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वैसे तो मनमोहन सिंह की ईमानदारी पैर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता लेकिन लोकतंत्र में लितानी आवस्यकता आर्थिक ईमानदारी की होती है उससे कही अधिक नैतिक रूप से इमानदार होना चाहिए यही बहुदलीय लोकतंत्र की खूबी और खासियत है.इस मोर्चे पैर मनमोहन सिंह घोर अनैतिक ठहरते है क्योकि राज्यसभा के लिए आसाम से चुने जाने हेतु उन्होंने गलत पता दिया माकन नो.३९८९ में कभी रहे ही नहीं और नहीं कभी जाहिर किये की उनका आसाम से भी कोई सम्बन्ध है.एक प्रधानमंत्री के लिए यह घोर अनैतिक है की दुसरे कार्यकाल के लिए भी उन्ही झूठे हथ्खंदो का सहारा ले केर फिर कुर्सी पैर बैठ गेर यह अनैतिकता की पराकाष्ठा थी जो बगैर लोकसभा के आम चुनाव में प्रत्यासी बने ,पर्चा भरे प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो गए.संविधानिक रूप से सही होते हुए भी घोर अन्तिक था लोकतंत्र की बुनियाद परम्पराव से चलती है इंदिरा गाँधी ने आपातकाल भी संविधान के दायरे में ही घोषित किया था तो क्या उसे हम न्यायोचित ठहरा सकते है.इसतरह मनमोहन नैतिक रूप से बेदाग नहीं कहे जा सकते देश का दुर्भाग्य है की डॉ.लोहोया और राज्नारें जैसे नेता नहीं रहे नहीं तो मनमोहन को जबाब देना असंभव हो जाता.उनकी दूसरी बड़ी असफलता बलूचिस्तान मुद्दे पैर अपनी असावधानी से हमेशा के लिए देश को रचात्मक होने को बाध्य केर दिया,राष्ट्र मंडल खेलो का आयदिल्ली में उनकी नक् के नीचे हो रहा है जिसमे जम केर लूट हो रही है औरराज्कता का माहौल है तयारी किसी तरह लीपा पोती हो रही है जिसमे मनमोहन की कोई भूमिका नहीं है.आखिर कोई प्रधान मंत्री अपने सामने इस तरह की अव्यवस्था और लूट पैर निगाह फेरे रह सकता है.महाराष्ट्र में उ.प.,बिहार के लोगो की अनावश्य पिटाई पैर ख़ामोशी नाजी तोड़े यह भी उनकी असफलता ही कही जाएगी क्योकि संविधान प्रदत्त अधिकारों,देश के किसी हिस्से में व्यापर करने की आजादी प्प्प्पका अपहरण विलासराव देशमुख के सहमती से हो रहा था और इस पैर प्रधानमंत्री की ख़ामोशी HAIRAT
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