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इलाहाबाद उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सुशील हरकौली एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ द्वारा विशेष अपील संख्या 548 / 2013 (अरविन्द कुमार शुक्ला एवं 3 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 3 अन्य) की सुनवाई करते हुए 11 अप्रैल 2013 को दिए गए आदेश का अर्थ एवं आवश्यकतानुसार सूचनाएं:
याची-अपीलकर्ता पक्ष की ओर से यह तर्क दिया गया कि यद्यपि परीक्षा हो चुकी है, परन्तु परिणाम अभी तक घोषित नहीं हुआ है क्यूंकि किसी अन्य मामले में (दिया गया) स्थगनादेश जारी है।
नियम राज्य द्वारा संशोधित हुए हैं। इसके (नियम बदलने के) प्राधिकार को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि बीoएडo डिग्री के सम्बन्ध में गुणांक की गणना का तरीका गैर-क़ानूनी है। (गुणांक की) गणना का यह तरीका, जिसका प्रावधान संशोधित नियमों में है, सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक में प्राप्त अंको को जोड़ना, तदुपरांत प्रतिशत की गणना करना, उन अभ्यर्थियों के बीच भेदभाव का कारण है, जिन्होंने अलग-अलग विश्वविद्यालयों से बीoएडo परीक्षा उत्तीर्ण की है।
(ध्यान दें कि यहाँ अभी न्यायालय ने वर्तमान स्थिति में याचीपक्ष की ओर से कही गई बात का उल्लेख किया है न कि अपनी ओर से गुणांक की गणना के तरीके को गैर-क़ानूनी ठहराया है जैसा कि कुछ उतावले संवाददाताओं ने समाचारपत्रों में लिख मारा है।)
अतएव, (सरकार द्वारा दाखिल किया जाने वाला) प्रति-शपथपत्र इस बात पहलू का परीक्षण करेगा कि क्या (गुणांक की गणना के लिए याची द्वारा) सुझाया गया तरीका, अर्थात बीoएडo के सैद्धांतिक और व्यावहारिक के प्राप्तांकों के प्रतिशत की अलग-अलग गणना करना, उन दोनों को जोड़ना और फिर उन्हें 2 से भाग देना, आरोपित भेद-भाव को दूर करेगा।
(हमारे बड़े भाई श्री डी बी द्विवेदी जी के प्रति पूर्ण सम्मान प्रकट करते हुए मैं उपरोक्त पैराग्राफ के सन्दर्भ में स्पष्ट करना चाहूँगा कि उनके द्वारा इस आदेश के लगभग सही किये गए अनुवाद, जिसे फेसबुक के सम्बंधित ग्रुपों में डाला गया है, में भूलवश या जल्दबाजी में त्रुटि रह गई है, जिसकी चर्चा मेरे कई साथियों ने की और मामले की सही समझ के लिए जिसकी ओर विशेष रूप से इंगित करना मुझे आवश्यक एवं उचित प्रतीत हुआ।)
इस न्यायालय की एकल पीठ द्वारा दिनांक 21.01.2008 रिट याचिका संख्या 54049 of 2007 के प्रतिनिधित्व में सुनी गई रिट याचिकाओं के समूह में जारी आदेश, जिसे कि विशेष याचिका 166 of 2008 के प्रतिनिधित्व में सुनी गई विशेष अपीलों के एक समूह के 03.04.2008 को हुए निस्तारण में रद्द कर दिया गया था, के अध्ययन के उपरांत यह आदेश पारित कर हैं, क्यूंकि प्रत्यक्षतया (स्पेशल) अपील पर हुए निर्णय में अलग-अलग विश्वविद्यालयों, जिनके यहाँ सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक में अलग-अलग अंक (पूर्णांक) होते हैं, से बीoएडo करने वाले अभ्यर्थियों के सम्बन्ध में भेद-भाव के मामले पर विचार नहीं किया गया
साथ ही, उस मामले में स्पेशल अपील सुनने वाली पीठ ने हस्तक्षेप करने से इस आधार पर इनकार कर दिया था कि यह एक नीतिगत निर्णय था। जबकि, प्रथमदृष्ट्या, भले ही नीतिगत निर्णय, जो भेदभाव को जन्म दे, एवं इस प्रकार, (संविधान के) अनुच्छेद 14 एवं 16 के अंतर्गत सुनिश्चित किये गए मौलिक अधिकारों का हनन करें, रिट (क्षेत्राधिकार वाले) न्यायालय द्वारा परीक्षित किये जा सकते हैं एवं अंततः, स्पेशल अपील का निर्णय स्थिति पर (किये गए) विचार पर भी निर्भर था। यहाँ परिणाम घोषित नहीं हुआ है क्यूंकि एन अन्य मामले में जारी अंतरिम आदेश, जिसने रिट न्यायालय को (इस सम्बन्ध में) सुधारात्मक उपाय करने (कदम उठाने) के लिए पर्याप्त समय दे दिया है, जहां तक आरोपित भेदभाव का सवाल है।
(सरकार की असीमित शक्तियों के अंध-अनुयायी, नीतिगत मामलों की आड़ में की जानेवाली मनमानी के समर्थकों को इस पैराग्राफ पर विशेष ध्यान देना चाहिए।)
प्रति-शपथपत्र दो सप्ताह में दाखिल होगा।
(मामले को) 29.04.2013 को प्रारंभ होने वाले सप्ताह में (सुनवाई के लिए) सूचीबद्ध किया जाए।
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