Menu
blogid : 3150 postid : 41

किसने खोजा किसने पाया, ब्रह्म सत्य है ब्रह्मांड माया

jigyasa
jigyasa
  • 17 Posts
  • 29 Comments

जिस संसार का रहस्य खोजने में दुनिया भर के विज्ञानी दिन-रात एक किए हुए हैं, और बड़ी-बड़ी मशीनें लगा कर प्रयोग किए जा रहे हैं, वह संसार चिंतकों के सिद्धांतों के ब्लैकहोल में समा जाता है। अद्भुत यह कि उनके सिद्धांतों से समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा सहमत भी है।
दरअसल, जब आप कोर्इ सपना देखते हैं, तो उस हाल में वह संसार झूठा नहीं लगता। सपना टूटते ही वह झूठा या मिथ्या हो जाता है। तो फिर सच क्या है ? सपने का संसार या उसके बाहर का ? यह कैसे तय हो कि सपना क्या है ? क्या पता जिस संसार का अनुभव हमें हो रहा है, वह भी एक सपना ही हो ! उस सपने के टूटते ही किसी और जगत का अनुभव हो। उसी जगत की खोज में कर्इ दार्शनिक सिद्धांत आए। वेदों में वर्णित कर्मकांडों और देवताओं से जब जिज्ञासा शांत नहीं हुर्इ, तो उपनिषदों की रचना हुर्इ। उसमें कर्इ गूढ़ प्रश्नों के समाधान ढूंढने की कोशिश की गर्इ। उस दौरान जो निष्कर्ष सामने आए, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए सूत्रों की रचना हुर्इ। सूत्रों को कंठस्थ करने में सुविधा भी हुर्इ। बादरायण का ब्रहम सूत्र ऐसे ही सूत्रों का संकलन है। ये सूत्र इतने सारगर्भित हैं कि उन्हें समझ पाना आसान नहीं। सूत्रों की व्याख्या के लिए ब्रहमसूत्र पर कर्इ भाष्य लिखे गए। शंकर, रामानुज, मध्व, वल्लभ और निंबार्क ने अपने-अपने ढंग से उनकी व्याख्या करने की कोशिश की पर शंकराचार्य ने भारतीय चिंतन को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां चिंतन की सभी धाराएं आकर लुप्त हो जाती हैं। विदेशों में तो उनके अद्वैत वेदांत को भारतीय चिंतन का प्रतिनिधि माना जाता है।
शंकर ने उपनिषदों के तमाम दार्शनिक सिद्धांतों को एकसूत्र में पिरोया और अपने मत का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार इस सृषिट में ब्रहम ही सत्य है। संसार माया है। इसीलिए मिथ्या है। जीव यानी आत्मा और ब्रहम में कोर्इ फर्क नहीं है। पश्चिमी विचारकों ने भी विज्ञान और गणित पर आधारित होने के बावजूद संसार के मिथ्याथ्त्व की ओर संकेत किया। डेकार्ट भी संसार के असितत्व को साबित नहीं कर पाते। उनके अनुसार एक ऐसा तत्व है, जो जागने और सोने की दोनो सिथतियों में मौजूद रहता है। उन्होंने अपनी भाषा में सिद्धांत दिया-कोजिटो अर्गो सम। आर्इ थिंक सो दैट आर्इ ऐम। यानी, मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं। इस तत्व को डेकार्ट ने आत्मा कहा। इसी आत्मा को शंकर ने जीव कहा है, जो ब्रहम से अभिन्न है। ब्रहम सत्यं जगनिमथ्या, जीवो ब्रहमैव नापर:। यानी ब्रहम सत्य है, जगत मिथ्या और जीव ही ब्रहम है। ब्रहम से जीव की इसी अभिन्नता के कारण उनके सिद्धांत को अद्वैतवाद कहा गया। उनके अनुसार सत्ता दो नहीं अद्वैत है। भगवान और भक्त में कोर्इ द्वैत नहीं। उस द्वैत या अलगाव की वजह माया है। हम जिस संसार को अपनी आंखों से देखते हैं, उसे शंकर ने एक वाक्य में नकार दिया। आश्चर्य की बात नहीं कि इस विचार को समाज की स्वीकृति भी मिल गर्इ। आम आदमी भले ही शंकराचार्य के मायावाद सिद्धांत से वाकिफ न हो, लेकिन संसार के बारे में यह कहावत काफी प्रसिद्ध है कि सब माया का खेल है।
गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा है, माया महाठगिनि हम जानी। हालांकि शंकराचार्य के दर्शन पर तमाम सवाल उठाए गए कि संसार मिथ्या कैसे हो सकता है ? तब शंकर ने अपने मायावाद के सिद्धांत से उनका जवाब दिया। मायावाद के अनुसार, ब्रहम के अलावा जो कुछ भी है, वह माया या अविधा है। माया ब्रहम की ही शकित है, जो सत्य को ढक लेती है। उसकी जगह पर किसी दूसरी चीज के होने का भ्रम पैदा कर देती है। मसलन रस्सी से सांप का भ्रम हो जाता है। माया ब्रहम की शकित तो है पर ब्रहम पर माया का प्रभाव नहीं पड़ता। ठीक जादूगर की तरह, जो अपनी कला से दर्शकों को भ्रमित तो कर सकता है पर खुद भ्रमित नहीं होता।

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh