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आवारा (भोगना समाज को ही – भ्रमर गीत)

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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मै आवारा ना प्यारा बदनाम हुआ –
बचपन में कोई नहीं दुलारा !
सींचे बिन कोई शीश उठा मिटटी -ना-
-छाया पायी कोई -आँखें रोई !

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(फोटो साभार गूगल / नेट से )

रूखे दूजे चढ़ हरे हुए- अचरज से देखे
काट लिया उसको भी कोई !
गलियारों में कुत्ते भूंके- बच्चे तो छूने ना देते
-ना-आँख मिलायी !
रहा अकेला- मन में खेला -कुंठा ने दीवार बनायीं
लोग कहें हैं पाप कमाई !!
भूखे को दे –टाला खाना -मन कैसा ?
छीना झपटी- क्यों मारा ?? मै आवारा !!
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बद अच्छा बदनाम बुरा -खुद कांटे बोकर –
घाव किया न सूखेगा !
नैनों में ना नीर बचा दिल पत्थर क्या तीर चुभे-
फूल कहाँ से फूटेगा !
बढ़ा दिए मन दूर किये जन -फूलों को अब लगता काँटा
अंग कहाँ बन पायेगा !
लगी आग घर -दूर खड़े हम -प्यास लगे ना पानी देता
ख़ाक हाथ रह जायेगा !
खोद कुआँ मै पानी पीता -रोज किसी को दिया सहारा –
मै आवारा ??? ना प्यारा बदनाम हुआ –
बचपन में कोई नहीं दुलारा !

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नासूर बनाये छेड़ छाड़ तो अंग तेरा कट जाएगा
उपचार जरा दे !!
टेढ़ी -मेढ़ी चालें चलता पग लड़ता गिर जायेगा
-तू चाल बदल दे !
भृकुटी ताने आँखें काढ़े -बोझ लिए मन रोयेगा
मुस्कान जरा दे !
अपनों को ही सांप कहे- पागल- तुझको डंस जायेगा
तू ख्याल बदल दे !
आग लगी मन -जल जाता तन-भटका फिरता –
छाँव कहाँ मिल पायेगा -मै आवारा ??
ना प्यारा बदनाम हुआ –
बचपन में कोई नहीं दुलारा !
!
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आग लगे सब दूर रहें -परिचय चाहूं ना –
जल तप्त हुए -मै ना झुलसाता !
कीचड जाने दूर रहें -अभिनय -साधू ना-
दलदल में वह ना धंस जाता !
बलिदान चढ़ाता- ऋण भूले ना –
सजा काट कर न्याय बचाता –
पाप किये ना पाँव धुलाता
सीमा रेखा में अपनी -सिद्धांत बनाता –
दो टुकड़ों के खातिर कुछ भी –
साजिश कर -ना -देश लुटाता !
माँ बहनों को “प्यार” किये – “बदनाम” भी होता –
आग नहीं तो राख कहीं लग जाएगी -ये आवारा !
मै आवारा ?? ना प्यारा -बदनाम हुआ –
बचपन में कोई नहीं दुलारा !!!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
३१.०५.२०११ जल पी. बी .१०.४१ मध्याह्न

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