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अभिव्यक्ति की आजादी

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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अभिव्यक्ति की आजादी
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पढ़ते हुए बच्चे का अनमना मन
टूटती ध्यान मुद्रा
बेचैनी बदहवासी
उलझन अच्छे बुरे की परिभाषा
खोखला करती खाए जा रही थी …….
कर्म ज्ञान गीता महाभारत
रामायण राम-रावण
भय डर आतंक
राम राज्य देव-दानव
धर्म ग्रन्थ मंदिर मस्जिद ..और भी बहुत कुछ ..
पी एच डी कर भी जेल जाना
गरीब अमीर परदा दीवार
आरक्षण भेदभाव मनुवाद सम्राज्य्वाद
सब मकड़जाल सा उलझा तो
बस उलझता गया…. दिमाग सुन्न…….
किताबें फेंक…शोर में खो गया
गुड्डे गुड़िया के खेल में
अचानक क्रूरता हिंसा ईर्ष्या जागी
कपडे नोंच चीड़ फाड़ रौंद पाँव तले

नर- सिंह सा हांफ गया ……………………….
आजादी -आजादी इस से आजादी उस-से आजादी या फांसी ?
अभिव्यक्ति की आजादी …
कुछ लोगों की भेंड़ चाल झुण्ड देख
वह दौड़ा अंधकार में अंधे सा ….
माँ ने एक थप्पड़ जड़ा ..रुका ……
आँचल से पसीना पोंछ ..समझाया
बैठाया… प्यार से पोषित कर , दिखाया
देख ! चिड़िया भी अपना घर तिनके तिनके ला
बनाती हैं घोंसला… उजाड़ती नहीं
बन्दर मत बन -….उजाड़ -आग -विनाश नहीं
जिस थाली में खाते हैं छेद नहीं करते
अपना घर परिवेश समाज देश समझ
संस्कार प्यार ईमान धर्म कर्म
तेरे खोखले पी. यच. डी. विज्ञान पर भारी हैं
भूख ..गरीबी जाति धर्म नहीं देखती
न ये वाद ..न वो वाद ..विवाद ही विवाद
सामंजस्य समझौता परख जाँच
जरुरी है महावीर बुद्ध ज्ञानी बनने हेतु
शून्य में विचर पानी में लाठी मत पीट
कुएं में एक भेंड़ कूदी
फिर सब सत्यानाश …हाहाकार
जंगल राज ..अन्धकार से सहजता में आ
सरल बन ..शून्य बन
फिर ऊंचाइयों में चढ़ना आसान है
बच्चे ने आकाश की ऊंचाइयों में झाँका
कुछ आँका ..जाँचा
समझ आ गयी थी
आग लगाने से विकास नहीं होता
होता है विनाश ..नंगापन का नाच
भूख नहीं मरती
कटुता ही है बढ़ती
और हम आ जाते हैं ग्राफ में नीचे
पचास साल और पीछे
और फिर तिरंगा ले वह सावधान हो गया
वन्दे मातरम ..
जय हिन्द …..
उहापोह अब सुसुप्ति में आ चुका था …
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू यच पी
६-६.५२ पूर्वाह्न
२८ फरवरी २०१६

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