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एक बार एक प्रोफेसर साहब नाव से नदी पार कर रहे थे। स्वभाव के अनुसार वह नाविक से प्रश्न पर प्रश्न किए जा रहे थे। उन्होंने नाविक से पूछा, भाई कुछ पढ़े-लिखे हो, इस पर नाविक ने कहा, साहब पूरा जीवन तो नाव चलाने में बीत गया। पढ़ाई-लिखाई कब करता। इस पर प्रोफेसर साहब ने कहा, तब तो तुम्हारी जिन्दगी बेकार है। उन्होंने नाविक से पुन: प्रश्न किया, अच्छा यह बताओ कि तुम्हारा विवाह हुआ है। इस पर नाविक ने कहा, साहब पढ़ाई-लिखाई तो कर नहीं पाया। इस वजह से विवाह भी नहीं हो पाया। इस पर प्रोफेसर साहब ने पुन: वही बात दोहराई, तब तो तुम्हारी जिन्दगी बेकार है। इसी बीच नाव डगमगाने लगी। नाविक ने पूछा, साहब तैरना जानते हैं। इस पर प्रोफेसर साहब ने कहा, पूरा जीवन तो पढ़ाई-लिखाई में लगा दिया। तैरना कब सीखता। इस बार नाविक ने कहा, साहब तब तो आपकी जिन्दगी बेकार है। कहने का मतलब यह कि व्यावहारिक ज्ञान के बिना पढ़ाई-लिखाई भी बेकार साबित हो सकती है।
इस सन्दर्भ में महात्मा गांधी की दृष्टि व्यावहारिक थी। उन्होंने कहा था कि वह दुनिया को कोई नई सीख नहीं दे रहे हैं। उनका सत्य और अहिंसा का विचार उतना ही पुराना है, जितना कि पहाड़। उनका मानना था कि सत्य और अहिंसा का वह व्यावहारिक जीवन में अपनी पूरी क्षमता से प्रयोग करना चाहते हैं। शिक्षा के प्रति भी उनका नज़रिया पूरी तरह व्यावहारिक था। उनकी सफलता में उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण का बड़ा योगदान रहा है। चरखा और खादी शायद उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण की ही उपज थे।
दरअसल, सौ विचार याद किए जा सकते हैं, लेकिन उनमें एक भी समझ में आ जाए, तो वह बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। इसी प्रकार सौ विचारों को समझा जा सकता है, लेकिन उनमें से एक का भी जीवन में प्रयोग बड़ा कठिन होता है। इसी कठिन काम को कर दिखाया था बापू ने। शायद यही था उनके जीवन की सफलताओं का रहस्य भी।
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