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राजनीतिक दल देषद्रोह का समर्थन कर क्या जताना चाहते हैं ?

shukla
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भारत कितना सहनषील देष है यह हम यहीं से जाने सकते हैं कि भारत मेें रहकर ही भारत के खिलाफ साजिष रचने वाले, देष के टुकड़े करने की बात करने वाले, देष के दुष्मनों की जय जयकार करने वालों को भी देष के कुछ राजनीति के वायरस से ग्रसित महानुभावों का समर्थन प्राप्त हो जाता है। देषद्रोह करने वालों के प्रति भी कुछएक लोगों की हमदर्दी देषद्रोहीयों के समर्थन में कैसे जाग उठती है यह बहुत ही गम्भीर और चिन्तनीय विषय है।
देष में रहकर ,देष का खाकर ,उसी देष को भला बुरा कहना कहां की बहादुरी है यह प्रष्न उन बुद्धिजीवियों से भी है जो आज देष द्रोहीयों के समर्थन में आकर खड़े हो रहे हैं। राजनीति एक मनुष्य को कितना गिरा सकती है यह जेएनयू विवाद से अब समझ आ रहा है।
भारत हजारों सालों तक गुलामी की जंजीरों मंे झकड़ा रहा उसका कारण भी यही था कि भारतीय एक नहीं थे,भारतीयों में एकता नहीं थी जिस कारण गुलाम देष बनकर रहना पड़ा। भारत के ही कुछ गद्दार आक्रमणकारीयों के तलवे चाटते रहे और उन्हें मौका देते रहे कि देष को कितना ज्यादा लूटा जा सके।
वर्तमान समय में वामपंथी जो देष के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुके है देष को तोड़ने की बात एक शैक्षणिक परिसर में करने लग पड़े, भारत की बर्वादी के नारे एक शैक्षणिक परिसर में गूंजने लगे, पाकिस्तान के प्रति इतना मोह हो गया जो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए गए और इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताकर देष में मौहोल को विगाड़ा गया। आज धन्यवाद करना चाहिए हमें जी मीडिया का जिन्होंने इस सारे प्रकरण को देष के सामने उजागर किया।
देष में देषद्रोहीयों द्वारा खुलेआम देष के खिलाफ साजिष के तहत देष को तोड़ने की बात कही गई। देष मेें आतंकवादीयों को सम्मान दिया जाने लगा जो देष के हत्यारे हैं और देष में कई आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के दोषी घोषित किये गए हैं, उन आतंकवादीयों को देष में हीरो की तरह पेष किया जाने लगा क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सरेआम धज्जियां उड़ाना नहीं है यह प्रष्न भी हम सभी के सामने चट्टान की तरह खड़ा है।
भारत की वो राजनीतिक पार्टीयां भी देष को किस दिषा में ले जाने की सोच रखती हैं जो आज इन देषद्रोहीयों के समर्थन में आकर खड़ी हुई हैं। यहां भारत के खिलाफ साजिष रची जा रही है और यही राजनीतिक पार्टियां जिन्हें देष हित की परवाह नहीं है और अपने अपने वोट बैंक को मजबुत करने के लिए देष के साथ खिलवाड़ करने में जरा भी गुरेज नहीं किया गया और इन देषद्रोहीयों को शह देने का काम भी किया गया यह बड़ा ही शर्म का विषय है।
जेएनयू के बुद्धिजीवी आचार्य भी देषद्रोहीयों के समर्थन में धरने में अपने को पाकर बड़ा सहज सा महसूस कर रहे हैं। यह आचार्य छात्रों को क्या षिक्षा देंगे जो आज देषद्रोहीयों का समर्थन करने में लगे हुए है। वो कैसे छात्र तैयार करेंगे जो खुद ही ऐसी गतिविधियों का हिस्सा बने हुए हैं जो देष के खिलाफ हैं यह प्रष्न भी हम सभी के सामने है।
कष्मीर के अलगाववादी नेता जो कई बार भारत में रहकर पाकिस्तान का समर्थन करते आए हैं और भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाए जा चुके हैं ऐसे अलगावादी संगठन से जब जेएनयू छात्र उमर खालिद के तार जुड़े होते है जो कि इस सारे कार्यक्रम का आयोजक था तो कौन सी साजिष के तहत यह कार्यक्रम हो रहा था यह भी बहुत ही आष्चर्यजनक तथा गंभीर विषय है। कार्यक्रम में कष्मीर से छात्रों को बुलाया जाता है क्या जेएनयू में छात्र प्रदर्षन के लिए उपयुक्त नहीं थे यह भी सोचनीय विषय है।
भारत की राजनैतिक पार्टियांे के सिपलाहकार जब ऐसे देषद्रोहीयों के हमदर्द बन जाते हैं तो हम सोच सकते है कि यह भी देष के लिए कितना वड़ा खतरा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जब माननीय प्रधानमंत्री को देषद्रोहीयों के समर्थन में चिठ्ठी लिखते हैं तो पता नहीं क्या सोच कर यह चिठठी लिख रहे होंगे कि वह कौन सा देष के लोगों के लिए उत्साहवर्धक लेखन कर रहे हैं। जब ऐसे देषद्रोहीयों के खिलाफ कार्यवाही होती है तो वो इसे छात्रों की आवाज को दवाना बताकर देषद्रोहीयों के हौंसलों को और मजबूत करने का काम करते हैं तभी तो इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी खुलेआम अभी तक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही इन देष के गद्दारों द्वारा बताया जा रहा है।
वामपंथी नेता सीता राम येचुरी इसे इमरजैंसी जैसे हालात बताने में लग गए पर वो शायद यह भूल गए कि आप ही वामपंथी हैं जो 1975 में लगी इमरजैंसी का समर्थन करने उतरे थे, आप वो ही वामपंथी है जो 1962 में चीन की सेना के समर्थन में आ कर खड़े हुए थे ,आप वो ही वामपंथी है जो कभी भारत माता की जय का नारा नहीं लगा सकते, आप वो ही वामपंथी हैं जो पष्चिम बंगाल के नंदीग्राम में नरसंहार का कारण बने थे, आप वो ही वामपंथी हैं जो देष में नक्सलवाद , माओवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं और जब आप पर कार्यवाही होती है तो इसे इमंरजैंसी का हवाला देकर अपना बचाव करने उतर जाते हैं। वामपंथ का दोहरा चेहरा जब बेनकाब होता है तो उनमें हलचल मच जाती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में अपने को बचाने की जगह बनाने लगते हैं।
देषद्रोहीयों का समर्थन कर हमारे देष की राजनीतिक पार्टीयां क्या जताना चाहती हैं ? जिस मुद्दे पर देष की तमाम राजनैतिक पार्टीयों को एक साथ आकर देषद्रोह जैसे गम्भीर मुद्दे पर देषहित में आना चाहिए था उसी मुद्दे पर पार्टीयों का बंट जाना और देष के गद्दारों को शह देना भी देष के दुष्मनों के ईरादों को और मजबूत करता है।
सन्नी शुक्ला, षिमला,हिमाचल प्रदेष

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