कुछ अनकही सी ............!
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शब् थी तुम थे और मैं थी
नींद का नामो निशां न था
लम्हों में उलझी बस कुछ बातें थीं
कुछ अलफ़ाज़ थे जो लबों पर आ रुके थे
खामोश निगाहें थी और एक तस्वीर तेरी थी
कुछ बादल थे कुछ पलकों की कतारों पर रुकी बूंदें थी
कुछ गुज़रे लम्हे थे बिस्तर की सिलवट में आ ठहरे थे
कुछ ख्वाब थे लिहाफ़ से उड़ तकिये के नीचे पिघल रहे थे
एक उदासी थी और रात अभी पूरी बाकी थी
चांद भी रूठा था चांदनी की रौनक भी हल्की थी
गुनगुनाती सबा भी हैरान थी अंधेरों की ख़ामोशी थी
एक तसव्वुर में अब भी वही जीस्त हर हाल मुस्कुराती थी
~~~$hweta~~~
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