हो एक युवा की आज़ादी पर,
उसकी स्वछंदता पर !
तो फिर लिखो एक बाप के विवशता पर,
और एक माँ की ममता पर !

अगर तुम लिखते हो इश्क़ को, गुलाब को मोहब्बत को,
तो फ़िर लिखो भूख को, गेँहू को और चिपके हुए आँत को !

अगर तुम लिखते हो प्रशस्ति गान एक देवी का,
तो फ़िर लिखो कुछ गीत,अनकहे क्रन्दन,एक वैश्या के।

अगर तुम लिखते हो समाज के बुराइयों को,
तो फिर उससे पहले लिखों इनको खत्म करने के उपायों को ।

अगर तुम लिखती हो नारी उत्पीड़न पर, अपमान और समाज पर,
तो फिर लिखो गार्गी,लक्ष्मीबाई और रजिया सुल्तान पर !

अगर तुम लिखते हो कन्याकुमारी में हुए सूर्योदय पर,
तो फिर लिखो गाँव के उस चरवाहे के सूर्यास्त पर !

अगर तुम लिखते हो पराधीनता, उपनिवेशवाद और अपमान को,
तो फ़िर लिखो स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाभिमान को ।

अगर तुम लिखते हो रात के शानदार सुखद नींद को और स्वप्न को,
तो फिर लिखो एक तिरंगे से लिपटे फ़ौजी के जिस्म से बहे रक्त को !

अगर तुम लिखते हो मंजिल की खोज में जगी अधखुली अलसाई आँखों को,
तो फिर लिखो मंजिल पर कदमों के निशानों को !

~ राघव शंकर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh