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अगर आप किसी बहुत बड़े पद पर हों,
बहुत ही ईमानदारी से अपना कार्य कर रहे हों
आपके ईमानदारी की मिशाल दी जाती हो दुनिया में,
और आपके इस उच्च पद पर पहुँचने के पीछे
किसी एक व्यक्ति का बहुत अधिक योगदान हो।
और वही व्यक्ति आपसे अपने किसी कार्य के लिए पत्र लिखने को कहे ,
मतलब सिफारिश करे
उस समय आप क्या करेंगे ?
अपनी ईमानदारी पर डटे रहेंगे और जिसने
आपके स्वर्णिम वर्तमान में योगदान दिया हो
उसको मना कर देंगे, या फिर आप अपनी ईमानदारी
को ताक पर रखकर उनका काम कर देंगे ?
आपका तो पता नही कि आप क्या करेंगे ?
पर एक बार यही स्थिति एक व्यक्ति के साथ घटी,
वह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद पर थे
और ईमानदारी की मिशाल थे ।
एक बार किसी ऐसे ही इंसान ने उसे एक पत्र लिखा जिसमे उसने कहा था कि
फलाना विभाग मे मेरा काम अटका हुआ है,
तुम एक पत्र उस विभाग को लिख दो
मेरा काम हो जाएगा ।
वह व्यक्ति बहुत दुविधा में पड़ गया कि क्या किया जाए ?
आख़िर में बहुत सोच विचार के उसने दो पत्र लिखे ।
दोनो पत्रों को दो अलग अलग पते पर भेज दिया ।
दुर्भाग्यवश दोनो पत्र विपरीत पते पर चले गये।
एक पत्र मिला उनके उपर के अधिकारी को जिसमे
सिफारिश की बात लिखी थी ।
जबकि ये पत्र उन महाशय को मिलना चाहिए था
जिन्होंने सिफारिश के लिए पत्र लिखा था,
और दूसरा पत्र महाशय जी को मिला जिसमे
पद से इस्तीफ़े की बात लिखी थी ।
महाशय जी समझ गये कि आखिर बात क्या है,
दरअसल उस व्यक्ति ने बहुत सोच समझ कर दो पत्र लिखे थे
जिसमे एक था सिफारिश का और दूसरा था इस्तीफ़े का ।
वह व्यक्ति चूँकि इन महाशय जी को मना नही कर सकता था इसलिए उसने इनकी सिफारिश के साथ साथ इस्तीफ़ा भी दे दिया था ।
महाशय जी के आँखों में आंसू थे
और पत्र को वो फाड़ चुके थे।
जानते हैं वह व्यक्ति कौन थे?
वह व्यक्ति थे भारत माँ के यशश्वी पुत्र और
हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री “लाल बहादुर शास्त्री”।
आज दो अक्टूबर को महात्मा गांधी और शास्त्री जी को नमन एवं श्रद्धांजलि।
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