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अब राहुल गांधी द्वारा जेएनयू को चुना गया। जेएनयू में जाकर भाशण की तैयारी करते देखा गया पर षायद यह भूल गए कि वह उन व्यक्तियों के समर्थन में बोल रहे थे जो भारत मे रहकर भारत की बर्वादी की बात कर रहे थे। वह भूल गए कि वह उन व्यक्तियों के समर्थन कर रहे हैं जो भारत में रहकर भारत के खिलाफ तथा देष के सबसे बड़े दुष्मन पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे एक षैक्षणिक परिसर में लगा रहे हैं। राहुल अब यह भी भूल चुके हैं कि एक आतंकवादी जिसको देष के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देष के लोकतंत्र के प्रतीक संसद पर आतंकवादी हमले का दोशी पाया गया और फिर 11 साल चले मुकदमे के तहत ठोस सबूतांे के आधार पर फांसी की सजा सुनाई गई। जैसे जैसे राहुल की उम्र बड़ती जा रही है वह अपने होष भी धीरे धीरे खोते चले जा रहे हैं।
आखिर राहुल गांधी आतंकवादीयों के लिए इतने हमदर्द कैसे होते चले जा रहे हैं। पहले हैदरावाद में रोहित वेमुला द्वारा याकुव मेमन की श्रद्धांजली कार्यक्रम को आयोजित करवाया जाता है जब इसका कोई विरोध करता है तो उसे छात्रों की आवाज को दवाने वाला बताया जाता है। रोहित की आत्महत्या पर सियासत की जाती है और आत्महत्या के बाद राहुल भी अपना अफसोस जताने विष्वविद्यालय में धरने पर बैठ जाते हैं। रोहित भी यही काम विष्वविद्यालय में कर रहे थे जो अब जेएनयू मेें किय जा रहा है ।
भारतीय सैनिक अपनी जान की परवाह न करते हुए अपना सीना ताने दुष्मनों के आतंकी मंसूबों को नाकामयाब करने में लगे हुए है। एक तरफ भारतीय जवानो के हौंसलों को और मजबूत करने का काम 6 दिन तक वर्फ में भी जिंदा रहकर देष के हीरो भारतीय जवान हनुमथप्पा ने किया तो वहीं दूसरी तरफ आतंकवादीयों को अपना हीरो बताने वाले इन गददारों ने देषद्रोह नहीं किया तो क्या किया यह प्रष्न भी पड़े लिखे अनपड़ राहुल गांधी से है।
छात्रों को अपनी बात रखने का हक है पर क्या देष के खिलाफ बोलने वाले देष के गद्दारों को यूं ही छोड़कर क्या देष में अब पाकिस्तान का झंडा लहराना है या चीन का स्वागत करना है या फिर आईएसआईएस का देष में आतंक फैलाना है। यह प्रष्न भी देष के अनुभवहीन राजनीतिज्ञ राहुल गंाधी से है।
जेएनयू में जाकर छात्रों केा संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि छात्रों की आवाज को दबाना देषद्रोह है, आखिर कितना संरक्षण आप इन देष के गददारों को देंगे? इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद अभी तक यही नेता प्रमाणांे की बात कर रहे हैं कि क्या प्रमाण हैं कि छात्रों द्वारा ऐसा किया गया है। जिसे देष के सभी लोगों ने देखा और ऐसा करने वालो की जुबानी भी सुना की यह उनकी अभिव्यक्ति की सवतंत्रता है तो इसके कौन से प्रमाण अब राहुल गांधी और सीपीआई नेता सीता राम येचुरी को चाहिए।
राजनीति किस हद तक होनी चाहिए और किस तरह की होनी चाहिए यह अब देष की जनता को ही तय करना है कि ऐसी राजनीतिज्ञ देष को चाहिए जो देष के लिए खतरा बने, ऐसे राजनीतिज्ञ चाहिए जो देष की अखंडता के साथ खिलवाड़ करें या फिर ऐसी सरकार चाहिए जो ऐसे राश्ट्रद्रोह करने वालो के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करें।
सन्नी षुक्ला
छात्र उद्घोश, मासिक पत्रिका
संपादक एवं प्रबंधक
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