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4 जनवरी 2012 को TET-मेरिट-आधारित 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती पर एकल पीठ द्वारा लगाया गया स्थगनादेश जिन थाली के बैगनों (यह उपाधि उनके लिए जिन्होंने पहले विज्ञापन की शर्तें मानते हुए आवेदन किया और बाद में सरकार द्वारा अपने फायदे के मुताबिक नियम बनाये जाने पर न सिर्फ पाला बदल लिया, बल्कि सरकार की गोद में बैठकर पुरानी प्रक्रिया में एक-से-एक खामियां गिनाकर निकलकर TET-मेरिट-समर्थकों को हतोत्साहित करने में भी अमूल्य योगदान देने में तत्पर थे) को बड़ा रास आया था, आज 1 साल 1 महीने बाद उस स्थगनादेश के जवाब में अब 4 फ़रवरी 2013 को गुणांक-आधारित 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती पर खंडपीठ द्वारा लगाया गया स्थगनादेश हज़म ही नहीं हो पा रहा है।
वैसे भर्ती में मोटी रकम लगाने के बाद भर्ती पर ऐन काउंसिलिंग के दिन रोक लगना किसी के लिए भी वज्रपात के सामान ही होता इस से मुझे भी कोई इनकार नहीं, पर यह कोई अप्रत्याशित तो नहीं था। TET-संघर्ष-मोर्चा डंके की चोट पर बहुत पहले ऐलान कर चुका था कि सरकारी मनमानी के विरोध में इलाहाबाद, लखनऊ से लेकर दिल्ली तक, अंतिम सीमा तक हर प्रयास किया जायेगा, पर “सर्वशक्तिमान सरकार (वास्तव में “सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का”)” के सिद्धांत के इन प्रचारक इन प्रयासों को खिसियाई बिल्ली द्वारा खम्भा नोचने का प्रयास मान और बता रहे थे। ऐसे लोगों के साथ आज सहानुभूति भर की जा सकती है, इस से ज्यादा कुछ नहीं। समझौता तो परिदृश्य में ही नहीं है, समझौता या तो हार से डरने वाले करते हैं या फिर हारे हुए लोग।
कुछ बगुला-भगतों ने अपने फायदे की मछली पकड़ने के लिए नैतिक शिक्षा की कक्षाएं शुरू की हैं, पर इनकी असलियत भी जगजाहिर है। दर-असल साल-भर सरकार की मार और आपकी गालियाँ खाने के बाद आपके नैतिक शिक्षा के उपदेश ज़रा कम ही समझ में आते हैं, या यों कहें कि इनकी असलियत समझ में आ गई है। नतीजतन, लड़ाई के इस मोड़ पर न कोई नैतिक शिक्षा के स्वार्थपूर्ण उपदेशों का कोई पालन करेगा न किसी को इसकी उम्मीद करनी चाहिए। “अरे भाइयों, किसी को नौकरी मिलने दो!’ की गुहार सिर्फ वही लोग लगा सकते हैं जो जो खुद को इस “किसी” में पाते हैं, और जिस स्थगनादेश को ये TET-मेरिट-समर्थकों द्वारा की जा रही स्वार्थपूर्ण अड़ंगेबाजी बता रहे हैं वो उनके हक़ की लड़ाई का पहला, पर बहुत बड़ा पुरस्कार है। मौजूदा हालात में महत्त्व इस बात का नहीं कि “कौन क्या कह रहा है?”, बल्कि सारा दारोमदार इस बात पर है कि “कौन क्या कर रहा है?” ऐसे में सरकारी-उड़ानझल्ले से पैदा हुई इस नई-नवेली चयन-प्रक्रिया पर ऐन मौके पर स्थगनादेश लगवाकर और सरकार के उसे हटवाने के सारे प्रयासों को धता बताकर TET-लड़ाके निर्विवाद रूप से लड़ाई में एक बड़ी बढ़त बना चुके हैं।
मैं फिर से दोहराता हूँ कि अभी तक तो कोर्ट में सिर्फ और सिर्फ 1 सवाल हल होना बाकी था कि तथाकथित धांधली के साक्ष्य सरकार दे पाती है या नहीं, और अगर हाँ, तो दोषियों को चिह्नित करके उनपर कार्यवाही करने की दिशा में सरकार ने क्या किया? पर अब तो सरकार को ये भी बताना पड़ेगा कि अभी तक उस्मानी-कमेटी ने मामले से सम्बंधित महत्वपूर्ण साक्ष्यों, जैसे सीडी, हार्डडिस्क आदि तक की जांच रिपोर्ट तक देखने की फ़िक्र नहीं की तो अपने किस कृत्य को ये अबतक जांच बता रही थी? किस कारण और किस मंशा से बिना जांच पूरी किये अग्रिम में ही निर्णय कर दिया कि UPTET-2011 में धांधली हुई, और अपनी सनक के आधार पर उसे मूर्खतापूर्ण ढंग से चालू प्रक्रिया के बीच में ही अर्हता-परीक्षा बनाने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया। शायद नए-नए मुख्यमंत्री बने इस लड़के और अक्सर विदेश-यात्राओं पर रहने वाले इसके मुख्य-सचिव ने पश्चिम के अन्धानुकरण में शायद उनसे भी दो हाथ आगे जाकर कामों के साथ-साथ UPTET-2011 में तथाकथित धांधली की जाँच की भी “आउटसोर्सिंग” कर दी हो, यानी जांच भी ठेके पर करवा ली हो ताकि तय वक्त में पहले से तय निष्कर्ष आसानी से, और गारंटी से मिल सकें! जय हो!!!
