Menu
blogid : 14350 postid : 574081

एक सिरा !!!

कुछ अनकही सी ............!
कुछ अनकही सी ............!
  • 31 Posts
  • 139 Comments

वो उलझनों के
धागे का एक सिरा
जो मैंने वर्षों पहले
तुम्हारे हाथों में थमाया था
कभी समान्तर चले
कभी आगे पीछे
पर चलते रहे निरंतर
हम दोनों के हाथ अब भी
एक एक सिरा है
न वादों की गांठें थी
न ही कसमों की
एक अनकहे संकल्प
के तरुवर की छाया थी
कल रात राह में भी
हम समान्तर सिरा थामे
कुछ ही कदम चले थे क़ि
उलझनों का वो धागा
सिमट गया था लेकिन
सिरा अब भी हमारी
उँगलियों के बीच उलझा हुआ था
!!! $hweta !!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply