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अजगर बन मै यहीं रेंग लूं काहे स्विटज़र जाना

Bhramar Ka Jharokha
Bhramar Ka Jharokha
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मात लक्ष्मी कृपा करो तुम
घर आँगन भर जाए
बादल बरसें सोने चांदी
वही पियें हम खाएं
प्रेम से अब क्या लेना देना
प्रेम तो हुआ खिलौना
जब चाहो तुम जोड़ो तोड़ो
ना आदम ना हौव्वा
रीति नीति सब भई पुरानी
आँखों का सूखा है पानी
मानव मन बिकता है अब तो
घास डाल कुछ चारा पानी
आँगन में बाजार लगा है
मोल भाव ही करते दिखते
मात पिताश्री तो गायब हैं
ममी डेड सी तरते रहते
अधनंगों नंगों की दुनिया
ताज पहन कर घूमें
कोई तलवे चाट रहा है
कोई बांह भरे है चूमे
हीरा पन्ना मोती माणिक
कहाँ जौहरी जो पहचाने
क्या चन्दन है कहाँ रंगोली
क्या उपवन क्या पुष्प खिला
अब तो कैक्टस चुभ जाए रे
सेज पे पहली रात मिला
हे लक्ष्मी तू धनी बना दे
घर में गाड़ खजाना
अजगर बन मै यहीं रेंग लूं
काहे स्विटज़र जाना
हर दीवाली दिया जलाया
नहीं ख़ुशी ना पूड़ी पाया
अब तो तेल नहीं है बाकी
इस दीवाली दिया ना बाती ?
उनके घर क्या पाए माता
क्या तुझको है वहां सुहाता
झर झर झरते कर से तेरे
रत्न वहीं पर क्यों भर जाता ?
रोशन कर दें मन तू मेरा
ईर्ष्या मन में ना रह पाए
जगमग जगमग ज्योति जला दे
लक्ष्मी दौड़ी यहीं आ जाए
गणपति बप्पा भी संग आयें
सरस्वती जिह्वा बस जाएँ
मधुर मधुर अहसास भरा हो
प्रेम का पग पग दिया जला हो
अनुपम दिव्य लोक हो जाए
मन रोशन माँ संग हो जाए
दीवाली सुन्दर हो जाए !!
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(फोटो साभार गूगल/नेट से )

हमारे सभी मित्र मण्डली को दीवाली की अग्रिम रूप से हार्दिक शुभ कामनाएं ..क्या जाने कल कहाँ रेंग जाऊं ….जय गणपति लक्ष्मी मैया ..छवियों के लिए नया अवतार लेना होगा जे जे की कृपा से स्पेस नहीं बढ़ा …..
शुक्ल भ्रमर ५
२०.१०.२०११ ९.०० मध्याह्न
जल पी बी

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