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“भारत प्लेट में रखा चिकन बिरयानी है”
भारत प्लेट में रखा चिकन बिरयानी है,
जिसे अंग्रेजों ने आधा खाया और
फिर प्लेट को खिसका दिया
यहाँ के नेताओं की तरफ ।
और इस प्लेट के ट्रांसफर को
नाम दिया गया “आजादी”
पहले अग्रेंज नोच-नोच कर खा रहे थे,
अब नेता खाते हैं ।
परसाई ने बिल्कुल ऐसा तो नही लेकिन कुछ ऐसा ही लिखा था !
खैर ! अंग्रेज गए, परसाई गए ।
वैसे अब अंग्रेजों को गये सात दशक बीत गये हैं,
लेकिन प्लेट में रखा चिकन बिरयानी अब तक खत्म न हुआ !
वैसे तो इसे अबतक खत्म हो जाना चाहिए था,
क्योंकि अंग्रेजों के बाद इसे
सिर्फ बड़े नेताओं ने ही नही खाया,
उन्होनें इसे बाँटा,
ईमानदारी के साथ ,
बराबर हिस्सों में,
और फिर सबने खाया,
बी•डी•सी,ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक !
खाने का सिलसिला यहीं तक नहीं रुका,
प्लेट ब्यूरोक्रेटों के सामने भी रखा गया और फिर
ब्यूरोक्रेट्स ने भी जमकर खाया,
फिर वो ब्यूरोक्रेट चाहे सरकारी अस्पताल का चपरासी हो या फिर जिलाधिकारी हो !
इन सबके ठूँस-ठूँस के खाने के
बाद भी बिरयानी खत्म न हुई ।
कुछ बात तो वाकई थी, उस प्लेट के बिरयानी में !
शायद, उसमें अमृत की एक बूँद टपक पड़ी होगी !
या फिर,वह बिरयानी उस पतीले में बना होगा जिसे
कृष्ण ने द्रोपदी को दिया था !
या फिर ,द्रोपदी के चीर का कोई धागा इस बिरयानी में पड़ गया होगा ।
पक्की वजह नहीं मालूम लेकिन
वजह जरूर रही होगी ।
या शायद परसाई गलत ने गलत कहा होगा !
और भारत,
चिकन बिरयानी का प्लेट न होकर,
वह प्रसूता बिच्छू रही होगी जो गर्भवती थी,
लेकिन अब छटपटा कर मर रही है,
क्योंकि
उसके उदर से निकले उसके अपने बच्चे,
उसको नोच-नोच कर अपनी क्षुधा शान्त कर रहे हैं !
लेकिन !
सत्तर साल बहुत होते हैं,
अब तक तो इस बिच्छू को मर जाना चाहिए था !
फिर अब तक इसकी छटपटाहट क्यों बाकी है ?
शायद ……… !
और फिर शायद के आगे कुछ लिखने से पहले ही,
वह बोल पड़ी,
यह “वह” कोई और नहीं वह बिच्छू ही थी जिसके बोलने की उम्मीद मुझे बिल्कुल न थी ।
सही पहचाना तुमने ,
आज के संदर्भ में तुम्हारा
मुझे बिच्छू कहना,
बिल्कुल भी गलत नहीं है ।
मैं प्रसूता बिच्छू ही हूँ,
अब तक इसलिए जिंदा हूँ,
और छटपटा रही हूँ,
क्योंकि मैनें अपने सारे बच्चों को एक
साथ जन्म नहीं दिया है ।
तमाम बच्चे अभी गर्भ में ही हैं,
और यें जो मुझे नोच रहे हैं,
ये ब्यूरोक्रेट और सत्ताधारी नेता हैं,
ये भी मेरे ही बच्चे हैं लेकिन अब जन्म ले चुकें हैं !
मुझे नोचने वाले ये बच्चे सिर्फ मुझे ही नहीं,
अपने उन तमाम भाईयों और मेरे उन तमाम बच्चों को भी नोच रहें हैं, जो अभी तक मेरे गर्भ में हैं ।
गर्भ में रहने वाले बच्चे जब जन्म लेते हैं तो
वो भी अपने इन्हीं नेता और ब्यूरोक्रेट भाईयों के साथ मुझे और मेरे गर्भ में पल रहें अपने भाईयों को नोचना शुरू कर देते हैं ।
मेरी छटपटाहट और तेज होती है और मैं सोचती हूँ कि अब उदर में पल रहे बच्चों को जन्म न दूँगी ।
लेकिन फिर गर्भ में पड़े अपने बच्चे के माँस को नोचा जाता देख ममतत्व जाग उठता है और मैं उसे जन्म दे देती हूँ !
फिर वह भी मुझे और मेरे गर्भ में पल रहे अपने भाईयों को नोचना शुरू करता है अपने उन भाईयों के साथ !
खैर !
तुम अभी मेरे गर्भ में हो,
और इसलिए तुम्हें भी नोचा जा रहा है मेरे साथ-साथ ।
एक दिन तुम भी जन्म लोगे
और मुझे नोचना शुरू कर दोगे ।
यह प्रक्रिया अनवरत चलती रहेगी मेरे पुत्र !
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