Menu
blogid : 2822 postid : 164

लोकतंत्र में कौन बड़ा है? प्रश्न खड़ा है–प्रश्न खड़ा है|

PAHLI NAZAR
PAHLI NAZAR
  • 10 Posts
  • 8 Comments

आज हम एक ऐसे प्रश्न से मुखातिब है जो हमारे संविधान को प्रश्नों के घेरे में है. आखिर जनता के मौलिक अधिकारों का अपहरण एक ऐसी सत्ता द्वारा किया जा रहा है जो भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर किसी तरह की कार्यवाही तो दूर इस बारे में बताना कम और छुपाना अधिक चाहती है. इसके लिए किसी हद तक जाने को तैयार है. ये पाखंडी नेता जो पिछले ६३ सालो से जनता की गाढ़ी कमाई और देश को बेच कर विदेशो में अपनी तिजौरिया भर रहे है. हमारे यहाँ के जनतंत्र के बारे में धूमिल की कुछ लाइने मौजू है.
यह जनता—-|
जनतंत्र में
उसकी श्रध्धा
अटूट है
उसको समझा दिया गया है,यहाँ
ऐसा जनतंत्र है जिसमे
जिन्दा रहने के लिए
घोड़े और घास को
एक जैसी छूट है
कैसी विडम्बना है,
कैसा झूठ है
दरअसल,अपने यहाँ जनतंत्र
एक ऐसा तमाशा है
जिसकी जान
मदारी की भाषा है.
अभी हम जिस दौर से मुखातिब है वह १९७४ के जे.पी. के आन्दोलन से अलग परिस्थितिया है आज हम आंतरिक विदेशी मानसिकता के नेत्रित्व में अपने को ठगा महसूस पाते है क्योकि जिस तरह बाबा रामदेव के आन्दोलन में शामिल महिलाओ.वृधो और बच्चो पर रात के अँधेरे में मार-पीट कर खदेड़ा गया उसका उदाहरण भारतीय लोकतंत्र में विरले ही देखने में आता है.आखिर बाबा रामदेव लगभग एक साल से काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता में जाग्रति फैला रहे थे उस वक्त एक वास्विक लोकतंत्र में शासन को कोई पहल करना तो दूर राजा,सुरेश कल्माडियो और पी.जी.थामस जैसे भ्रष्ट लोगो को संरक्चन देने के लिए हमारे इमानदार मनमोहन सिंह को शिखंडी की भूमिका में विदेशी नेत्रित्व ने आगे कर दिया और हमारे विपची अपने करतूतों के चलते शिखंडी के सामने हथियार डाल दिए.पी.ए.सी. की रिपोर्ट पर मुलायम और मायावती अपने संपत्ति की सी.आइ.बी. जाँच के चलते पीछे हट गए. और पूरी जाँच जिसके सम्मुख प्रधान मंत्री खुद को प्रस्तुत कर रहे थे मुस्कराते हुए रद्दी की टोकरी में फेकने में उन्हें नातो किसी तरह की शर्मिदगी हुई और नहीं उस जनता जिसकी निगाहों में एक ईमानदारी का मुखौटा लगाये बेहयाई के साथ नामर्दों जैसी मुस्कराहट लिए रादिया टेप से लेकर कारपोरेट धंधेबाजो को बचाते नजर आए अपने आवास का फर्जी पता दे कर राज्यसभा के सदस्य बने हुए है और आम चुनाव में जनता का सामना की हिम्मत पिचले ७ सालो में नहीं जूता पाए.आखिर यह विश्व का कौन सा महान लोकतंत्र है जिसमे शासन एक ऐसी विदेशी महिला चला रही है वह भी अपने असंवैधानिक राष्ट्रिय परिषद् में माध्यम से चला रही है जिसका हमारे संविधान में कोई व्यवस्था नहीं है और जो न ही किसी के प्रति जबाबदेह है वह कौन सा लोकतंत्र है जहा हाई स्कूल भी पास न करने वाली सम्राज्ञी अपने मिटटी के घोगे को प्रधान मंत्री बनवाने के लिए खुद भी सन्यासिनी का वेश त्याग अपने नंगे रूप में आ गयी है और हमारे महान इमानदार प्रोफ़ेसर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह सदा अपने से अधिक योग्य पाते है और हमेशा कुर्सी खली करने को तैयार रहते है क्या यही स्वस्थ और महान लोकतंत्र की पहचान है.
कहा जाता है कि लोकतंत्र जनता के द्वारा,जनता के लिए है लेकिन यहाँ मामला दूसरा ही नजर आता है, जहा ७०%आम जनता २० रूपये प्रतिदिन में गुजर कर रही है वही लोकसभा में लगभग ३०० करोडपति संसद है जिनकी आमदनी ५ सालो में कई-कई गुनी हो रही है और मजे की बात यह है कि इनमे से अधिकतर के पास पैन कार्ड तक नहीं है. हत्या,अपहरण और बलात्कारी भी माननीय कहा रहे है और देश का संविधान बनाने में भूमिका निभा रहे है.अन्ना हजारे जैसे निष्कलंक व्यति पर झूठे और अनर्गल आरोप सत्ताधारियो द्वारा लगाया जा रहा है. उन्हें आर.एस.एस. का मुखौटा बताया जा रहा है. क्या लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति के भ्रष्टाचार और लाखो करोड़ के काले धन पर बोलने के अधिकार से बंचित करने की नापाक कोसिस कांग्रेसियो द्वारा की जा रही है. देश की सर्वोच्च नेता और युवराज रामलीला मैदान पर रावादलीला दिखने के बाद माँ-बेटे इटली में दो हफ्ते की छुट्टिय मना रहे है और राष्ट्र के लोकतान्त्रिक ढाचे का मखौल उदा रहे है.सोनिया गाँधी के लिए यही कहा जा सकता है,जैसा महासंयासिनी और त्याग की देवी अपने बेटेको प्रधान मंत्री बनवाने के लिए अपने नग्न रूप का मुहाजिर कर रही है धूमिल के शब्दों में
मुझे लगा—-आवाज
जैसे किसी जलते हुए कुए से आ रही है
एक अजीब सी प्यार भरी गुर्राहट
जैसे कोई मादा भेड़िया
अपने छौने को दूध पिला रही है और
साथ ही किसी मेमने का सिर चबा रही है.
हर तरफ कुआ है
हर तरफ खाई है
यहाँ सिर्फ वह आदमी देश के करीब है
जो या तो मुर्ख है
या फिर गरीब है.
क्या यही दिन देखने के लिए गाँधी जी ने लाठिया खायी थी और भगत सिंह जैसे अनगिनत शहीदों ने हसते-हसते फासी पर झूल गए थे.इन सत्ता के मद में चूर चापलूसी और राहुल का मैला खाने वाले दिग्गी जैसे लोगो को डॉ.भीमा राव अम्बेडकर के संविधान सभा के अंतिम मह्त्व्पुर्ड भाषण को याद रखना चाहिए जो उन्होंने २५ जनवरी १९५० को दिया था ‘ कल हम एक ऐसे युग में प्रवेश करने जा रहे है जहा हम एक व्यक्ति एक वोट को मान्यता दे रहे होगे वही सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियो के चलते इससे इंकार कर रहे होगे जितानी जल्दी हो सके हमें समाज के इन अन्तेर्विरोधो को समाप्त करना होगा नहीं तो हासिए के बंचित लोग इस लोकतंत्र के ढाचे को उखाड फेकेगे जिसे इस सभा ने इतने मेहनत से बनाया है.
दीवाल पर लिखी इस इबादत को पढ़ने में चुके तो लोकतंत्र का खात्मा तय है.इन विदेशो से संचालित प्रतिष्ठानों को खबरदार हो जाना चाहिए जो आज चापलूसी की सभी हदे पार कर बेशर्मी के किस्से लिखने में मशगुल है उन्हें यह नहीं भुलाना चाहिए कि ये वही सोनिया गाँधी है जो १९७१ के युध्ध में जब सभी पायलटो की छुट्टिया रद्द कर दी गयी थी तो अकेले राजीव गाँधी के साथ इटली भाग गयी थी और आपातकाल के बाद इंदिरा गाँधी के चुनाव हारने की खबर सुनते ही इटली के दूतावास में शरण लिए थी और आज भी जब congress अपने बुरे दौर से गुजर रही है तो बेटे के साथ इटली में छुट्टिया मन रही है.
अल जनता साफ-साफ कह दे कि यह
सिर्फ,सकरी हुई आत्मीयता है
कि भूखा रह कर भी आदमी
अपने हिस्से का आकाश
मुस्कराते हुए ढोता
है अपने देश की मिटटी को आख की
पुतली समझता है
वर्ना, रोटी के टुकड़े पर
किसी की भाषा में देश का नाम लिख कर
खिला देने से
कोई देशभक्त नहीं होता है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh