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आवत एहिं सर अति कठिनाई

jigyasa
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रामकथा रूपी सरोवर कैसा है, इसका वर्णन गोस्वामी तुलसीदासजी ने बहुत ही सुन्दर ढंग से किया है। सम्पूर्ण कथा में चार संवाद हैं। भुशुण्डि-गरुण, शिव-पार्वती, याज्ञयवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास-सन्त। यही संवाद सरोवर के चार मनोहर घाट हैं। सात काण्ड सरोवर की सात सीढ़ियां हैं। श्रीराम की महिमा सरोवर के जल की अथाह गहराई है। श्रीरामचन्द्रजी और सीताजी का यश अमृत के समान जल है। सुन्दर चौपाइयां ही कमलिनी हैं। कविता की युक्तियां मोती पैदा करने वाली सीपियां हैं। सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे कमल हैं। अनुपम अर्थ, भाव और भाषा पराग, मकरन्द और सुगंध हैं। सत्कर्म भौंरे हैं। ज्ञान, वैराग्य और विचार सरोवर के हंस हैं। कविता की ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेक प्रकार की मनोहर मछलियां हैं। काव्य के नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसंग सरोवर के सुन्दर जलचर जीव हैं। पुण्यात्माओं, साधुओं और श्रीराम के गुणों का गान ही विचित्र जल-पक्षियों के समान हैं। सन्तों की सभा ही सरोवर के चारों ओर की अमराई है। श्रद्धा वसन्त के समान कही गई है। नाना प्रकार से भक्ति का निरूपण और क्षमा, दया व दम लताओं के मण्डप हैं। मन का निग्रह यम अर्थात-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, नियम अर्थात-शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान ही सरोवर के फूल हैं। ज्ञान फल है। श्रीहरि के चरणों में प्रेम उस फल का रस है। ऐसा वेदों ने कहा है।
भगति निरूपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना।।
सम जम नियम फूल फल ज्ञाना। हरि पद रति रस बेद बखाना।।
-श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-
इसके अलावा जो अनेक प्रसंगों की कथाएं हैं, वे ही इसमें तोते, कोयल आदि रंगविरंगे पक्षी हैं। कथा में जो रोमांच होता है, वही वाटिका, बाग और वन हैं। जो सुख होता है, वही सुन्दर पक्षियों का विहार है। निर्मल मन ही माली है। जो लोग इस चरित्र को सावधानी से गाते हैं, वे ही इस सरोवर के चतुर रखवारे हैं। जो इसे आदरपूर्वक सुनते हैं, वही मानस के देवता हैं। जो अतिदुष्ट और विषयी हैं, वे अभागे बगुले और कौवे हैं, जो यहां आने में हार मान जाते हैं।
तेहि कारन आवत हियं हारे। कामी काक बलाक बिचारे।।
आवत एहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।।
-श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड-
आखिर इतने सुन्दर सरोवर पर जाने में कठिनाई क्या है-कुसंग ही भयानक रास्ता है। कुसंगियों के वचन ही बाघ, सिंह और सांप हैं। घर के काम-काज और ग्हस्थी के जंजाल ही दुर्गम पहाड़ हैं। मोह मद और मान ही बीहड़ बन हैं। कुतर्क ही भयानक नदियां हैं। जिनके पास श्रद्धा रूपी राह-खर्च नहीं है, सन्तों का साथ नहीं है और जिन्हें श्रीरघुनाथजी प्रिय नहीं हैं, उनके लिए रामकथा रूपी सरोवर अगम है। यदि कोई कष्ट उठा कर सरोवर तक पहुंच भी जाता है, तो उसे नींद रूपी ठण्ड सताने लगती है और वह सरोवर में स्नान नहीं कर पाता। जिनके मन में श्रीरामचन्द्र के प्रति प्रेम है, वे इस सरोवर को कभी नहीं छोड़ते। कोई यदि इस सरोवर में स्नान करना चाहता हैं, तो उसे मन लगा कर सत्संग करना चाहिए।

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