या फिर ऐसे निर्णयों और हरकतों के पीछे राज्य-स्तर पर शासन में इन्हें अक्षम बनाने वाली ग्रामस्तरीय संकुचित और क्षुद्र सोच, जो इन्हें पंचायतों में अपने निहित स्वार्थों और हठधर्मिता के कारण मनमाने और बे-सिर -पैर के फैसले लेने को को उकसाती है??
साथ ही इन छद्म समाजवादियों की दूरदर्शिता की कलई खुलने से बड़ी मजेदार स्थिति बन सकती है यदि तथाकथित धांधली में कोई ऐसा BTC/VBTC TET-उत्तीर्ण अभ्यर्थी चिह्नित हो जाये, जिसे ये सरकार अभी हाल में हुई भर्ती के जरिये उसके द्वारा की गई धांधली के पुरस्कार-स्वरुप नियुक्ति-पत्र प्रदान कर चुकी हो। ऐसे में खुले-आम बनेगा इनके दोहरे मापदंड और नाकारापन का खुला तमाशा।
पुराने विज्ञापन से भर्ती के समर्थक फिलहाल राहत की सांस ले सकते हैं, थोड़ी सतर्कता के साथ, क्यूंकि उनकी गठरी के पीछे अभी चोर लगे हैं। खंडपीठ द्वारा इस बिंदु पर अपने 4 फ़रवरी के आदेश में दिए गए निर्णय को बदलने की कोई सम्भावना नहीं है कि 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों का चयन उस समय प्रभावी 12वें संशोधन के अनुसार पुराने विज्ञापन में दी गई TET-मेरिट से ही होना सही है, न कि प्रक्रिया शुरू होने के बाद सरकार के मन में आये “AGTERTHOUGHT” (उड़ानझल्ला) से पैदा 15वाँ संशोधन और उसकी जनी गुणांक-मेरिट से। खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि 30.11.2012 के विज्ञापन से शुरू हुई प्रक्रिया में वस्तुतः पद का नाम “प्रशिक्षु शिक्षक’ होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
जहां तक कोर्ट द्वारा सरकार की ओर से 72825 पदों पर चयन के लिए TET-वेटेज देने सम्बन्धी किसी अस्पष्ट और निराधार पहल, अगर कोई आती है तो, पर विचार करने का सवाल है, यह मौजूदा हालात में पूर्णतया बचकाना, अप्रासंगिक और बेमानी है क्यूंकि कोर्ट अब पुराने विज्ञापन से शुरू हुई चयन-प्रक्रिया को सरकार द्वारा रद्द किये जाने के विरुद्ध दाखिल अपीलों पर सुनवाई कर रहा है न कि, उत्तर प्रदेश शिक्षा नीति की समीक्षा, और न ही वह कोई मध्यस्थ है जो दोनों पक्षों में न्यायिक सिद्धांतों की कीमत पर किसी भी चरण में समझौता करा दे। तब तो कतई नहीं, जब कोर्ट ने पुराने विज्ञापन को पहली सुनवाई में ही लिखित रूप से “क्लीनचिट”देते हुए सरकार से केवल UPTET-2011 पर लगे धांधली के आरोपों के साक्ष्य पेश करने, और अगर ऐसा हो सके तो, “खराब हिस्से” को “अच्छे हिस्से” से अलग किये जाने, यानि दोषियों को चिह्नित कर उनके खिलाफ उचित कार्यवाही करने की अपेक्षा स्पष्ट रूप से, लिखित रूप से प्रकट कर चुका है। अब या तो सरकार की रिपोर्ट कूड़ेदान में जाएगी और अगर कोई दोषी सिद्ध हुआ, जिसके आसार नहीं दीखते, तो उसपर क़ानूनी कार्यवाही होगी, इस से ज्यादा कुछ नहीं। ध्यान दें कि एकल पीठ के निर्णय का हवाला देते हुए खंडपीठ ने भी अपने आदेश में दोहराया है कि धांधली साबित होने की स्थिति में भी खराब हिस्से को अच्छे हिस्से से अलग किये जाने के प्रयास किया जाना उचित था न कि समूची प्रक्रिया को रद्द करना। ऐसे में TET-वेटेज का कोई सरकारी प्रस्ताव भी कोर्ट की नज़र में अब मात्र एक ”AFTERTHOUGHT” भर होगा और कोर्ट ऐसे किसी उड़ानझल्ले को कितना महत्त्व देगी, ये सबको स्पष्ट है, कोई इसे स्वीकारने को राजी हो या न हो।
