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वामपंथी देष के लिए खतरा

shukla
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रोहित वेमुला हैदरावाद केन्द्रीय विष्वविद्यालय का छात्र अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्त करते हुए याकुब मेमन जैसे खूंखार आतंकवादी पर हमदर्दी प्रकट करते हुए विष्वविद्यालय परिसर मंे मोमबतियां जलाकर श्रद्धांजली कार्यक्रम करवाने से पहले शायद यह भूल गया था कि यह वो ही आतंकवादी है जिसने हमारे देष के कई परिवारों को बेघर किया और कई परिवारों को जिसने बेसहारा बना दिया, जो कई बेकसूर जिंदगियों को लील गया था। फिर भी यह रोहित वेमूला ऐसे आतंकवादी के प्रति अपनी हमदर्दी जता रहा था और उसे याद कर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। शायद वह उन परिवारो के दर्द को नहीं समझ पाया था जिन्होंने अपनों को आतंकवादी हमलों में खो दिया था।
वामपंथी संगठन जो बंदूक की नली पर सत्ता हथियाने की बात करते हैं उन्होंने रोहित वेमूला जैसे पता नहीं कितने लोगों को मानव बम की तरह पेष किया है। लड़कर लेंगे आजादी ,कष्मीर मांगे आजादी ,हर घर में होगा याकूब मेमन जैसे स्लोगन लगाकर क्या दर्षाने की कोषिष यह देष के गद्दार वामपंथी कर रहे हैं।
अभी हाल ही में जेएनयू जो कि बौद्धिक आतंकवाद का ठिकाना माना जाता है अब वहां पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी गूंजने लग पड़े हैं और ऐसा देषद्रोह हमारे ही देष के वामपंथियों के द्वारा किया जा रहा है। एक ओर जहां हमारे देष का सैनिक जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा था तो सारा देष जवान की सलामती के लिए दुआ कर रहा था तो वहीं दूसरी तरफ यह वामपंथी अफजल गुरू आतंकवादी की बरसी मना रहे थे और उसके प्रति हमदर्दी जता रहे थे।
सियाचीन में हिमस्खलन के कारण वर्फ में दबने से 9 जवान शहीद हो गए और एक जवान 6 दिन बाद भी जिंदा निकलकर जवानों के हौंसले को सलाम करता है। हमारे देष के जवान अपनी जान की परवाह न करते हुए विपरीत परिस्थितयों में भी देष के दुष्मनों से देष की रक्षा कर रहे हैं और उन्हीं दुष्मनों को हमारे देष के वामपंथी पनाह देने में लगे हुए हैं।
संसद हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरू और कष्मीर के अलगाववादी गुट जम्मू एंड कष्मीर लिबरेषन फ्रंट के संस्थापक मकबूल भट की याद मंे वामपंथी छात्र संगठन द्वारा कार्यक्रम का आयोजन करवाया जाना एक बहुत ही भयावह तष्वीर देष के सामने प्रकट करता है। देष के सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय को गलत बताना और उन जजों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाना सीधे तौर पर न्यायालय की अवमानना करने की तरफ ईषारा करता है।
यही वामपंथी देष के खिलाफ इस तरह के कार्यक्रमों से देष के साथ गददारी कर रहे हैं। आज हमारे देष के सैनिक देष की हिफाजत के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए आतंकवादीयों के मंसूवों को नाकामयाब कर अपने प्राणो की आहुति इस देष के लिए दे रहे हैं।तो वहीं दूसरी तरफ उन्हीं आतंकवादीओं को देष में हीरो बना कर पेष किया जा रहा है। कार्यक्रमों के माध्यम से देष के दुष्मनों को याद किया जा रहा है परंतु कभी इन कम्युनिष्टों के द्वारा देष के लिए शहीद हुए जवानों की कुर्बानी को याद करने के लिए कोई कार्यक्रम करवाया गया, कभी इन वामपंथिओं द्वारा आतंकवादी हमलों में मारे गए लोगों की याद में कोई कार्यक्रम आयोजित किया गया तो ऐसे प्रष्नों का उत्तर नहीं मे ही मिलेगा। इनके द्वारा याद किया जाता है तो देष के दुष्मनों को। उनके प्रति इनकी हमदर्दी पता नहीं कहां से जाग उठती है। इन्हें आतंकवादीयों के मानवाधिकार नजर आने लगते हैं पर जो लोग इन आतंकवादीयों द्वारा मौत के घाट उतार दिए जाते है उनके तो मानवाधिकार तो होते ही नहीं है। तभी तो मानवाधिकारो का हवाला देते हुए यह कम्युनिष्ट कसाब जैसे आतंकवादी की फांसी की सजा माफ करवाने हेतू ऐड़ी चोटी का जोर लगाते हुए कोर्ट में दया याचिका लगा कर आधी रात को भी कोर्ट का दरवाजा खुलवाते हैं और जव दया याचिका को खारिज कर दिया जाता है तो इसे मानवाधिकारों का हनन बताना शुरू कर दिया जाता है। क्या देष के लोगों ने कसाब को अंधाधुंध फायरिंग करते हुए नहीं देखा था, क्या देष के लोगों ने इस आतंकवादी को बेकसूर लोगों की हत्या करते नहीं देखा था तो फिर कौन से मानवाधिकारों की बात यह देष के गददार कम्युनिष्ट किए जा रहे हैं।
हर वक्त लाल झण्डा उठाए हर कहीं विरोध करना इनकी कार्यप्रणाली का हिस्सा है। देष के जिस भी हिस्से में कम्युनिष्ट कार्य कर रहे हैं हर दूसरे दिन इन्हें लाल झण्डा उठाए विरोध करते हुए सड़कों पर देखा जा सकता है। पर कभी हमने यह नहीं देखा कि येः-
ऽ कभी उन जवानों के लिए प्रर्दषन कर रहे हों जो अपने देष की रक्षा के लिए अपनी जान दे रहे हैं।
ऽ क्या कभी उन जवानों की कठिनाईयों के बारे में जानने की कोषिष की हो जो हमेषा सीमा पर अपना सीना ताने खड़ा रहता है ?
ऽ क्या कभी उन शहीदों के माता पिता ,बच्चांे से मिले हैं जो देष की रक्षा करते शहीद हो गए ?
ऽ क्या कभी उन सुख सुविधाओं को छोड़ा, जिनकी मांग कभी देष के लिए लड़ने वाले जवानो ने नहीं की ?
ऽ क्या कभी उन परिवारों से मिलने की कोषिष की जिन्होंने अपने लाडलों को आतंकवादी हमलों में खो दिया ?
ऽ क्या कभी उन कष्मीरी पंडितों के हालात जाने जिन्हे कष्मीर से पलायन करवा दिया गया और कईओं को मौत के घाट उतार दिया गया ?
ऽ क्या सियाचीन में हिमस्खलन के दौरान शहीद हुए जवानों को याद किया जो देष की रक्षा के लिए विपरीत परिस्थितयों में भी चटटान की तरह खड़े थे और क्या उस जवान से मिलने की कोषिष भी की जो उनसे महज 8 कि मी दूर आर्मी हास्पीटल मंे जिंदगी की जंग लड़ रहा है ?
तो इस तरह के प्रष्नों के जबाव यह देष के गददार कम्युनिष्ट नहीं दे सकते क्योंकि यह तो अभी भी आजादी की मांग कर रहे हैं, पाकिस्तान को भारत आने का निमंत्रण दे रहे हैं, चीन की सेना के स्वागत में भी खड़े हैं।
जेएनयू देष का एकमात्र ऐसा विष्वविद्यालय है जहां सरकार की तरफ से सालाना 244 करोड़ की मदद दी जाती है। जहां सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जाती है। इस वर्ष इस विष्वविद्यालय की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने वाले हैं। फिर भी देष के प्रतिष्ठित 200 की सूची में इस विष्वविद्यालय का नाम नहीं हैं। यहां वड़ावा दिया जाता है तो सिर्फ बौद्धिक आतंकवाद को। जेएनयू एक्ट मेे अगर हम गौर फरमाए तो पाएंगे कि एक्ट में दर्षाया गया है कि विष्वविद्यालय राष्टीय एकता, समाजिक न्याय , धर्म निरपेक्षता ,जीवन के लोकतांत्रिक तरीके ,अंर्तरार्ष्टीय समझ और समाज की समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टीकोण को बड़ावा दिया जाएगा पर यहां तो किसी और ही दृष्टीकोण को बड़ावा दिया जा रहा है। परिसर में सरेआम इंडिया गो बैक जैसे स्लोगन अपने ही देष में लगाए जा रहे है आखिर कहां से वापिस जाने को कहा जा रहा है। जो देष का सबसे बड़ा दुष्मन है जहां से कई तरह की आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है उसी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे है। तो इससे बड़ा देषद्रोह क्या हो सकता है ? किस कष्मीर की आजादी की मांग यह वामपंथी कर रहे हैं जिस कष्मीर को भारत के लोगों द्वारा अपने खून से सींचा गया है, उस कष्मीर को जहां भारतीय जवानों के बलिदान की गाथा आज भी अमर है। जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कष्मीर हमारा है, जो कष्मीर हमारा है वो सारे का सारा है। उस कष्मीर की आजादी की मांग यह गददार वामपंथी कर रहे हैं।
अफजल की हत्या नहीं सहंेगे, कितने अफजल मारोगे, हर घर मेें अफजल है इस तरह के नारों से क्या दर्षाने की कोषिष यह वामपंथी कर रहे है ? यह वामपंथी उस अफजल की हत्या नहीं सहेंगे जिस अफजल नें देष के कई परिवारों के अपनों को उनसे जुदा कर दिया , यह उस अफजल की हत्या नहीं सहंेगे जिस अफजल ने खुद पता नहीं कितनी हत्याएं की हैं।
सन 1962 में जब चीन के द्वारा भारत पर आक्रमण किया गया तो देष के नागरिक एकजुट होकर भारतीय सेना का हौंसला बड़ाने में लगे थे तो वहीं यही कम्युनिष्ट लाल झण्डा उठाए चीन की सेना का स्वागत करने मेें लगे हुए थे। देष में जिस तरह से माहोल को खराब किया जा रहा है और देष विरोधी कार्य किए जा रहे हैं उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देकर यह वामपंथी देषद्रोह किए जा रहे हैं। वहीं भारत की सरकार, भारत की जनता अभी भी सहनषील बनी हुई है। अगर समय रहते हुए सख्त कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले कल यही लोग आईएसआईएस का झण्डा उठाए हुए भी नजर आएंगे। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाकर और रोहित बेमुला जैसे लोगों को ढाल बनाकर उन्हीं के कंधों पर बन्दूक तान कर देष विरोधी गतिविधियों को अंजाम वामपंथियों द्वारा दिया जा रहा है। भारत की सरकार और भारत की जनता को ही अब यह तय करना है कि देष के लिए अब बड़ा खतरा बन चुका यह वामपंथ कब तक जिंदा रखना है।

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