कुछ अनकही सी ............!
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पतीले में आग पर रखा दूध
ले रहा था उबाल पर उबाल
क्षण भर को ओझल होती नज़र
और एक उबाल …बिखर गया दूध
ह्रदय पटल पर स्मृतियों का उबाल
उठती गिरती बीती यादों की तरंगे
एक स्मृति की कोर में उलझी स्मृति
एक उबाल और बिखर गया हथेली पर
एक उबाल ही था या फूटी कोई ज्वालामुखी
लावा फूट कर फैला था तपिस बढ़ती रही
मुरझाई आँचल के कोने की एक ठंठी फुहार
तपिस अब भी बाकी है और आग पर पड़ा है बिखरे दूध का निशान !!
$hweta
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