Apni Bat
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में हूँ एक जमी, भीगी भीगी सी शरमाई सी
है तन पर चादर हरी भरी, रहती हूँ फिर भी लजाई सी
खोई रहती हूँ बस हरदम है आसमान का ध्यान मुझे
पर आसमान को देखो आया कितना अभिमान उसे
प्रेम की चाह आँखों में लिए देखा करती हूँ आसमान
कभी न बुझी प्यास मेरी आसमान तो है नयनाभिराम
आह लेकर सोचा करती मुझे क्योँ देखेगा आसमान
उसके पास तो स्वयं ही है अनगिनित तारे और चन्द्रमुसकान
में तो समेटे हूँ अनगिनित पत्थर और धूल
हे अम्बर तुमसे प्रेम करना क्या मेरी है भूल
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