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“पाॅलिसी आफ पाॅलिशिंग”

ख़ुराफ़ाती बालक
ख़ुराफ़ाती बालक
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जगत मिथ्या है,जगत के सभी सिद्धांत मिथ्या हैं।
अगर कुछ यथार्थ है तो वह है
“पाॅलिसी आफ पाॅलिशिंग” ।

यह पॉलिसी सार्वभौमिक है,
जाति,धर्म,देश,काल खण्ड सबसे परे ।
भूतकाल में अगर किसी का सर्वाधिक संरक्षण हुआ तो वह इसी पॉलिसी का हुआ,
वर्तमान में अगर कोई सर्वाधिक फल फूल रहा है तो वह यही पाॅलिसी है ।
और अगर भविष्य के लिए कोई सबसे ज्यादा सुरक्षित है तो वह भी सिर्फ और सिर्फ पाॅलिश वाली पाॅलिसी ही है ।
अब आप सोच रहे होंगे कि
पाॅलिसी आफ पाॅलिश है क्या ?
पढ़ते जाइए सब पता चल जाएगा ।
यहाँ पर पाॅलिश का अर्थ वही है जो आप जानते हैं,
लेकिन आप सब लोग इसका विस्तृत अर्थ जानते हैं,
यह कहने में मुझे संदेह हैं।

इसलिए बताता हूँ कि आखिर यहाँ पाॅलिश का अर्थ क्या है ,
अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश के अनुसार पाॅलिश का मतलब होता है “खुरदरे को चिकना करना” ।
उदाहरण स्वरूप-
1•खुरदरी दीवाल को प्लसतर (अपभ्रंश शब्द )
किया जाता है जिससे वह चिकनी हो जाए और दिखने में अच्छी लगे ।
2•) जूते को पाॅलिश करना,
ताकि पुराना जूता नया जैसा दिख सके ।
3•) आधुनिक सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग भी एक तरह की पाॅलिशिंग ही है ।( इस पर ज्यादा चर्चा खतरनाक साबित हो सकता है ।)
आदि आदि।
अब ऊपर के उदाहरण देखकर तो आप सोच रहे होंगे
कि यह सब तो हमे भी पता है,फिर मतलब क्या है लिखने का इसे !
अरे क्या भाई ! इतना भी सब्र नहीं है,
पढ़ते जाओ,
पढ़ोगे तभी तो मतलब समझोगे ।
ऊपर जितने उदाहरण दिए गए हैं,
यह सब पाॅलिश की पाॅलिसी के ऊपर एक और पाॅलिश हैं जो कि मूलतत्व( इस पाॅलिसी के खौरेपन) को छुपाने का काम करते हैं ।

मूलतत्व?

हाँ, मूलतत्व ।

अब जिज्ञासा बढ़ी न आपके अंदर !
यही तो मैं चाहता था ।
जिज्ञासा शान्त करने के लिए
पढ़ते जाइये ।
मूलतत्व क्या है इसकी व्याख्या यहाँ से शुरू होती है ।
(ध्यान से पढ़िएगा, मूलतत्व समझना इतना आसान नही है ।)
आजकल टीवी वाले पुलिस वालों
के रात में सोने का स्टिंग कर रहे हैं।
टीवी रिपोर्टर अपनी रात की नींद हराम करके पुलिसकर्मियों की जिंदगी हराम कर रहे हैं ।
स्टिंग ऑपरेशन कर रहे हैं !
वो बेचारा सो रहा होता है कि
मुह में माइक घुसेड़ देते हैं।
अब यह तो बड़ी दिक्कत की बात हो गयी।
ईमानदार, नमकहलाल, भ्रष्टाचार की विनाशक, जनता की सेवक भारतीय पुलिस पर लाँछन लगाया जा रहा है ।
घोर अनर्थ हो रिया है ।
अब इस अनर्थ को ठीक करने के लिए,
यहाँ पर “पाॅलिश वाली पाॅलिसी” को
अप्लाय किया जाता है,
कोई अज्ञात पुलिस कर्मी एक करूण पोस्ट लिखता है,
जो कि हम जैसे फेसबुक से बाहर न निकलने वालों को कन्विन्स कर सके कि संसार में अगर किसी का सर्वाधिक शोषण हुआ है तो वो सिर्फ और सिर्फ भारतीय पुलिस है ।
उस करूण विलापापत्र में चुन चुन कर वें शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, जो कि आपका हमारा सीना छलनी कर दें ।
जैसे कि-
“क्या हम पुलिस कर्मी इंसान नही हैं ?
क्या हमारे बाल बच्चे नही हैं ?
क्या हमे उनकी याद नही आती हैं ?
क्या हम बीमार नही होते हैं ?
हम भी इंसान हैं साहब,
हमारे भी बच्चे हैं,
हम भी बीमार पड़ते हैं ,
लेकिन हम 24 घंटे अपनी ड्यूटी पर रहते हैं,
जानते हैं क्यूँ ?
सिर्फ आप सब के लिए,
सिर्फ जन सामान्य की सेवा करने के लिए ।”
– पुलिस स्टाफ ।
और फिर इसको लिखने के बाद इसे बेचने का सिलसिला शुरू होता है ।
कोई बहुत बड़ा और ईमानदार छवि वाला पुलिस आॅफिसर उसे अपने अकाउंट पर शेयर कर देता है।
अब हम लोग तो हैं ही “कुछ भी बेचिए हम खरीदेंगे” टाइप के लोग , महान और भावुक इसलिए उस पोस्ट को पढ़ कर आँसू बहाने लगते हैं ।
सहानुभूति तो इतनी हो जाती हैंं हमारी पुलिस वालों से कि पोस्टकर्ता हम सब के “सहानुभूति कमेंट्स” का रिप्लाई तक नहीं दे पाता ।
और इस तरह,
पाॅलिश वाली पाॅलिसी काम कर जाती है ।
और पुलिस स्टाफ हमें ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लगने लगती है ।
“मूलतत्व” याद है न !
ध्यान दीजिएगा जहाँ पर करूण पत्र लिखना शुरू हुआ और जहाँ पर आपने अपनी सहानुभूति व्यक्त की ।
इसका एकबार अवलोकन करेगें,
तो पता चलेगा कि मूलतत्व कुछ और नहीं बल्कि “मेन्टल पाॅलिशिंग” था,
उन्होनें खुद के चेहरे को और आपके दिमाग को कुछ इस तरह पाॅलिश किया ताकि वें फिर से झूठी चमक में चमक सकें ।
अब,
पुलिस कितनी इमानदार है,
कितनी साफ सुधरी छवि की है
यह तो आपको भी पता होगा ।
खैर, अगर आपको नहीं पता तो ,
हम आपको अपना एक लेटेस्ट अनुभव बताते हैं ।
अपने एक रिश्तेदार के साथ मैं आरटीओ आॅफिस गया हुआ था, उनका लाइसेंस बनवाने के लिए ।
इस काम में दोपहर से शाम तक का वक्त लग गया ।
शाम को जब हम लोग वापस गाँव को लौटने लगे तो
रास्ते में पुलिस चेकिंग लगी हुई थी ।
हम रुकने वाले तो नहीं थे लेकिन हवलदार के बीच सड़क पर खड़े हो जाने की वजह से हमें रुकना पड़ा ।
हम दोनो उतर पड़े और बाइक एक साइड में लगाकर
दरोगा साहब के पास जाकर खड़े हो गये ।
दरोगा साहब एक दादा जी, जो कि एक नौजवान के साथ खड़े थे (वह नौजवान शायद दादा जी का लड़का था ), उनसे बात कर रहे थे ।
दरोगा साब – दादा कहाँ जा रहे हो तुम लोग ?
दादा जी – साहेब लालपुर जाय रहे थे, नातेदारी में ।
द▪ साब – अच्छा ! लाइसेंस दिखाइए गाड़ी का ।
दादा जी के साथ खड़ा नौजवान पास में ही खड़ी बाइक के पास गया और उसमें से कुछ पेपर्स निकाल कर दरोगा साब को दे दिया।
दरोगा साब ने पन्नों को अनमने ढंग से उलटा -पलटा और फिर नौजवान तरफ देखते हुए कहा,
” ठीक है ! कागज तो है आपके पास लेकिन अपना
ड्राइविंग लाइसेंस दिखाइए ।”
उस नौजवान से अपने वालेट में से डी▪ एल▪ निकाला और दरोगा जी को दे दिया ।
दरोगा जी ने ड्राइविंग लायसेंस पर भी एक सरसरी नजर दौड़ाई और
लाइसेंस पर से नजर हटाकर सिर ऊपर करके बोले, “हेलमेट! हेल्मेट कहाँ है आपका ?

“”सर, हेल्मेट भी है ।”

नौजवान ने बाईक के हैंडल पर टंगे हेल्मेट की तरफ इशारा करते हुए कहा ।
द▪ साब – “अच्छा ! आपके पास कागज भी है,
ड्राइविंग लाइसेंस भी है और हैलमेट भी है ।
ठीक है,
जरा अपनी मोटरसाइकिल चालू करिए आप ।”
(अपने एक सिपाही की तरफ इशारा करते हुए )
“रामअवतार, थोड़ा धुंआ चेक करो दादा के मोटरसाइकिल का।”
रामअवतार (जो कि एक सिपाही है) तुरंत बाईक के पास चला जाता है ।
उधर वो नौजवान बाईक स्टार्ट करता हैं और सिपाही अपने जेब से एक रूमाल निकाल कर बाईक के सेलेन्सर पर लगा देता है ।
थोड़ी देर बाद रामअवतार बाईक बंद करने को बोलता है और रूमाल सेलेंसर से हटाने के बाद,
उसे ले जाकर दरोगा साहब को देता है ।
रूमाल पर थोड़ी कालिख लग गई थी,
जिसे देखते ही दरोगा साहब सामने पड़ी रसीदबुक को उठाते हैं और उसपर कुछ लिखते हैं ।
लिखने के बाद दादा जी को वह रसीद देते हुए कहते हैं,” ढाई सौ का पेनाल्टी काट दिए हैं, रसीद लीजिए और
ढाई सौ रूपए दीजिए ।”
दरोगा जी को ऐसा कहते सुनकर दादा जी कहते हैं,
” साहेब कागज बराबर है, लेसेंस बराबर है, हेल्मेट भी है, तो ई रसीद काहे काट दिए हो ?”
द▪ साब – “दादा , गाड़ी आपकी धुँआ दे रही है,
इसे बनवा लीजिएगा कहीं,
इसी का पेनल्टी लिए हैं ।”
दरोगा साब की बात सुनकर दादा जी गिड़गिडाने लगे,
(जबकि बगल में खडे़ उनके लड़के की आँखे लाल हो चुकी थीं ।)
“अरे एसा न करो साहेब,
सही करवा लेंगे हम,
अबकी माफ कर दो,
मात्र पाँच सौ रूपए पड़े हैं हमरे पास ।
नातेदारी का मामला है,
जाने दीजिए हमको ।”
दरोगा साब – “देखो दादा !
बुजुर्ग हो आप इसलिए ढाई सौ का ही रसीद बनाया है।
नहीं तो पाँच सौ से कम का रसीद नहीं बनाते हैं ।
और आपको भी देर हो रहा होगा,
इसलिए प्लेन्टी भरिए और जाइए ।”

(सीधी सीधी बात अगर हम बताएँ ,
तो आपको पैसा हर हाल में भरना पड़ेगा
अब यही रसीद अगर आप शुरूआत में कटवा लेते तो आपका टाइम बर्बाद नहीं होता ।
खैर अब पैसा भरिए और जाइए ।)
दरोगा साहब का अबतक का रवैया देखकर हम दोनों
समझ चुके थे कि कागज दिखाकर,
लाइसेंस दिखाकर या किसी भी तरह की ईमानदारी से काम नहीं चलेगा,
इसलिए हमने पहले से ही प्लानिंग बना ली थी कि हमें क्या करना है ।
उधर दादा जी ने किसी तरह रो-गाकर दरोगा जी को पैसे दिए, उनके लड़के ने गाड़ी स्टार्ट की और मन ही मन दरोगा को गाली देते हुए चले गए ।
(अब तक कई अन्य लोग भी हमारी तरह गाड़ी रोककर दरोगा जी के पास रुक चुके थे ।)
उनके जाने के बाद दरोगा जी हमारी तरफ मुड़े,
अपना सवाल चालू किया “कागज और लाइसेंस कम्प्लीट है तुम्हारा ?”
हमारे प्लानिंग के मुताबिक हमारे रिश्तेदार जी ने जवाब दिया,
“सर, वो ललितनगर के रमेशचंद्र* जी (परिवर्तित नाम) को जानते हैं न !
रिटायर्ड पुलिस आॅफिसर !हम उनके भतीजे हैं ।”
(*हमारे रिश्तेदार जी के दूर के चाचा जी जो कि दरोगा थे और हाल ही में रिटायर हुए हैं ।
हमारी बात सुनकर दरोगा जी ने हमें पास में ही खड़े सिपाही रामअवतार के पास जाने को कहा ।
जब हम लोग रामअवतार के पास पहुंचे तो
उसने हम पर थोड़ा गुस्साते हुए कहा,”अबे तुम लोग पहले नहीं बता सकते थे ई बात ? ”

“आपने हमारी बात ही न सुनीं तो क्या बताते !”
मैने हँसते हुए कहा ।
“अच्छा ठीक है !
अब जल्दी से निकल्लो ईधर से ।”
हमने उसको धन्यवाद कहते हुए गाड़ी स्टार्ट की और फिर वहाँ से चल दिए ।

अब आप ही सोचिए कि ऊपर पुलिस स्टाफ के लिखे हुए ईमोशनल लेटर के तर्ज पर हम इन दरोगा साहब को कैसे फिट करें ?
खैर यह तो था पुलिस समूह का खुरदरा चेहरा जिसको आए दिन पाॅलिश वाली पाॅलिसी अपना कर चिकना किया जाता है ।
अब आइए,
डाक्टर समूह को देखें ।
पिछले दिन डाक्टरों द्वारा किये गये हड़ताल के बारे में तो आपने सुना ही होगा ।
डॉक्टर साहबों कि शिकायत यह थी कि उन्हें आए दिन मरीजों के परिवारों के द्वारा प्रताड़नाएँ दी जाती हैं,
इसलिए उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए ।
पाॅलिश करने वाले डॉक्टर समूह के पास भी उपलब्ध थे, उन्होंने भी लम्बे – लम्बे ईमोशनल पोस्ट लिखे,
उन्होंने भी भरपूर कोशिश की खुद को विश्व का सबसे दयनीय समूह दिखाने की ।
और हम लोगों ने उन्हें भी पूर्ण सहानुभूति दी ।
और इस तरह उनकी भी पाॅलिश वाली पाॅलिसी कारगर साबित हुई ।
जबकि हममें से लगभग हर किसी ने डाक्टरों अथवा अस्पताल के स्टाफ के दुर्व्यवहार कोई देखा होगा ।
हमारे एक दोस्त के रिश्तेदार की शहर में अच्छी-ख़ासी नौकरी लग गयी थी,
इसलिए वें अपनी गर्भवती धर्मपत्नी को
साथ लेकर शहर चले गये थे,
ताकि उसकी अच्छे से देखभाल की जा सके !
सब कुछ अच्छा चल रहा था ।
जब उनके पत्नी के प्रसव का समय आया तो उन्होंने
उन्हें पास के ही एक अस्पताल में भर्ती कर दिया ।
जब प्रसव हो गया तो नर्स ने बाहर आकर कहा कि आपको मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ है ।
बेचारे फफक फफक कर रोने लगे,
लेकिन अब कर भी क्या सकते थे !
जब नियति को यही मंजूर था ।

अपनी पत्नी को भी ढाँढस बँधाया और फिर वहाँ से अपने ऑफिस को चले आए ।

(पत्नी की स्थिति कमजोर थी इसलिए दो तीन दिन तक वह अस्पताल में ही रहने वाली थी ।)
शाम को पुनः अस्पताल गये तो गुप्त सूत्रों से इन्हें पता चला कि किसी और से पैसा लेकर इनका बच्चा बदल दिया गया ।
इन्होनें हंगामा मचाना शुरू कर दिया ।
इनके परिवार वाले भी शहर पहुंचे,
अस्पताल के स्टाफ की पिटाई की गयी,
पुलिस कम्पलेन भी की गई,
और फिर जाकर इन्हें इनका बच्चा वापस मिला ।
अस्पताल के स्टाफ के कूटे जाने का हम तो पूर्ण समर्थन करते हैं ।
आप करें या न करें ।

यहाँ पर मैं यह नहीं कह रहा कि सम्पूर्ण पुलिस स्टाफ
उन दरोगा साहब के पदचिन्हों पर चल रहा है या फिर हर पुलिसकर्मी भ्रष्ट है,कई सारे अच्छे पुलिस आॅफिसर ऐसे भी हैं जो वाकई देवदूतों की तरह कार्य करते हैं ।
हमारे गाँव के एक बुजुर्ग किसी काम के वास्ते, हाल ही में गोरखपुर गए हुए थे,
गोरखपुर में जाकर वें कहीं रास्ता भूल गए,
“डायल १०० ” के पुलिस वालोँ ने इन्हे परेशान देखा तो अपनी डायल १०० की गाड़ी में बिठा कर इनको गन्तव्यस्थल तक छोड़ कर आये ।
अब जब से वें गोरखपुर से लौटे हैं, तब से डायल १०० वालों की तारीफ़ करते नहीं थकते ।
ऐसे पुलिस वाले तो वाकई उत्तम कार्य कर रहे हैं ।

ऐसे कई डाक्टर भी हैं जिन्हें हम वाकई पृथ्वी पर ईश्वर का रूप कह सकते हैं ।

इसलिए आप अपने स्टाफ की अच्छाई को स्वीकार कर रहे हैं तो आप को
अपने स्टाफ की जो कुछ बुराइयाँ हैं उन्हें भी स्वीकार करना चाहिए,
और उन्हे सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए ।
लेकिन आप ऐसा नहीं करते हैं,
आप सबको पाॅलिश कर देते हैं,
हर किसी को दूध का धुला दिखाने की कोशिश करते हैं और कुछ हद तक कारगर भी साबित होते हैं ।

उपर वर्णित पुलिस स्टाफ और अस्पताल स्टाफ की तरह और भी कई सारे स्टाफ जो हमारे सिस्टम के अभिन्न अंग हैं,
(जैसे- बिजली विभाग, सरकारी लेखा-जोखा विभाग,
जल निगम आदि)
उन्होनें भी यह पाॅलिश वाली पाॅलिसी
पूरी तरह अपनाई है।
खैर, यह तो हो गया हमारे सिस्टम द्वारा किए जाने वाले पाॅलिश की बात !
अब थोड़ा आगे बढ़ते हैं,
और बात करते हैं विचारधारा वाले पाॅलिश की !
नक्सलवाद,अलगाववाद जैसी चीजें जो कि हमारे राष्ट्र के लिए अत्यंत घातक है,
उसको भी पाॅलिश करने वाली(सही साबित करने वाली) एक विचारधारा हमारे समाज में बुरी तरह से घुस चुकी है ।
यह विचारधारा आज के कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों की विचारधारा है ।
हमारे समाज के यह बुद्धिजीवी नक्सलवाद को पूरी तरह जस्टिफाइ करते हुए जहाँ तहाँ मिल जाते हैं ।
अपने वक्तव्यों में नक्सलवाद को गरीब,मजलूम और शोषितों का विद्रोह सिद्ध करने में
पूरी तरह जुट जाते हैंं।
आतंकवादियों को हेडमास्टर का बेटा,
भटका हुआ नौजवान और सेना को शोषक सिद्ध करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैंं ।
और इनकी यह पाॅलिसी भी कुछ हद तक कारगर साबित हो रही है ।
मौजूदा हालात में अगर आपने यह पॉलिसी इसलिए नहीं अपनायी है,
क्योंकि आप समझ रहे हैं कि आप को खुद को पाॅलिश करने की कोई जरूरत ही नहीं है !
तो बड़े क्यूट और भोले हैं आप ।
यकीन मानिये आप इस “कुछ भी खरीदने वाले समाज” को “कुछ भी” बेच नही पा रहे हैं ।

इसलिए हमारा सुझाव यही होगा कि आपको भी पाॅलिसी आफ पाॅलिश अपना लेना चाहिए ।
क्योंकि यही एक ऐसा सिद्धांत है जो सार्वभौमिक, सर्वकालिक और शतप्रतिशत सफलतादायक है ।
देश गर्त में जा रहा है तो जाने दीजिये,
वैसे भी इस देश में ट्रैन के टॉयलेट में मग्गों तक को चोरी होने के डर से जंजीर से बाँधकर रखा जाता है ।

जब इस देश में नेता जी की चमचागिरी करके बेझिझक बड़े से बड़ा जुर्म किया जा सकता है,
तो न्यायप्रिय बनने की क्या जरुरत ?
जब इस देश में नेता जी को पॉलिश लगा कर सरकारी नौकरी पायी जा सकती है,
तो पढ़ने लिखने की क्या जरुरत है ?

जब इस देश में देश की सेना और न्यायव्यवस्था के खिलाफ बोलकर प्रसिद्धि पायी जा सकती है,
तो मेहनत करके मेडल लाने की , या फिर गहन अध्यन करके रिसर्च पेपर छापने की क्या जरुरत है ?

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