Menu
blogid : 12510 postid : 104

उत्तर प्रदेश समाजवादी शिक्षानीति “ठेके पर पढाई या पढाई का ठेका”15 may 2013

PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
PAHAL - An Initiative by Shyam Dev Mishra
  • 68 Posts
  • 10 Comments

अपने लक्ष्य पर आखें जमाये रखना बहुत अच्छी बात है, पर यही सारी बात नहीं है। लक्ष्य पर आँखे जमाये रखना अच्छा है, पर परिस्थितियों का आंकलन और तदनुसार कार्य भी अपरिहार्य होते हैं। धुन के साथ खुली आँखें हों तो वह धुन है, जो आपको विजय दिलाती है, पर आँखें बंद करके कोई धुन पर लगा रहे तो वह घुन बन जाती है जो कब अन्दर ही अन्दर खा जाती है, आभास भी नहीं होता।

मैं नहीं जानता कि नॉन-टेट वाले मामले 12908/2013 में बृहद पीठ का निर्णय कब आयेगा। मैं नहीं जानता कि एक हफ्ते में अपेक्षित निर्णय एक महीने में भी क्यूँ नहीं आया। न ही कोई कयास लगाना ठीक समझता हूँ। खंडपीठ से हमारे मामले यानि 150/2013 और कनेक्टेड अपीलों पर क्या निर्णय आनेवाला है, इसकी बानगी 4 फ़रवरी से लेकर इस मामले की हर सुनवाई के दौरान मिलती रही है, अतः वह भी चिंता का विषय नहीं है। आनेवाला ग्रीष्मावकाश, जस्टिस हरकौली की सेवानिवृत्ति की तिथि, नियमित रूप से उच्च न्यायालय की पीठों में होने वाला परिवर्तन, ये सब कहीं न कहीं एक निश्चित लग रही जीत की प्रतीक्षा में व्यग्रता का अंश जोड़ रहे हैं। पर यह भी साफ़ है कि खंडपीठ द्वारा दिए गए 4 फ़रवरी और उसके बाद के आदेश अब कानूनी मजबूती और और तार्किक आधार वाले पुष्ट न्यायिक अभिलेख बन चुके हैं, जिनके नतीजे विलंबित हो सकते हैं, पर निलंबित नहीं। किसी भी पक्ष का समर्थन करने वाले इस सत्य से भली-भांति अवगत हैं।

लखनऊ वाले मामले के शुरूआती दौर में ही सरकारी वकील ने इसे इलाहाबाद बेंच में विचाराधीन मामले के सामान बताते हुए न्यायालय से इस मामले को भी जस्टिस टंडन की अदालत में चल रही याचिकाओं में जोड़ दिए जाने की दलील दी थी पर याची के वकील ने पुराने विज्ञापन के अनुसार होने वाली भर्ती की खूबियाँ और नए विज्ञापन के अनुसार होनेवाली भर्तियों में तमाम खामियाँ दिखाते हुए, इस मामले के स्वरुप को उस मामले से अलग बताया था, परिणामस्वरूप इसकी सुनवाई लखनऊ में होती रही। इस याचिका की सुनवाई के दौरान आज नए विज्ञापन पर जिस आधार पर स्थगनादेश जारी हुआ है, बिना उन मुद्दों पर न्यायालय को संतुष्ट किये प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। खंडपीठ द्वारा जिन आधारों पर स्थगनादेश दिया गया था, उनपर सरकार के स्पष्टीकरण से खंडपीठ आज तक संतुष्ट नहीं, नतीजतन स्थगनादेश आज भी लागू है. सिंगल बेंच के पास स्थगनादेश के लिए अपने कारण हैं, खंडपीठ के पास स्थगनादेश देने लिए अपने कारण हैं, सरकार जिस पीठ की आपत्तियां संतोषजनक रूप से दूर कर देगी, वह पीठ अपने स्थगनादेश को वापस ले लेगी, पर अन्य पीठ द्वारा दिए गए स्थगनादेश को नहीं। हाँ, यदि स्थगनादेश पाने वाले याचिकाकर्ता खंडपीठ में कैवियेट दाखिल कर दें तो सरकार द्वारा गुपचुप तरीके से एकल पीठ द्वारा जारी स्थगनादेश को विशेष अपील के जरिये खंडपीठ से ख़ारिज कराये जाने की संभावना पर भी विराम लग जाएगा।

चिंता का मुख्य विषय निर्णय में आनेवाली देरी, दिन पर दिन अभ्यर्थियों में बढ़ती अधीरता, सरकार द्वारा नित नए बेतुके निर्णय, उनपर पैदा होते विवाद, नतीज़तन हर मामले में ठहराव और अंततः इन सबके प्रति सरकार की बेपरवाही है।
इस सबका नतीज़ा कुछ साथियों और उनके परिजनों पर हमारी सोच से भी कहीं ज्यादा पड़ा है, समाजवाद का मुलम्मा चढ़े सामंतवाद के पैरोकारों को न योग्य अभ्यर्थियों की चिंता है न प्रदेश में शिक्षा के स्तर की। ऐसे लोगों को न सिर्फ नकारना होगा, बल्कि इन्हें नाकारा भी सिद्ध करना होगा ताकि आज इन्हें आप नकारें, कल इन्हें बहुमत नकार दे। और जिसने इनके कारण खून के आंसू बहाए हों, यह काम भला उनसे बेहतर और कौन कर पायेगा? गलत न समझें, यहाँ मगरमच्छी टसुवे बहाने वालों की बात नहीं हो रही है।

