कुछ अनकही सी ............!
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बड़ी सर्द रात गुजरी है
थोड़ी सी गुनगुनी धूप ओढ़ लूँ
तल्खियों की रही आवा जाही बहुत
आ मेरे ख्वाबो ख्यालों तुझे आगोश में भर लूँ
बादलों का था पहरा बहुत गहरा
गिरती बूंदों आओ मिल के तुमसे जिस्म भिगो लूँ
धुंध सी उठती रही हर सुबह
ए शाम आ तुझे मैं दीपों की लड़ियों से सज़ा लूँ
करवट करवट चूर चूर पड़े हैं सपने
ए ख्वाबों के चादर एक लम्हे को तेरी सिकन मिटा दूँ
उदास फिजां और है सबा की सरगम गुम
ए दिल जरा ठहर मैं एक बार अपना आँचल तो लहरा दूँ
$hweta
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