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इस ब्लॉग में मैंने शीर्षक के पहले सितम्बर भाग १ में जिसमे मैंने डॉ.अम्बेडकर के संविधान सभा, डॉ.साहेब के चेतावनी पैर किसी ने गंभीरता का परिचय नहीं दिया आइये पहले उन पहलुओ पैर विचार करे कि इस आन्दोलन की पृष्ठ भूमि क्या है?और इसका इतिहास कुछ यु है सर्वहारा वेर्ग की गरीबी,विपन्नता ,असमानता को दूर करने के लिए इसका जन्म हुआ था. पश्चिम बगल के दार्जिलिंग जिले में एक गाँव है नाक्स्सलवादी इस गाँव के नाम पैर ही इस आन्दोलन की शुरुआत इस गाँव के बड़े सरकारी जमीनों पर पुजिपतिपो का कब्ज़ा था.भूमिहीन लोग इस जमीन को जोतते,बोते थे जमींदार इस अनाज का मामूली हिस्सा भिमिहीनो को देने के बाद सरे अनाज पर कब्ज़ा केर लेते थे इसके खिलाफ आवाज उठाने वालो को आगे से फसल उगने के लिए जमीं भी नहीं देते थे|यह सब पुलिस प्रशन और सरकारी राजनीतिको को भी पता था लेकिन इनलोगों के हित के लिए कभी हस्क्चेप नहीं करते थे ,१९६७ में चारू मजमुदार,कनु सान्याल,और जंगल संथाल जैसे नेताओ ने इसके विरोध किया और जनांदोलन का नेत्रित्व किया परन्तु उनकी बात सुनाने के स्थान पर इन लोगो के अहिंसक आन्दोलन को सरकार ने बल पूर्वक ध्वाथ केर दिया इसक्र विरोध में चारू सान्याल,चारू मज्मुदारौर जंगल संथाल ने शसस्त्र आन्दोलन की की घोसदा की इस प्रकार जमींदारो के खिलाफ इस आन्दोलन ने सरकारी दमन की वजह से हिंसक रूप ले लिया वह से निकल केर इस आन्दोलन ने धीरे धीरे बिहार,आन्ध्र प्रदेश ,होते हुए आज देश की चौथाई भाग में फ़ैल गया १९७० में चारू मजमुदार ने भारत मुक्ति का रास्ता अपनाया नाक्स्सल्वाडियो ने भूमिहीनों,,आदिवासियो,दलितों और हाशिये के लोगो का समर्थन मिलाने लगा.बिहार में इन वन्व्हितो ने फसलो की कटाई और जमींदारो की हत्या शुरू केर दी सबसे मह्त्वपुर्द बात उः थी की इस आन्दोलन के करता–धर्ता उच्च्शिक्चित लोग थे लो इन बंचितो को बरगला केर सत्ता के विरोध में अपना समर्थक बना लिया और जिसके प्रिदम स्वरुप यह आन्दोलन आँध्रप्रदेश महारास्त्र और मध्यप्रदेश में अपना विस्तार किया और आगे चल केर जब इस आन्दोलन ने सरकार के विरुध्ध सीधी लड़ाई शुरू की .जब तक इसके ख्तेरंक पहलुओ पर इनके नेताओ ने इस आन्दोलन को बंद करने का निदे लिया तबतक बहुत देर हो चुकी थी और विचरो में मतभेद के चलते यहकी गुटों में बात गया आन्दोलन से अलग होने के बाद भी चारू मजमुदार को गिरफ्तार केर यात्लाये दी जिसके विरोध में मजमुदार ने ४० दिनों की भूख हड़ताल शुरू केर दिया जो चली दिनों तक चला उसी वक्त उन्होंने घोसदा की कि मेरा खून किसी दिन रंग लायेगा जो इस अन्याय पुरद व्यवथा को उखड़ फेकेघा और उनकी जेल में ही सन्दिओग्ध्ध परिस्तियो में मौत हो गयी जिसकी प्रतिक्रिया में यह आन्दोलन गंभीर रुख ले लिया और यह सब तब हुआ जब इन नेताओ ने इस आधार पर आन्दोलन को समाप्त करने का निर्दय लिया उसी वजह से आन्दोलन कई टुकड़ो में बत और हिसक रूप से आन्दोलन को पूड़े देश में फैलाना प्रारम्भ केर दिया जैसे कही मार्क्सवादी (मोवादो),कही पीपुल्स वार,लेनिन वादी, ग्रुप,इत्यादि नाम से फैलता रहा.