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आओ हम प्रातः उठ जाएँ

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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आओ हम प्रातः उठ जाएँ
दोनों कर नैन भरे देखें
लक्ष्मी शारद सब दर्शन पाएं
माँ-पृथ्वी के हम गले लगें
भजन कीर्तन जुड़ प्रभु से
कुछ योग-ध्यान में खो जाएँ
ले दिव्य दृष्टि पाएं प्रभु को
जीवन को अपने सफल बनायें
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
प्रातः वेला में घूम -टहल
देखें कलरव हर चहल पहल
जब खिलें पुष्प या पंकज दल
मन-हर माँ प्रकृति के सुखकर दृश्य
ले श्वांस तेज सब दिल में भर
मुस्काते -हँसते दिन-रैना
जीवन को अपने सफल बनायें
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
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कुछ पुण्य करें कुछ दान करें
चिड़िया कौओं का ध्यान रखें
माँ-गौ माता को नमन करें
शीतल जल कुछ तो दे आएं
जो असहाय कहीं दुर्बल हैं
कुछ अंश प्रभु का दे आएं
ऊर्जा ऊष्मा आशीष सभी के
जीवन को अपने दिव्य बनायें
मुख -मंडल जब आभा अपने
मन ख़ुशी सभी को खुश रख के
हर कार्य सफलता पा जाएँ
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
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हम स्वच्छ रहें परिवेश स्वच्छ
नित साफ़ सफाई मन लाएं
आरती वंदन मंदिर मस्जिद
गुरूद्वारे-चर्च कहीं जाएँ
है कोई करे नियंत्रित सब
हम प्रेम करें रखें कुछ भय
उस प्रभु में खो जाएँ पल -छिन
विचरें हम शून्य व् सूक्ष्म जगत
शुभ सुन्दर सच का करें वरन
जीवन आओ हम सफल बनायें
आओ हम प्रातः उठ जाएँ
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२०-९-२०१५
रविवार
३.४२-४.४२ पूर्वाह्न
कुल्लू हिमाचल प्रदेश भारत

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