फिलहाल तो ऐसा लग रहा है कि सरकार की रही-सही इज्जत कोर्ट में उतरने के बाद पुराने विज्ञापन के आधार पर चयन-प्रक्रिया जल्द ही शुरू शुरू होगी और इसमें हो रहा विलम्ब केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि इसके जरिये शिक्षक बन्ने वाले किसी व्यक्ति पर भविष्य में कोई ऊँगली न उठा सके और ऐसे मूल्यवान “न्यायिक क्लीनचिट” के लिए हफ्ते-दो हफ्ते का इंतज़ार कोई खास महंगा नहीं। इस देश के एक पूर्व-प्रधानमन्त्री तक को जब अपनी मृत्यु तक तोप-खरीद घोटाले में क्लीनचिट नहीं मिल पाई थी तो आप अपने सौभाग्य पर सहज ही इतरा सकते हैं।
एक अन्य खंडपीठ द्वारा एक अन्य मामले में B.Ed.+Graduate (with 50%) गैर-TET अभ्यर्थियों को इसी भर्ती में शामिल किये जाने सम्बन्धी निर्णय की चर्चा का न तो अभी अवसर है और न अवकाश! संक्षेप में केवल इतना समझ लें कि खंडपीठ के उस आदेश की सत्यापित-प्रति लिए कोर्ट-कोर्ट घूम रहे गैर-TET अभ्यर्थियों को इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल कराने को लेकर किसी भी पीठ ने रूचि और तत्परता नहीं दिखाई है, बल्कि एक पीठ ने तो खंडपीठ के निर्णय की ऐसी व्याख्या कर दी है वो बेचारे ऐसे बाजीगर साबित हो गए जो जीत कर भी हार गए। वो खुद को असल में “ठगा हुआ-सा” पा रहे हैं।
असल में NCTE की किसी भी अधिसूचना का वो अर्थ, खासतौर से तब जब वो स्पष्ट रूप से लिखा भी न हो, नहीं निकाल जा सकता या ऐसा कोई प्रावधान स्वीकार नहीं किया जा सकता जो देश की संवैधानिक योजना और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के प्रतिकूल हो। और कक्षा 1-5 के लिए शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता के मामले में मौलिक रूप से पूर्णतया अर्ह BTC अभ्यर्थियों को TET-उत्तीर्ण न होने के कारण बाहर रखना, और केवल BTC अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता की स्थति में कक्षा 1-5 में शिक्षण के लिए एक काम-चलाऊ विकल्प के तौर पर स्वीकार्य अभ्यर्थियों, खासतौर से जिनकी शैक्षणिक योग्यता को कक्षा 1-5 के अध्यापक के लिए स्पष्ट रूप से BTC से कमतर मानकर उसे BTC की समकक्षता प्रदान करने के उद्देश्य से खासतौर से नियुक्ति-उपरांत 6-महीने का अनिवार्य प्रशिक्षण दिए जाने की शर्त रखी गई हो, को TET से छूट देना न सिर्फ BTC अभ्यर्थियों को संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मिले “अवसर की समानता के मौलिक अधिकार” का हनन होगा, बल्कि यह “योग्य पर अयोग्य को वरीयता” का एक उदहारण होगा। तब तो और भी, जब TET, की नाम से ही स्पष्ट है, NCTE द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुसार एक ऐसी अनिवार्य अर्हता है जिसके बिना किसी भी व्यक्ति की नियुक्ति कक्षा 1-8 तक के अध्यापक के तौर पर नहीं हो सकती और केंद्र सरकार भी TET से किसी राज्य को छूट देने का अधिकारी नहीं है। ऐसे में जब इस मामले को, इस निर्णय को NCTE की अधिसूचना में विहित और निहित भावना, उद्देश्य और आशय को अनदेखा केवल उसमे लिखे शब्दों के आधार पर छिद्रान्वेषी और सतही दृष्टिकोण से नहीं देखा जायेगा, बल्कि संविधान और प्राकृतिक न्याय की कसौटी जायेगा तो सारा भ्रम स्वतः दूर हो जायेगा। यदि किसी को मामले को ज्यादा बेहतर तरीके से समझना हो तो किसी अच्छे कानूनी एन्साइक्लोपीडिया में ”Harmonious Construction” (समन्वयपरक व्याख्या) का मतलब देखिये और उसके आलोक में NCTE की 23.08.2010 की अधिसूचना ध्यान से पढ़िए, सत्य का साक्षात्कार हो सकता है, शर्त केवल निष्पक्ष दृष्टिकोण की है। बची-खुची शंका का समाधान NCTE द्वारा 11.02.2011 को जारी TET-दिशानिर्देश से हो जायेगा।
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