जैसा मैंने पिचले ब्लॉग में बताया था कि योजना आयोग द्वारा गाधित विशेस्ग्यो की समिति ने अपने २००८ की रिपोर्ट में कहा कि चूकि भारत राज्य में नेहरू माडल तथा आज का नवउदारवादी माडल बुरी तरह विफल हो चूका है और यही आदिवासियो,भूमिहीनों,दलितों और उपेक्चितो के लिए मओवादियो को उर्वरक भूमि उपलब्ध कराती है.परन्तु मंत्री बनने के पूर्व कार्पोरत एडवोकेट तथा वेदान्त जैसे पर्यव्रद विनास के लिए विश्व में कुखत हमारे गृह मंत्री श्री चिदाम्बेरुम महोदय ग्रीन हंट के नाम से सफाया अभियान प्रारम्भ केर दिया ग्रीन का मतलब हरा यानि जंगल हंट यानी शिकार शुरू केर दिया और एकसे एक कुख्यात नमो वाली सुराचा बालो कोबरा फ़ोर्स इत्यादि नामो वाली बालो को लगा दिया वजह मात्र इतनी थी कि भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार आदिवासियो और गरीबो का ४०% लोग एक या एकसे अधिक बार विसथ्पित हुए है साहित्यकार और सामाजिक कार्य करता रमणिका कहती है कि दामोदर घटी के महार डैम के उद्घाटन करते हुए पत.जवाहर lalइसे विकास का मंदिर कहा था लेकिन शर्म की बात है कि १९४९ के भूमि के मुआवजे का मुक़दमा अदालतों में घिसत रहा है सरकार और खास तौर गृहमंत्री जी अहिंसक तरीके से भी अपनी मागो के लिए आन्दोलन चलाना चाजिए लेकिन दुनिया देख रही है कि मैग्नेसेस पुरस्कार से सम्मानित कार्यकर्त्ता को नर्वदा आन्दोलन चलते २५ वेर्ष हो गए लेकिन उसपर सरकार ने कोई नोटिस नहीं लिया सर्वोच्च न्यायलय के आदेशो का भी माखौल उदय गया ,पूर्वोत्तर में सुराचा बालो द्वारा बलात्कार के बाद हत्या करने के विरुध्ध सेना से विशेष कानून के विरुध्ध दर्जनों महिलाओ ने पूर्ण रूप से नग्न हो केर प्रर्दासन किया लेकिन भारत सरकार ने उसकी भी उपचा की और वही की शर्मीला १० वेर्सो से आमरण अनसन केर रही है लेकिन सरकार गिरफ्तार केर जबर्दस्ती डिप चढ़ा केर जिन्दा रखा है लेकिन एक बार भी सत्ता की महारानी और देश में क्रन्तिकारी परिवेर्तन का बजा बजाते युवराज को उनकी बात सुनने का भी समय नहीं मिला शायद युवराज को इनसब चीजो की जानकारी भी नहीं होगी नहीं तो आर. एस.एस.की तुलना सिम्मी जैसे संगधन से की और गुजरात में छात्रों द्वारा मोदी द्वाराविकास के सबसे विकसित होने के सवाल पर मोदी जी की तुलना माओ से करते हुए अपने विकास विरोधी आतंकवादी विकास की तुलना करते हुए कहा कि विकास तो माओ ने भी किया अब ऐसे बुधध्हीन सख्स को हमारे मनमोहन से ले केर बुजुएर्ग कांग्रेस्सियो का भी यही कहना है कि प्रधान मंत्री पद के लिए सबसे योग्य व्यक्ति है हेर सार्वजानिक मंच से यह कहने में धूमिल ने सही कहा है कि ‘सिंदूर तो है लेकिन लाज नहीं है. मनमोहन सिंह कहते नहीं अघाते कि राहुल के लिए कुर्सी खली है जब चाहे शपथ ले सकते है वही राहुल जो अपने पिचले कार्यकाल के ५ वेर्सो में संसद में सिर्फ तीन बार बोले है जिसमे कलावती के सुवे किसी को नहीं पता कि कब किस विषय पर क्या बोले .खैर हम मूल मुद्दों से भटक रहे है.बहुचर्चित झारखण्ड में नाक्स्सली हिंसा द्वारा ७४ सुराचा बालो की हत्या का बहुत शोर मचानेवाले खाए पिए अघाए लोग और बिका हुआ मीडिया जो रीना राडिया के फोन टेप से जनता के सामने नंगे हो चुके है .यह लोग मूल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए कुछ अभिनेताओ,विज्ञापन गुरुओ और बीके हुए पत्रकारों के बीच सुरच्चा बालो के मानवाधिकार का मुद्दा उठाते है लेकिन क्या सिर्फ गोलियों से मरने वाले लोगो का ही मानवाधिकार होता है,मई हिंसा का बिकुल समर्थक नहीं हु लेकिन यहाँ बहस को शातिराना ढंग से मूल मुद्दों पर बहस चलने की जगर बहस को हंसा अहिंसा पर केन्द्रित केर दिया जाता है मई यह सवाल सिविल सोसायटी के लोगो को इस पर भी बहस चलानी चाहिए कि क्या जो लोग दावा इलाज,सुराचा बालो की ज्यातती और हेर तरह कि भूख से मरने वालो का कोई मानवाधिकार नहीं होता.जिनलोगो आज तक आजादी का अर्थ नहीं समझा क्योकि वह विकास तो दूर की बात भूखो बिलबिला केर मरने को मजबूर है जबसे छत्तीस गढ़ में सोने की खानों,नीलम, हीरे ,बोक्स्सित,लौह अवासको और अन्य तमाम वस्तुओ का पता चला मित्तलो ताताओ और देशी विदेशियो बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के लिए इन्हें इनके मूल स्थानों से भगाया जा रहा है और सलवा जदुम के नाम पर उनके गावो को या तो पकड केर जुडून के शिविरों में अमानवीय तरीके से जबर्दस्ती रखाजा रहा है जो इनका विरोध करते है उनके घरो को फुक दिया जाता है और जवान बेटो के सामने उनकी बहु बेतिओ का बलत्कार किया जाता है यह सुराचा बालो के सक्रीय होने से पूर्व हो रहा है इन्ही सब वजहों से अन्ध्राप्रदेस और अन्य प्रदेश के नाक्स्सल्वादी इनके समर्थन में खड़े हुए क्यों कि इनकी आवाज सुनना तो दूर उनका सफाया अभियान अभियान राज्यों में भी चलाया जा रहा है.सुराचा बालो को भी इतनी नारकीय स्थितिओ में रख्खा जाता है जिन्हें दावा–दारू की बात तो दूर झारखण्ड के सफाई अभियान में १०० से अधिक सुराचा बालो के जवान मलेरिया से मर गए उसपर बहस क्यों नहीं होती सरकार अपने स्वार्थ इतनी अंधी हो गयी है कि किसी कीमत पर यह जमीन और जंगल खली करा केर पुजीपतियो के हवाले किया जाय कुल लगभग ५०० गाँवो को उजाड़ने का इंतजाम करना उनका मुख्य लक्ल्च है सैकड़ो म.ओ.ऊ किये गए जिसे सरकार गोपनीय बता रही है और उसका विवरण किसी को नहीं पता कि क्या खिचड़ी पाक रही है.जाने मानेचिन्तक गोविन्दाचार्य की माने तो पिचले साढ़ वेर्सो में राज्य सत्ता में सामाजिक–आर्थिक समस्याओ का राजनैतिक या प्रशसनिक ढंग से समाधान की कोसिस कीगई जिसके चलते समस्याए तो बढती गयी और समाधान राजनीत के इर्द गिर्द घुमाने लगा. यदि जल,जंगल,जमीन को ध्यान में रखते हुए विकास की योजनाये बनती और तो मनुष्य और संस्कृति और सम्वृध्धी का संतुलन बैधाया जा सकता था.उन्होंने यह भी विचार प्रगत किया कि स्थिति तब और विषम हो जाती है जब सत्ता विपक्च दोनों ही उत्पीड़क नीतिओ के पछधर हो तो स्थिति विषम हो जाती है.आज दोनों एक गिरोह की शक्ल में आदिवासियो और बंचितो के अधिकार पर डाका डालते है.जब कि बंचित वेर्ग के लिए लड़ने वाले लोगो को लोगो को नाक्स्सली करार दे केर क्रूर दमन किया जा रहा है ऐसे में जब बंचित वेर्ग के लिए लोकतान्त्रिक नीति का दरवाजा बंद होने लगेगा तप वे जिम्मेदार या गैर जिम्मेदार का भेद न करते हुए अपनी समस्यों के समाधान के लिए हेर तरह का तरीका अपनायेगे . नाक्स्सल चेत्र में कम करने वाली रमणिका गुप्ता कहती है कि नाक्स्सल का नासूर सरकार के गलत नीतिओ का नतीजा है इसके लिए शासन प्रशासन नेता सभी जिम्मेदार है.जो असली समस्या को समझाने की कोसिस नहीं करते रमणिका का कहना है किसरकर आज तक सिर्फ–और सिर्फ शोषण करने वाली सक्तियो को ताकतवर बनाती रही है.सवाल उठाती है कि आज यहाँ अऔद्योगिकरन किसके लिए किया जा रहा है.आदिवासियो या पुजीपतियो,साहुकारो और बहुराष्ट्री कंपनियो लिए? आखिर सरकार का दावा है कि आदिवासी नाक्स्सलियो के डर से उनका समर्थन करते है फिर जैसा की सरकार कहती है और दंतेवाडा में मरने से बच गए सुराचा बालो का कहना है कि वे सैकड़ो की संख्या में आये तो आखिर सरकार या सुराचा बालो को एक भी मुखविर क्यों नहीं मिला सैकड़ो की संख्या में आए और सैकड़ो जवानों की हत्या केर चले गए शायद चिदाम्ब्रुम महोदय इस पर कुछ नहीं विचार करते कि जवान भी उन्ही शोसितो में ही आते है और खुदा न करे कि जिस तरह अंग्रेजो के समय निरीह जनता पर गोली चलने से चन्द्र सिंह गढ़वाली इंकार केर दिया था कि महात्मा गाँधी ने सझौते से भगत सिंह और गढ़वाली के मामले को अलग केर दिया इस आधार पर कि हिंसा करने वाले और सेना का अनुशासन न मानने वाले लोगो के अतिरिक्त सभी जेल में बंद कैदियो को रिहा केर दिया जाय जब इस देश को आजाद करने वाले महात्मा जी की सोच थी तो उस वक्त यानी १९३० में यही थी इसी लिए सम्ज्यवाडियो द्वारा चिदे द्वितीय युध्ध में ब्रितानी सरकार के लिए नारा दिया था एक गाँव बीस जवानों के लिए कि सेना में भारती हो केर सम्रजय्वाडियो के साथ द्वितीय युध्ध में भागुदारी निभाए इसी से उनके अहिंसा की हवा निकल जाती है जिसमे मुख्य कार्यक्रम महात्मा जी का था जिसे शांति और अहिंसा का नोबल न मिलाने पर बहुत हाय–हाय की जाती है.नाक्स्सल्वाद की तरह संघटन बना केर भगत सींह उनका विचार था उन्होंने स्पष्ट लिखा है वह भी ३१ वेर्स की उम्र में उन्हों ने भविष्य वादी केर दी थी कि गोरो की सरकार की जगह भूरो के सत्ता में आने पर समानता और सम्मान की जिन्दगी की माग करने वाले लोगो से ब्रितानिया के मुकाबले वास्विक और पूर्ड आजादी के लिए कई गुना बड़ी लड़ाई लड़ना होगा ये विचार भगत सिंह ने जेल में फासी की सजा की प्रतीचा केर रहे थे खाई अब उस समय के वैस्सय और मुख्य सचिव का रोजनामचा कुछ निर्धारित समय के बाद सार्वजानिक केर दिया जाता है उसमे थाने की तरह सभी बाते दर्ज है जिसमे महात्मा जी ने व्ययास्रय के बीच सझुओते की सभी शर्तो के के बाद महात्मा जी ने उनसे आग्रह किया कि अगेर माँ यह कहू कि मैंने भगत सिंह की फासी के बारे में लोगो आप से बात की और कहू तो आपको कोई एतराज तो नहीं होगा,सिर्फ इस लिए कि असेमली मी बम ब्लास्ट और खड़े हो केर यह बयां दिया कि जब विदेशी सत्ता के कान बहरे हो जाय तो उन्हें सुनने के किये अहिंसक धमाका करना हमरा अधिकार और कर्तव्ये हो जाता है हम ऐसा करे और उन्हों ने अपने मुकदमे को खुद लड़ा इस पर कभी विस्तार से लिखुगा हा लेकिन अंग्रेज जज ने अपने फैसले में दर्ज किया कि आपके प्रगतिशील विचारो से माँ सहमत हु आपने अपने तर्कों को न्ह्स्वर्थ ढंग से रखा वह अपनी जगह सही भी हो तो आपके उपर इस तरह के इल्जाम लगे आपको कि सजा देना मेरी संवैधानिक मजबूरी है.उस समय भगत सिंह ३२ या ३३ साल के थे. वजह मात्र इतनी थी कि पर्चे छपवाने के लिए भूखा तक रहना पड़ता था..लेकिन लोकप्रियता की वजह महात्मा जी घबडा गए थे क्यों कि उस समय बच्चे-बच्चे का नारा इन-क्लब —-जिंदाबाद जिसे बम सेकने के बाद लगते हुए गिरफ़्तारी दी लोगो के बीच यह बहस भी शुरू हो रही थी महात्मा जी के अहिंसा और असहयोग टाइप अल्दोलन से कितने दायरों का ह्रदय परिवेर्तन हो गया या जलिया वाले बैग के आरोपिओ कि सजा तो दूर की थी गिरफ़्तारी और छुट्टी भी नहीं ली कितने लोगो का ह्रदय परिवेर्तन हुआ इसी लिए अगेर इन लोगो ने सजा के तौर गोली मार केर मौत की सजा दी तो इसमे हर्ज ही क्या है.इसी लिए उनकी सजा के बाद किसी तरह हिंसा होने पर क्यों कि सुभास चन्द्र बोस फासी दिए के विरोध में बड़ी सभा केर रहे है तो उनसेक्रेतरी को लिखित अस्वासन दिया कि पुलिस न दिखे या कार्यवाही न करे तो बाकि माँ संभल लुगा यह प्रकारद मैंने इस लिए दिया क्यों कि भगत सिघतब दिया था जब वायस राय की ट्रेन के नीचे बम विस्फोट किया तो वायसराय बच गए उसके बाद और उनकी जिंदगी कमाना करते हुए पात्र लिखा और इसमें इहोने इन लोगो की घोर निंदा की काग्रेस के निंदा प्रस्ताव का को खुद लिखा और उसे पारित करने के लिए अपना इज्जत के सवाल पर प्रयत्न करने के बाद १९१३ सदस्यों वाली समिति में मात्र ३१ के बहुमत से प्राप्त हुआ. अब इस रानीतिक ईमानदारी का प्रयास से हासिल हुआ.इसके सरला देवी चौधरानी जोजिनगी भर कन्गेरेस की भक्त रही का मत यहाँ उद्धित करे इस सम्बन्ध प्रश्न के उत्तर में के उत्तर में कहा कि मैंने महात्मा जी के अनुययियो के साथ इस बारे बात-चीत की,इस प्रस्ताव के विरुध्ध महात्मा जी के प्रति व्यग्तिगत निसधा के कार्ड प्रस्ताव के विरुध्ध मत देने में असमर्थ थे जिसके प्रदेयता गाँधी जी थे.|
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