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आरक्षण कहां तक जायज ?

shukla
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आरक्षण की मांग करना अब एक फैषन सा बन चुका है यह अब धीरे धीरे प्रतीत होने लगा है। आए दिनों जिस तरह से आरक्षण की मांग विभिन्न समुदायों द्वारा की जा रही है क्या उनका यह तरीका सही है कि मांग करते समय हम कितनी हिंसा फैला सकें या कितनी सार्वजनिक तथा निजि सम्पति को नुकसान पहुंचा सकें, शायद अब यह होड़ भी आरक्षण की मंाग कर रहे समुदायों मंे लगी है ऐसा महसूस व प्रतीत होने लगा है। आए दिनों हम देख रहे हैं कि किस तरह से आरक्षण की मांग जोरो शोरों से उठाई जा रही है।
एक समय था जब आरक्षण देष की मांग था और देष के गरीब व पिछड़े हुए समुदायों को समाज में सही तथा सम्मानपूर्वक दर्जा दिलाने के लिए समाज सुधारकों ने इसकी मांग उठाई थी। समाजिक समरसता लाने के लिए कई महान पुरूषों द्वारा कार्य भी किया गया। देष गुलामी के कारण आर्थिक रूप से भी कमजोर हो चुका था पर सवतंत्रता के पष्चात देष में सभी को समान दर्जा तथा पिछडे हुए समुदायों को उठाने के लिए आरक्षण का पुरजोर समर्थन भी किया गया।
पर वर्तमान समय में लगता है कि कहीं न कहीं जिस आरक्षण को देष के कमजोर वर्गो को सामर्थय बनाने के लिए लाया गया आज वो ही आरक्षण देष को कमजोर भी करने में लग गया है जिस तरह से आरक्षण की मांग आज हो रही है। हम देखते हैं कि पहले पटेल समुदाय द्वारा काफी हंगामा करके अपने हक को मांगा गया आज हम देखते हैं कि हरियाणा मंे जाट आंदोलन के माध्यम से अपना हक मांगने लगे है पर क्या उनका तरीका अपना विरोध जताने का सही है ? इस पर भी गौर फरमाने की जरूरत है।
वर्तमान समय में आरक्षण की जरूरत किसे है किसी समुदाय को या कि किसी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को। वर्तमान समय में हम देखते हैं कि भारत की काफी आबादी गरीबी रेखा से नीचे भी है चाहे वह किसी भी समुदाय की हो उसमें जाट भी होंगे ,उसमें पटेल भी होंगे ,उसमें राजपूत भी होंगे ,उसमें ब्राह्राण भी होंगे, उसमें सभी जातियों के लोग हो सकते हैं। तो अगर आरक्षण को कमजोर वर्गों को उपर उठाने के लिए लाया गया है तो सभी की आरक्षण की मांग वर्तमान समय में जायज है। पर आज के समय में आरक्षण को राजनीतिक दलों द्वारा सियासी चाल की तरह खेला जा रहा है। जो कि जायज नहीं लगती।
वर्तमान समय में आरक्षण में बदलाब करने की जरूरत है। आरक्षण का भागीदार बनने के पष्चात उसे फिर बार बार आरक्षण की जरूरत क्यों ? एक बार अगर किसी को आरक्षण का फायदा मिल जाता है तो उसे ही सदियों तक आरक्षण की आड़ में फायदा क्यों मिलता रहे ? बहुत छोटा सा उदाहरण भी है जो मैंने महसूस भी किया है क्योंकि एक छात्र हुं तो विष्वविद्यालय में अपने साथ घटित उदाहरण दे रहा हूं। पत्रकारिता करने विष्वविद्यालय गया तो वहां प्रवेष पाने के लिए प्रवेष परीक्षा को उतीर्ण करने के पष्चात ही पहंुचा जा सकता है। प्रवेष परीक्षा उतीर्ण की और अपने को गौरवान्वीत भी महसूस किया कि अच्छे नंबरों से परीक्षा उतीर्ण की है। पर जब काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू हुई तो तब मालूम पड़ा कि आरक्षण का कितना महत्व है। मै 63 अंक लेकर भी नान सब्सीडाईज सीट के लिए चुना गया और एक छात्र 53 अंक लेकर भी सव्सीडाईज सीट के लिए चुना गया आज मंे उसी डीग्री को पूरा करने के लिए 60 हजार फीस दे रहा हूं और उसी डीग्री के लिए वो छात्र 10 हजार में कर रहा है तो यहां महसूस हुआ कि आरक्षण क्या है। मैं एक अध्यापक का बेटा हूं जिसकी तनख्वाह 20 हजार महीना है और वो छात्र एक अच्छे व्यवसायी का बेटा है जिसकी लाखों की महीने की आमदनी है। यहां तक भी ठीक है आरक्षण के माध्यम से प्रवेष हो गया फिर किसी टेस्ट मंे दुबारा आरक्षण अभी एक उदाहरण है नेट परीक्षा का उसमें आरक्षण प्राप्त छात्रों को 53 प्रतिषत से नेट उतीर्ण हो होता है तो वहीं एक सामान्य छात्र 60 प्रतिषत लेकर भी अभी तक इसी आस में बैठा है कि उसका भी नेट उतीर्ण होगा। तो फिर क्यों ना आरक्षण की मांग होगी।
डा भीम राव अंबेडकर जी ने भी संविधान में लिखा है कि समय की परिस्थ्तियों केा ध्यान में रखते हुए आरक्षण देष की मांग है पर समयानुसार इसमें बदलाव किया जा सकता है उन्होंने कहा था कि यह स्थाई नहीं है। पर भारत जैसे देष में राजनीति इतनी हावी हो चुकी है कि यहां वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए ही काम किया जाता है। आज समय की जरूरत है कि आरक्षण उन लोगों को मिले जो भूखे पेट सो रहे हैं, आज आरक्षण उन्हें मिले जो कड़ी मेहनत करके भी अपने परिवार को पालने में असहज सा महसूस करता है। आज आरक्षण उसकी मांग है जो किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। आज आरक्षण उसे मिलना चाहिए जो अपने बेटे बेटियों की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पा रहा है। और भी कई ऐसे हकदार हैं जिन्हें सही मायने में आरक्षण की जरूरत है।
हरियाणा में भी जाटों द्वारा आरक्षण की मांग की गई और शायद सही भी हो पर जिस तरह से हिंसा का सहारा लिया गया कितनों को मौत की नींद सुला दिया गया क्या यह जायज है ? आज जनता को तय करना है कि किसे आरक्षण की जरूरत है और सरकार को अब यह तय करना है कि किसे आरक्षण देना है। आज यह भी तय करना है कि राजनैतिक पार्टीयां जो आरक्षण को हथियार बना कर अपनी रोटियां सेंक रही है उन्हें कैसा जबाव देना है ?
सन्नी शुक्ला, हिमाचल प्रदेष, षिमला

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