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बेहया -‘बेशरम’

Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
Bhramar ka 'Dard' aur 'Darpan'
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बेहया -‘बेशरम’

वो आये यहाँ

हमने धरती दिया

खुला आसमान

सींचा सहारा दिया

खाली जमीन !!

तालाब- बंजर पटते गए

उनमे हरियाली

खिलते गए -‘फूल’ !

बिना गंध- महक के

बिना काँटों के

नागफनी – कैक्टस वे बनते गए

चुभते गए – बढ़ते गए

फैलते गए – यहाँ – वहां

जहाँ – तहां

अन्दर – अन्दर जड़ें

‘बेहया’ – ‘बेशरम’ –

भी कह डाला हमने उन्हें

काहे की शरम ! –

धोकर पी डाले लगता है !!

‘कील’ से चुभे छाती में

चूसते ‘पानी’-हरे होते जा रहे

और हम -‘बंजर’-धूल !!

दुनिया भर की संस्थाएं – कुकुरमुत्ते सी –

कुछ फैलती- ‘उनसी’

साथ जो उनके –

झंडा ले आड़े आते

हरियाली मत काटो –

मत छांटो ‘शाख’

बिना कांटे के ये गड़ते-बढ़ते

लाभ लेते -सोखते

हमारी उपजाऊ जमीन का

धंसे जा रहे !!

जब तक हमारे यहाँ

हया- ‘पानी’ -शरम –

बाकी है !!

बेहया ये बेशरम !!

काटो तो लग जाएँ बिना पानी के

जलाओ तो ‘विष’ उगलें

धुवाँ भरा – ‘हानि’ से

चक्कर आता अब हमें

आँखें धुंधला गयीं

न लकड़ी न फूल

पल पल अब गड़ें

जैसे हैं शूल !!

लगता हैं ‘नया’ –‘बड़ा’

पाल लिया -‘रोग’

अब जिसे मिटाने में -अक्षम -बेकार !!

भाई -भतीजा-है -मेरी सरकार !!

नहीं कोई साथ –

टोटका न जोग

कोई मंत्र न मूल !!

क्या लाया – लगाया

क्या कर डाली -“भूल”. !!

सुरेन्द्रशुक्लभ्रमर५

24.03.2011

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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