ऐसे में सरकार के जबड़े में फँसी 72825 की भर्ती को छुड़वाने का एक तरीका है कि इसकी वैकल्पिक व्यवस्था वाली पूँछ पर पाँव रख दिया जाये, ऐसे में इसका मुँह खुलेगा और भर्ती मुक्त होगी। प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी की ओर से ये तबतक निगाहें फेरे रहेगी, जब तक इनके पास शिक्षामित्र-रुपी बैक-अप प्लान, अनुदेशक-प्रेरक जुगाड़ रहेंगे। जैसे ही इसे आभास होगा कि जिस तुक्के को यह तीर बताते-मानते हुए आराम से बैठी है, उसकी असलियत खुलने वाली है, उसका तथाकथित बैक-अप प्लान हवा होने वाला है, तब इसे प्राथमिक विद्यालयों में योग्य-नियमित शिक्षकों की कमी पूरी करने में ही भलाई नज़र आएगी। और यदि समय रहते ऐसा हो पाया तो कोई बड़ा आश्चर्य नहीं कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुसार मानक छात्र-शिक्षक अनुपात के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी अन्य कुशवाहा की पहल पर न्यायालय 31 मार्च 2014 के पूर्व सरकार को बी०एड० धारकों के लिए एक और बम्पर भर्ती का दरवाजा खोलने को विवश कर दे।

सर्व-विदित है कि संतोष कुमार मिश्रा व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य रिट ए संख्या 28004/2011 की सुनवाई करते हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी ने NCTE द्वारा 14.01.2011 को जारी उस आदेश के क्रियान्वयन अर्थात शिक्षामित्रों के दो-वर्षीय प्रशिक्षण पर यह कहते हुए 18.05.2011 को स्थगनादेश जारी कर दिया था कि NCTE द्वारा शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण दिए जाने वाला यह आदेश प्रथम-दृष्ट्या गलत मान्यता पर आधारित है कि वे क़ानूनी तौर पर नियुक्त अध्यापक हैं। बाद में राज्य सरकार द्वारा दाखिल विशेष अपील 1032/2011 उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य बनाम संतोष कुमार मिश्रा व अन्य की सुनवाई में स्थगनादेश तो खंडपीठ द्वारा रद्द कर दिया गया पर इस प्रशिक्षण की वैधता को रिट ए संख्या 28004/2011 के अंतिम निर्णय के अधीन बताया था। अंतिम बार 6 जुलाई 2012 को इस मामले की तारीख तक का तो रिकार्ड आसानी से मिल जाता है पर उसके बाद इसे सम्बंधित मामलो से सम्बद्ध कर दिया गया, जिसमे लीडिंग केस का विवरण उपलब्ध न हो पाने के कारण इस मामले की प्रगति की जानकारी फिलहाल अनुपलब्ध है। इस महत्वपूर्ण मामले का अबतक का घटनाक्रम और इसमें अबतक हुई प्रगति, जो शायद नकारात्मक ही है, मामले को आश्चर्यजनक रूप से संदेहास्पद बनाती दिख रही है। अंतरिम आदेश में स्पष्ट है कि इस मामले में शिक्षामित्रों को दी जाने वाली ट्रेनिंग पर यह कहकर श्री अशोक खरे ने सवाल उठाया था कि जब NCTE के नियमानुसार प्रारंभिक शिक्षा में दो-वर्षीय डिप्लोमा में केवल क़ानूनी तौर से नियुक्त अप्रशिक्षित अध्यापकों को दिया जा सकता है तो 11 माह के ठेके पर तैनात शिक्षामित्र इसके लिए कैसे पात्र हो सकते है जबकि बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 में अप्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति का कोई प्रावधान कभी नहीं रहा। साथ ही, उन्होंने सरकार के इस कदम को उन्होंने बिना आरक्षण सम्बन्धी प्रावधानों का पालन किये बिना केवल स्थानीय लोगो में से चयनित शिक्षामित्रों को ही इस प्रशिक्षण में सम्मिलित किया जाना अन्य लोगो को खुली प्रतिस्पर्धा के जरिये चयन के अवसर से वंचित किये जाने के रूप में न्यायालय के सामने रखा। जाहिर है, इस मुक़दमे से उथलपुथल मचनी स्वाभाविक थी, मची भी थी पर जिस तरह से सरकार सक्रिय हो उठी, स्थगनादेश हट गया और फिर प्रगति और अंतिम निर्णय के नाम पर एक अनंत शून्य! आज तक यह मामला ठन्डे बस्ते में पडा है. क्या कोई जानता है कि क्यूँ, कैसे?

यदि किसी को इस मामले में अधिक जानकारी, इस मामले के लीडिंग केस नंबर आदि की जानकारी हो तो कृपया साझा करें, शायद कोई इस मामले में कुछ कर गुजरने पर उतर आये। वरना क्या, 31 मार्च 2014 के बाद कम से कम बी०एड० वालों के लिए प्राथमिक में कुछ हासिल करने की सम्भावना पर तो पूर्ण-विराम लग ही जायेगा।

आप सबके लिए शुभ-कामना।। ईश्वर आप सबको प्रतीक्षा के इस भंवर से जल्द उबारे, यही प्रार्थना है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply